अपना रास्ता लो बाबा

 अपना रास्ता लो बाबा 

        'अपना रास्ता लो बाबा' काशीनाथसिंह लिखित कहानी है| जिसमें महानगर के लोगों में बढती भावनाशून्यता को चित्रित किया है| उनके लिए रिश्तों की कोई अहमियत नहीं| अत: प्रस्तुत कहानी में मानवीय संबंधों की खोखलाहट को उजागर किया है| साथ ही इसमें बुजुर्गों की दयनीय अवस्था को भी इसमें चित्रित किया है| इसके साथ इस कहानी में गांव के लोगों की आत्मीयता भी इसमे चित्रित है|    उसकी कहानी इस प्रकार-

                कहानी का प्रारंभ में बेंचू बाबा शहर पहुंचे है | वे आजकल बिमार रहते है और अपनी बिमारी का इलाज करने के लिए वे शहर में भाई के बेटे देवनाथ के यहां आए है| देवनाथ पिछले दस सालों से शहर में अपनी पत्नी आशा और संतानों के साथ रहता है|  देवनाथ कहां पे रहता है यह बेंचू बाबा को पता नहीं| इसीलिये पता पूछते -पूछते देवनाथ के कॉलनी में पहुंचे है| देवनाथ उस वक्त सिगारेट खरीद रहे थे| तब उनके कान पर  जानी पहचानी आवाज आती है, जो उनके कॉलनी का पता पूछ रही| देवनाथ उनसे पीछा छुड्वाने के लिए छोटे रास्ते से घर पहुंचता है| तब बच्चे कमरे में हंगामा कर रहे थे और पत्नी उन पर बलिहारी हुई जा रही थी| देवनाथ ने बच्चों को डाटा और  आशा से कहा कि अगर कोई आये और मेरे बारे में पुछे तो जंगले से अर्थात खिडकी से ही कह देना मैं बिमार हूँ| फिर वापस आते है और कहते कि मैं शहर से बाहर गया हूँ| ऐसा ही कह देना| फिर जाकर लेट गये| 

        इतने में बाहर कुछ आहट हुई | पत्नी को दरवाजा खोलने से मनाई की थी, इसीलिये उन्हें पत्नी की बुद्धी पर तरस आता है| बाहर का व्यक्ति पूछ रहा था कि आसपास कोई देऊ नाम का कोई किरयेदार तो नहीं रहता| आवाज सून देवनाथ बाहर आता है| बेंचू बाबा को देख कहते है कहां से चले आ रहे है? कोई परेशानी तो नहीं| 

        बेंचू बाबा बहुत थक गये थे| उनके सर पर गगरा था, फळे उसे उतारा और बडे प्यार से देवनाथ के पूरे शरीर को स्पर्श किया | कारण बहुत दिन हुये देवनाथ अपने गांव गया है नहीं थे| अपने गांव के लिए जैसे वे सपना हो गये थे| उनके बच्चे भी वहां आते है परंतु बच्चे उनसे दूर जाते है| वे उन्हें नहीं पहचानते | बच्चे बडे हो गये है, जब छोटे थे तब उन्हें देखा था| 

        अब न चाहते हुये भी देवनाथ को उनका आदरातिथ्य करना पड रहा था| वे मेज पर पानी रखते है और उन्हें कुछ खाने के लिए लाने ऊपर जाते है| आशा को उनका यहां आना पसंद नहीं| वह पति से पूछ्ती है वह देहाती भूच्च अर्थात मूर्ख  आदमी कौन है? देवनाथ कहते है हमारे बगल के सुदामा जो हमारे पट्टीदार है उनके बाप है| अब आशा ने उनके लिए बुसी मिटाई दी, जो पिछले  हप्ते अगरवाल ने दी थी| देवनाथ के मन में कुछ पल के लिए हमदर्दी महसूस हुई पर पत्नी के आगे कुछ कह नहीं पाए| वही मिटाई बेंचू बाबा को दी| बाबा ने भी वह मिटाई बडे आनंद के साथ खाई और कहा गांव में ऐसी मिटाई कहां मिलती है| तब तक बाबा ने बाहर हॉल में ही हाथ-पीर धो लिए थे|पूरा हॉल गिला हो गया था| 

        देवनाथ का घर देख बेंचू बाबा बडे संतुष्ट हो गये थे | फिर कहते बस एक गाय होनी चाहिए थी| वे क्या जाने शहर में यह नहीं होता| गगरे में उन्होंने गन्ने का रस और होरहा लेकर आये थे जो बच्चों को देने के लिए कहते है| इसके पहले वे बेंचू बाबा को पूछते है आप यहां किस मतलब से आए हों? बेंचू बाबा को यह सवाल कुछ अटपटा सा लगता है| बाप बेटे के यहां नहीं तो कहां आयेगा? तब अपनी बात को संभालते हुये देवनाथ कहता है कि मेरा मतलब था कि आप यहां किसलिए आये हो? 

    तब अपनी बिमारी के बारे में बताकर अस्पताल में भर्ती होने के बारे में बेंचू बाबा कहते है| पहले बच्चों को गन्ने का रस देने के लिए कहते है| परंतु बच्चे उसे गंदा समझ मोहरी में फेंक देते है कारण उस गगरी को गोबर लगा था|  देवनाथ कहते है इसे फेंको मत सुबह महरी अर्थात कामवाली को देंगे तब तक बच्चे गगरी उलट देते है|

    आशा मुंह फुलाके के बैठी थी| पति से कहती है रोज रोज का खाना मुझसे नहीं होगा| वह कहती है कि उन्हें कहे अपने बहू को लेकर आए और किराये का कमरा लेकर रहे| देवनाथ भी अपने मन की नाराजगी व्यक्त करते हुये कहता है , यही तो बात है कि गांव में मस्ती मारते फिरेंगे और तबियत खराब जुई हुई कि यहीं चले आयेंगे| 

        देवनाथ नीचे चला गया तब बाबा सो गये थे| उसे बाबा को जगाया और स्कूटर पर बिठाकर उन्हें डॉक्टर गर्ग के पास ले गये| डॉक्टर गर्ग ने देवनाथ को उन्हें कैन्सर होने की बात बताई | बाबा को तसल्ली देते हुये कहा कि फिक्र की बात नहीं, आप ठीक हो जायेंगे|  पर देवनाथ को पता है बाबा ठीक नहीं है| उन्हें घर छोडकर वह बाजार में दवाई लाने के लिए गया| अलग-अलग शीशे में दवाई लेकर आये और कौन सी दवा  कब खानी है यह  बाबा को बताया|  बाबा का मन भर आया और वे फूट फूटकर रोने लगे| एक तू  ही है... बाबा बोलते जा रहे थे और रोते जा रहे थे| देवनाथ के बचपन की बातें बताये जा रहे | बातों बातों में वे कहते है वे कल गांव वापस जायेंगे| वे अनमने मन से खाना खाने जाते है| तब आशा बच्चों को बाबा की ही बात बता रही थी| उनकी नजर गगरी पर जाती है| उन्हें अपने गांव की याद आने लगती है वह बगीचा, वह होला पाती| वह चलवा, आमों की लूट| सिंघाडे चुराना और पोखर में भौरें पकडना| पर आज बहुत साल हो गये सब कुछ हवा में खो गया है| अब बाबा जा रहे है केवल कल के लिए नहीं हमेशा हमेशा के लिए उन्हें रोक सकता है लेकीन रोक नहीं सकता | और आज बहुत कुछ बदल गया है यह अपने आप से समझाया और यहां कहानी समाप्त हो गयी|   



        

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