प्रश्न:-
'कृष्ण की चेतावनी' कविता का आशय लिखिए|
प्रश्न
:- 'कृष्ण की चेतावनी' कविता पर आधारित 'जब नाश मनुष्य का नजदिक आता तब उसका विवेक मर जाता
है|' स्पष्ट कीजिए|
प्रश्न:-
कृष्ण ने दुर्योधन को कौन-सी चेतावनी दी थी?
कृष्ण
की चेतावनी कविता का भावार्थ :-
‘कृष्ण की चेतावनी’ रामधारी सिंह दिनकर लिखित कविता है| जो 'रश्मीरथी' काव्य संग्रह से ली है| जिसमें पांडवों ने अपना पंद्रह वर्ष का वनवास और एक साल का अज्ञात वास जब पूरा
किया तब उनके सौभाग्य के दिन वापस लौट आए थे| परंतु उन्हें दुर्योधन यह सौभाग्य दिलाना नहीं चाहता था | तब कृष्ण
उन्हें चेतावनी देते है की 'जब नाश मनुष्य का नजदिक आता तब
उसका विवेक मर जाता है|' ऐसे में वह भगवान के ताकद को भी भूल जाता है| तब
ऐसे अहंवादी व्यक्ति को इसका एहसास दिलाना पडता| तब भी
उसे यह समझ में न आए तो उसका विनाश अटल है| जैसे
महाभारत में दुर्योधन के साथ हुआ था| दुर्योधन के अहं
के कारण ही महाभारत का रण हुआ था| अत: महाभारत की इसी
घटना पर आधारित यह कविता लिखी गयी है और मनुष्य को इसका एहसास देने का प्रयास किया
है| अगर मनुष्य न्याय बुद्धी से नहीं रहेगा तो उसका
विनाश निश्चित है|अत: दुर्योधन के विनाश को प्रस्तुत कविता
में चित्रित किया है|
1) पांडवों को अधिकार दिलाने
के लिए शांतीदूत बने श्रीकृष्ण :-
वर्षों से वन में घुमकर पांडवों ने अनेक समस्याओं का सामना किया था, जिसके कारण उनमें एक साहस आ गया था| अब वे
हस्तिनापुर में अपना अधिकार प्राप्त करना चाहते है | कारण सौभाग्य हर दिन सोता नहीं|अब उनके सौभाग्य के
दिन आए है| परंतु पांडवों
को पता था दुर्योधन उन्हें आसनी से अधिकार नहीं देगा, इसीलिए
विध्वंस होगा | परंतु पांडव शांति से सब प्राप्त
करना चाहते है, इसीलिए वे भगवान यानी श्रीकृष्ण को
दुर्योधन को समझाने के लिए , भीषण विध्वंस को
रोकने के लिए, मैत्री की राह बनाकर सबको सुमार्ग पर
लाने के लिए पांडवों का संदेश लेकर शांति दूत बनाकर हस्तिनापुर भेजते है | इसीलिए कवि लिखता अब देखते है आगे क्या होता|
2)
समझौते का मार्ग बतानेवाले श्रीकृष्ण :-
वहां पहुंचने के बाद कृष्ण पहले समझौते से बात करते है| वे कहते है कि न्याय के अनुसार आधा हिस्सा दो, इसमें भी अगर कोई बाधा है , तो केवल पांच
ग्राम दे दो बाकी सारी जमीन अपने पास रखो हम उसीमें भी खुश रहेंगे| कारण हम अपने परिजनों पर तलवार उठाना नहीं चाहते|
3) क्रोधित हुए श्रीकृष्ण :-
समझौते के लिए दुर्योधन तैयार नहीं हुआ | उल्टा भगवान पर हल्ला करने के लिए आगे बढा| परंतु
भगवान को यूं बंधना आसान नहीं इसीलिये कवि कहते कि जो असाध्य था उसे वह साधने चला
था| पर वह कर नहीं सकता था कारण उसने समाज का भी
आशीर्वाद नहीं लिया | अब उसका नाश निश्चित है , इसीलिए कवि
कहते है जब मनुष्य का विवेक मर जाता है तब उसका नाश निश्चित है|तब भगवान ने अपना रूप विस्तार किया
और क्रोधित होकर बोले दुर्योधन जंजीर लेकर आ और मुझे बांध ले|
4) दुर्योधन को अपने विराट रूप
की पहचान देते हुए श्रीकृष्ण :-
दुर्योधन के बर्ताव से कृष्ण क्रोधित होते है और अपना परिचय देते हुए कहते
है की सारा संसार, उसकी ध्वनि, गगन, पवन मुझमें लय है अर्थात विलीन है| मुझसे ही अमरत्व फूलता है और मुझमें आकर नाश का विनाश होता है|मेरा मस्तक उदयाचल के समान अर्थात पूर्व के उस कल्पित पर्वत की तरह है जहां
से सूरज उगता है|उसकी छाती धरती के समान विशाल है| उसके भुजाओं ने क्षितिज को घेरा है| मैनाक-मेरू
पर्वतों की तरह उसके पैर हैं| जो ग्रह –नक्षत्र समूह के साथ प्रकाशित है, वह सब उसके
मुख के अंदर हैं| आगे वे कहते है कि अगर आंखे है तो मुझमें सारा ब्रम्हांड देख और मेरा यह अकांड दृश्य देख| जहां सजीव-निर्जीव जीव है| नष्ट होनेवाला –न होनेवाला जीवात्मा है, नश्वर मनुष्य है, तो अमर सुरजाति है| इसके अतिरिक्त यहां सौ कोटी
