'ढाई बीघा जमीन' मृदुला सिन्हा

'ढाई बीघा जमीन'   मृदुला सिन्हा

 

कहानी की कथावस्तु  :


        आज संपूर्ण विश्व में वैश्वीकरण, नगरीकरण, औद्योगिकीकरण बढ़ चुका हैं। इससे वर्तमान युग में गांव की नई पीढ़ी जमीन को छोड़कर शहर की ओर आकर्षित हो रही हैं। लोग गांव और खेती को कम महत्व देने लगे हैं। लोग गांव  छोड़कर शहर में रहना पसंद कर रहे हैं। इसलिए महानगरीय संस्कृति का बोल बाला हो गया है। पैकेज वाली नौकरी, गाडी, अपार्टमेंट आदि से जीवन चकाचौंध बन गया है। लेखिका 'ढाई बीघा जमीन कहानी में यह संदेश देना चाहती है कि, भले ही हम आधुनिकीकरण की दौड़ में शहरी चकाचौंध कीओर आकर्षित हो, लेकिन गांव की जमीन और संपत्ति का अपना ही महत्व होता है, और संकट के समय यही जमीन संजीवनी बन जाती है।

         रामबाबू अपनी बेटी सुभद्रा का विवाह रामचरण सिंह के पुत्र किशोर से तय करवाना चाहते हैं। परंतु वे डरते हैं कि किशोर के सिर पर मात्र ढाई बीघा जमीन है। चूड़ामणि रामबाबू के साथ किशोर के रिश्ते की जांच-पड़ताल करवाने आए हैं। वह बार-बार रामबाबू, को ढाई बीघे जमीन की बात कह कर शादी त करवाने से मना करते हैं। अंत में रामबाबू नौकरी का महत्व जानकर अपनी बेटी सुभद्रा की शादी किशोर के साथ करवाते हैं। किशोर की आर्थिक स्थिति अच्छी है फिर भी सभी गांव वाले तथा रिश्तेदार ढाई बीघा जमीन की बात रामबाबू को सुना कर उन्हें दुखी करते हैं। रामबाबू भी डरते हैं कि शायद बेटी सुभद्रा जमीन की बात कह कर उन्हें कोसेगी। क्योंकि कम जमीन की बात रामबाबू ने शादी के पहले सुभद्रा को नहीं बताई है। शादी के बाद सुभद्रा पति के साथ शहर में बड़े आनंद के साथ रहती है। उसे दो बेटे हो जाते है। कभी कभार किशोर के दिल में अपनी खानदानी जमीन छूटने की पीडा उत्पन्न होती है। परंतु सुभद्रा व्यावहारिक दृष्टिकोण से पति के मन का यह दुख दूर करती रहती है। एक बार गांव आने पर उसकी पड़ोस की सांस उसे देवरों द्वारा बेची जमीन के बारे में बताती है। साथ ही बँटवारे की बात कहती हैं। सुभद्रा अपने पति और पिता के साथ जमीन को लेकर झगड़ना चाहती है। परंतु इसी बीच रामबाबू की मृत्यु होती है। मृत्यु से पहले वे अपनी बेटी के सामने कम जमीन वाले लडके के साथ ब्याहने का दुख व्यक्त करते हैं। तब सुभद्रा अपने पिता का दुख दूर करने के हेतु कहती है कि, उसे इस बात का कोई मलाल नहीं है कि उसे बहुत कम जमीन वाले लड़के के साथ ब्याहा है बल्कि वह बड़ी खुश है।

             अचानक सुभद्रा के पति की मृत्यु होने पर उसकी शहर में रहने की समस्या निर्माण हुई। बड़े बेटे को पिता की जगह रेलवे में नौकरी लग गईं और रहने की समस्या हल हो गई। एक साल के बाद दोनों बेटों की शादी की तैयारी हुई। छोटा बेटा कंप्यूटर इंजीनियर था। उसे दस लाख का पैकेज मिलता था। सभी लड़कीवालों को सुभद्रा कहती थी मेरे बेटे के सिर पर पुश्तैनी जमीन भी हैं। इस बात पर सभी का एक ही जवाब था हैं तो क्या? आज कौन नौजवान खेती करने जाता ह  नौकरी हैं नः" इस बात पर शादी हो गईं।

