पात्र
राजनाथ – गांव के जमीनदार
मोहन – उनका लडका
शीला – उनकी कन्या,
मोहन की बहिन
निरंजन – मोहन का मित्र
स्थान – गांव के जमीनदार
का घर
रघुनंदन चौधरी / देवनंदन
चौधरी / निरंजन की बहन (इंटर)
समय – प्रात: काल
प्रस्तुत एकांकी में लक्ष्मी नारायण जी ने स्त्री-पुरुष के संबंध को
चित्रित किया है| शादी के पहले स्त्री-पुरुष दोनों अलग व्यक्ति होते हैं| दोनों में रुचि भेद, बुद्धि भेद होता है|
पर वही ‘एक दिन’ जो स्त्री-पुरुष के संबंध को नया रूप देता है और
वह दिन है, जब पुरुष कन्या का दान मांगता है| उस दिन के पहले दोनों का जीवन अलग होता है
और उस दिन के बाद जीवन कुछ अलग होता है|
इसके साथ हमारी संस्कृति में पुरुष ही कन्या
का दान मांगता है| इसलिए उसके जीवन में वह सबसे बडा धन होता है| इसी विश्वास पर ही दोनों का जीवन सुख और संतोष भरा रहता है |अत: इसके माध्यम मिश्र स्त्री अस्तित्व तथा उसके आत्मसम्मान को भी चित्रित
किया है|
एकांकी का प्रारंभ पिता राजनाथ और उनका बेटा मोहन के संवादों से हुआ
है|
मोहन अपनी बहन के लिये अपने
नैनिताल के दोस्त का रिश्ता लेकर आता है| इतनाही नहीं तो वह
आधुनिक विचारों वाला होने के कारण वह दोस्त को अपनी बहन को देखने के लिये अपने
गांव बुलाता हैं| यह बात पिता को पसंद नहीं आती|
कारण उन्हें लगता है शादी
से पहले लडकी को देखने वाला लडका असभ्य ही कहना चाहिए|
और लडकियों के आत्मसम्मान का भी खयाल रखना चाहिए | परंतु इसमें मोहन को
कुछ गलत नहीं लगता| वह कहता है कि इसमें क्या गलत लडका जिस लडकी के साथ शादी करना चाहता
है, उसे
पहले मिले, देख ले| लडकियों का कभी यहां स्वयंवर होता था| परंतु राजनाथ कहते स्वयंवर में लडकियों
वर कौन चुनता था?
फिर भी मोहन को लगता है कि
शीला उस घर में सुखी होगी| कारण निरंजन के पिता नैनिताल के सबसे बडे वकील है|
पर मोहन किस सुख की बात कर रहा है, यह बात राजनाथ के समझ में नहीं आ रही| कारण एक समय उनके
पिता गढी के जमीनदार थे और निरंजन के पिता देवनंदन चौधरी के पिता रघुनंदन चौधरी
उनके मुंशी थे | उस समय इनके घर में धन था और आज उनके घर में धन है|
इसलिये जो इनके घर में हुआ
है| वह उनके
घर में भी सो सकता है | इसलिये राजनाथ को लगता है अगर मनुष्य कों देखना
है तो धन, प्रतिष्ठा से अलग कर ..
उसे अपने गुणों से आगे बढना है|
और आज निरंजन और शीला के
संस्कारों में काफी अंतर है| और संस्कारों की जदें जल्दी नहीं उखडती| इसीकरण निरंजन के धन
से शीला सुखी होगी इसपर राजनाथ जी को संशय है| वैसे तो वह भाग्यवादी है, उन्हें लगता है, जब उसकी शादी होने
वाली है, तब होगी ही|
परंतु निरंजन का इसतरह उसे
देखने के लिये आना उन्हें पसंद नहीं| इसीकरण दोनों पिता-पुत्र में थोडी
आना-कानी होती है|
तब मोहन निरंजन को वापस जाने के लिये कहेगा ऐसा कहता| तब वह मोहन को
रोकते है और मेहमानों का ऐसा अपमान करना
ठीक नहीं |
वह शीला को बुलाने के लिए
कहते है | वैसे तो वह भाग्यवादी है, उन्हें लगता है, जब उसकी शादी होने
वाली है, तब होगी ही|
तब शीला निरंजन के साथ
बातें करने के लिये तैयार होती है|
शीला बेझिझक निरंजन से बातें करती है| इसके पहले निरंजन ने उसे कितनी बार बुलाया
था पर वह नहीं आती थी| देहाती लडकी है, लजाती
होगी| परंतु आज वह निरंजन को अपने मन की बात कहती है| उसे निरंजन पसंद है| परंतु हमारी संस्कृति में पुरुष ही कन्या का दान
मांगता है| इसलिये यह बात वह उसके पिताजी को कहेगा| अत: उस एक दिन में निरंजन का जीवन ही बदल जाता है|
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