सूर्य, चंद्र ,नदी की धारा, तालब , तो मनोहर सागर हैं |इसके अतिरीत यहां शत कोटी विष्णु, ब्रम्हा, महेश हैं| शत कोटी विष्णु के अवतार, नक्षत्र और कुबेर हैं| शत कोटी शिव के अवतार
हैं, शत कोटी काल हैं, शत
कोटी लोगों का रक्षण करनेवाले राजे हैं| तू मुझे बांधना चाहता है न तो जंजीर बढाकर सबसे पहले उन्हें बांध| भूलोक अतल पाताल देख, गया और आनेवाला काल देख, जगत की आदि निर्मिति देख, महाभारत का रण देख, मृतकों से भरी हुई भूमि है, इसमें तू कहां
पहचान? अंबर में कुंतल जाल देख, पद के नीचे पाताल देख, मुठ्ठी में तीनों काल
देख यह मेरा विकाराल रूप है| मुझसे ही सब जन्म लेते है
और फिर वापस मुझमें ही लौट आते है| मेरे जिव्हा से घनी
ज्वाला निकलती है| मेरी सांसो में ही पवन जन्म पाता
है, इसलिए जहां मेरी दृष्टि पडती है वहां
सृष्टि हंसने लगती है| और जब मैं आंखे बंद करता हूं तो
चारों ओर मरण छा जाता है| ऐसे मेरे बडे विकाराल रूप को
तू बांधने इसके लिए तू क्या बडी जंजीर लेकर आया है| यदि
तेरा मन मुझे बांधना चाहता है, तो पहले अनंत गगन को
बांध ले| जैसे तू शून्य को साध नहीं सकता वैसे मुझे
बांध नहीं सकता|इसमें कवि ने दुर्योधन को भविष्य में
होनेवाले विनास का एहसास दिलाया है|
4) दुर्योधन को युद्ध की
चेतावनी देनेवाले श्रीकृष्ण
:-
आगे
श्रीकृष्ण दुर्योधन को चेतावनी देते है कि यह हित की बातें
तूने नहीं मानी और मैत्री का मूल्य नहीं पहचाना तो मैं
अब जाता हूं और अंतिम संकल्प सूनाता हूं, अब कोई
प्रार्थना नहीं सूनी जायेगी अब केवल युद्ध होगा जिसमें जय या मरण होगा| अब नक्षत्र के समूह टकरायेंगे, जमीन पर प्रखर
अग्निपुंज बरसेगा| शेषनाग का फण डोलेगा और भयावह काल
मुंह खोलेगा | दुर्योधन ऐसा रण होगा जो फिर कभी
नहीं होगा ऐसा होगा|
5) विनाश का जिम्मेदार
दुर्योधन:-
आगे श्रीकृष्ण कहते है कि ऐसा विनाश होगा कि भाई-भाई
से लढेगा, पानी की बूंद से
विष गिरेगा| कौआ-गीदड सुख लुटेंगे अर्थात धूर्त लोग सुख
से जियेंगे और सामान्य लोगों सौभाग्य मिट जायेगा| अंत
में तू मृत होगा और परंतु हिंसा देनेवाला तू होगा|अर्थात इस
विनाश के लिए केवल तू जिम्मेदार होगा|
4) भगवान के दर्शन से आनंदित
हुए धृतराष्ट्र और विदुर :-
श्रीकृष्ण की इस
चेतावनी से सारे लोग डर गए, सभा
सुन्न हो गयी, कुछ लोग चुप हो गए तो कुछ बेहोश हो गए| कारण उन्होंने
भगवान के रूप को पहचाना नहीं पर दो नर अर्थात धृतराष्ट्र और विदुर
संतुष्ट थे और सुख का अनुभव कर रहें थे| इसीलिए दोनों
आनंदित होकर प्रणाम करते है और निर्भय होकर भगवान का जय-जयकर करते है |कारण उन्होंने भगवान के
अस्तित्व को पहचाना था| इसीलिए उन्हें कोई डर महसूस नहीं हो
रहा था|
इसप्रकार
प्रस्तुत कविता में कवि ने भगवान के विकराल रूप का दर्शन कराते हुए, ऐसे व्यक्तियों को चेतावनी दी है, जो न्याय बुद्धि
से नहीं चलतेऔर जिनकी विवेक बुद्धि नष्ट होती है, समझो उनका
विनाश नजदिक आया है| जैसे दुर्योधन स्वयं अपने विनाश के लिए जिम्मेदार रहा था|
बहुविकल्पी प्रश्न :
1) कृष्ण की चेतावनी' कविता रश्मिरथी काव्य संग्रह से ली गई है।
2) रामधारी सिंह 'दिनकर' को उर्वशी
के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
3) 'कृष्ण की चेतावनी' कविता महाभारत पर आधारित है।
4) 'कृष्ण की चेतावनी' कविता में पांडव कौरवों से पांच गांव मांगते हैं।
5) 'कृष्ण की चेतावनी' कविता में श्रीकृष्ण कौरवो को चेतावनी देते हैं।
ससंदर्भ स्पष्टीकरण :
1. "तो दे दो केवल पांच ग्राम
रख्खो अपनी धरती तमाम।"
दीर्घोत्तरी प्रश्न -
1) 'कृष्ण की चेतावनी' कविता का आशय स्पष्ट कीजिए।
कष्ण की चेतावनी कविता
वर्षों तक
वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों
को चूम-चूम,
सह
धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये
कुछ और निखर।
सौभाग्य न
सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है।
मैत्री की
राह बताने को,
सबको
सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन
को समझाने को,
भीषण
विध्वंस बचाने को,