    बेटे के विवाह के बाद बड़ी जेठानी बोली, "सुभद्रा, कभी-कभी गांव आ जाया करो। बच्चों को पाल-पोस दिया, अब क्या? अब तो गांव भी शहर जैसा है।" इस बात पर सुभद्रा इतनी ही कहती, "आऊंगी दीदी, आऊंगी।" उसने ऐसे ही कह दिया था। उसे फुरसत ही नहीं थी।

             दोनों बेटों के दो घर थे, एक अलीगढ़ में और एक गूडगांव में। छोटे बेटे ने एक करोड़ का फ्लैट लिया था। छह लाख की गाड़ी ली थी। सब कर्जे पर लिया था। मनीष सुबह7 बजे से रात 9 बजे तक काम करता। यह देखकर सुभद्रा ने कहती, "तुम अपनी कंपनी के बंधुआ मजदूर हो क्या? यदि ऐसे स्थिति रही तो कौन लड़की तुम्हारी पत्नी बनकर घर में रहेगी।"

             मनीष का जिस लड़की से विवाह निश्चित हुआ था, उसे भी सात लाख का पैकेज था। लेकिन अचानक विश्व में मंदी की हवा चली। सबको फ्लैट, गाड़ी, पत्नी इस मंदी के कारण बोझ लगने लगे। मंदी का पहला प्रहार पैकेज पर हुआ। मनीष चुपचाप रहने लगा। सुभद्रा चिंतित थी। शाम को नौकरी से बरखास्त करने की चिट्ठी आ गईं। दूसरे दिन दूरभाष पर विवाह का रिश्ता तोड़ने की सूचना मिली। मनीष ने सुभद्रा को कहा, "अब क्या होगा, माँ?"

         सुभद्रा बोली, "एक उपाय मन में आया है, गांव लौटने का। चलो, वहां जमीन भी हैं और मेरे हिस्से की एक बड़ी कोठरी और आँगन का कोना। तुम्हारे पापा के सिर ढाई बीघे जमीन होने का बडा शोर सुना था। हमने उसका उपयोग नहीं किया। उनकी नौकरी की अनुकंपा नौकरी बड़े बेटे को मिली। पुश्तैनी जमीन तुम ले सकते हो। यह किसी की अनुकंपा नहीं, तुम्हारा हक हैं। जब तक मंदी है, हम गाँव की जमीन के सहारे जिंदगी बिताएंगे।" माँ की बात सुनकर मनीष आश्वस्त हो जाता है। सुभद्रा और मनीष गाँव जाने का निर्णय लेते है। दूसरे दिन के अखबार में अपने पैकेज वाले दोस्त की आत्महत्या की खबर पढ़कर वह अपनी माँ से लिपट जाता है। माँ की गोद में जिस तरह बच्चा आश्वस्त हो जाता है, उसी तरह मनीष के लिए भी उसकी ढाई बीघा जमीन माँ बन जाती है। जो सावन भादों की नदियों समान भरी रहती हैं-छलकती भी हैं, बहती हैं। उसे मंदी का अहसास से उभारने का काम करती है। दुर्दिन में ढाई बीघा जमीन ही संजीवनी बन जाती है।

 बहुविकल्पी प्रश्न:-

 1.' ढाई बीघा जमीन' मृदुला सिन्हा कहानी की है।

2. रामचरण सिंह की साढ़े सात बीघा खेती थी।

3. रामबाबू पेशे से शिक्षक थे।

4. सुभद्रा के पति का नाम किशोर था।

5. विश्व मंदी का पहला प्रहार पैकेज पर हुआ।

6 मनीष को आर्थिक मंदी के कारण नौकरी से बरखास्त कर दिया।

7. मनीष कंप्यूटर इंजीनियर था।

8. कर्जे पर मनीष ने छह.लाख की गाड़ी ली थी।

 9. सुभद्रा के बड़े बेटे का घर अलीगढ़ में था।

10. एक करोड़ रूपये कर्जे पर मनीष ने फ्लैट लिया था।

11) मनीष का घर गुडगांव में था| 

 12) किशोर रेल्वे में नौकरी करते थे|

 13) किशोर रेल्वे में किरानी(लिपिक) पद पर नौकरी करते थे| 

14) राम बाबू के चचेरे भाई का नाम राम हुलास है| 

15) रामचरण सिंह के तीन बेटे हैं| 

16) रामबाबू की बेटी का नाम सुभद्रा है| 


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