भगवान्
हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये।
‘दो न्याय अगर तो आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो
केवल पाँच ग्राम,
रक्खो
अपनी धरती तमाम।
हम वहीं
खुशी से खायेंगे,
परिजन पर
असि (तलवार) न उठायेंगे!
दुर्योधन
वह भी दे ना सका,
आशीष समाज
की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था
असाध्य, साधने चला।
जब नाश
मनुज पर छाता है,
पहले
विवेक मर जाता है।
हरि ने
भीषण हुंकार किया,
अपना
स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग
दिग्गज डोले,
भगवान्
कुपित होकर बोले-
‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझेयह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें
विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय
है संसार सकल।
अमरत्व
फूलता है मुझमें,
संहार
झूलता है मुझमें।
‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल
(धरती) वक्षस्थल (छाती) विशाल,
भुज
परिधि-बन्ध (क्षितिज) को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु
(पौराणिक पर्वत) पग मेरे हैं।
दिपते जो
ग्रह नक्षत्र निकर(समूह),
सब हैं
मेरे मुख के अन्दर।
दृग हों
तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें
सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर
जीव, जग क्षर-अक्षर,
नश्वर
मनुष्य सुरजाति अमर।
शत कोटि
सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि
सरित, सर(तालब ), सिन्धु(सागर) मन्द्र(मनोहर )।
‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि
जिष्णु(विष्णु के अवतार), जलपति, धनेश(कुबेर),
शत कोटि
रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि
दण्डधर(राजा) लोकपाल।
जञ्जीर
बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ
दुर्योधन! बाँध इन्हें।
भूलोक, अतल पाताल देख,
गत और
अनागत काल देख,
यह देख
जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से
पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।
‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के
नीचे पाताल देख,
मुट्ठी
में तीनों काल देख,
मेरा
स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म
मुझी से पाते हैं,
फिर लौट
मुझी में आते हैं।
‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों
में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती
मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने
लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी
मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता
चारों ओर मरण।
‘बाँधने मुझे तो आया है,
जंजीर
बड़ी क्या लाया है?
यदि मुझे
बाँधना चाहे मन,
पहले तो
बाँध अनन्त गगन।
सूने
(शून्य) को साध न सकता है,
वह मुझे
बाँध कब सकता है?
‘हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का
मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम
संकल्प सुनाता हूँ।
याचना
नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय
या कि मरण होगा।
‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू
पर वह्नि (अग्निपुंज)प्रखर,
फण शेषनाग
का डोलेगा,
विकराल
काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन!
रण ऐसा होगा।
फिर कभी
नहीं जैसा होगा।
‘भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से
छूटेंगे,
वायस(कौआ)-श्रृगाल
(गीदड)सुख लूटेंगे,
सौभाग्य
मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू
भूशायी (मृत) होगा,
हिंसा का
पर, दायी होगा।’
थी सभा
सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या
थे बेहोश पड़े।
केवल दो
नर ना अघाते (संतुष्ट)थे,
धृतराष्ट्र-विदुर
सुख पाते थे।
कर जोड़
खड़े प्रमुदित,
निर्भय, दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’!
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