लल्लू कब लौटैगौ - बनारसीदास चतुर्वेदी

 लल्लू कब लौटैगौ - बनारसीदास चतुर्वेदी 

‘लल्लू कब लौटैगौ’  बनारसीदास चतुर्वेदी लिखित रेखाचित्र है| जिसमें सोनपाल लोधे किसान का चरित्र चित्रित है| जिसका डालचंद नामक बेटा आठ साल पहले घर छोडकर गया है| जिसके आने की लालसा मन में लेकर जीने वाले आशावादी किसान की दुख भारी कहानी है| जो आज इस दुनिया में नहीं है|

साढे चार वर्ष पूर्व इस किसान ने चौबेजी को लल्लू कब लौटैगौ? यह प्रश्न पूछा था| जो आज भी उनके कान में घूम रहा है| उसकी पहचान बौहरे जी के कारण हुई थी|आगरे जिले के निकट खेडा गणेशपुर गांव है, वहां वह रहता था| साग- तरकारी बेचकर अपना गुजारा कर रहा था| जब बौहरे जी उसे लेकर आए थे, तब हाथ जोडकर बैठ गया था| वह बिल्कुल दुबला-सां आदमी था| उसने फटा हुआ साफा पहना था| गले की हड्डी निकल आयी थी और आंखे नीचे गड गयी थी|  उसकी यह रूपरेखा देख लेखक सोचते है कि इसकी मुलाकात लेनी चाहिए| कारण उसके साथ बातचीत करते वक्त उसका महत्व और अपनी क्षुद्रता का ख्याल नहीं करना पडेगा, वरना महात्मा गांधी, कविवर रविंद्रनाथ और मि. एन्ड्रज जैसे लोगों से बातें करते वक्त इसका ख्याल रखना पडता है| इसीलिए कुछा कृत्रिमता आती है| पर सोनपाल को इस बात की चिंता बिल्कुल नहीं थी कि मेरी बातचीत का क्या असर होगा| कारण वह इन सब महत्वों से बहुत दूर था|  और तो और बडे बडे लोगों से  बातें करने का मौका अनेक बार आया, ऐसी व्यक्ति से बाते करने का मौका नहीं आया| यह सोच कर लेखक उसकी बातें सून लेते है| 

लेखक कुछ पूछ ने पूर्व वही अपना दुख उन्हें बताता है| वह कहता है कि आप हमें जानते ही है, थाने के सामने तरकारी बेचते है| हमारा एक काम है| एक लडका किसी टापू में चला गया है| आठ बरस हो गये है, उसका पता लगा दीजिए| तब लेखक को उस किसान के दुख का पता लगता है| नहीं तो लेखक यह समझते थे कि अन्य साग तरकारी बेचनेवालों की तरह ही है| इसीलिए वह कभी-कभी अधिक तरकारी तक, उससे झगडा करके लेते थे|

उसकी बात सुनने के बाद लेखक उसे उसकी उम्र पूछते है| उसकी उम्र सत्तर हैं या पिचत्तर यह उसे पता नहीं था, पर गदर के वक्त उसका जन्म हुआ था इतना उसे पता है|  तुम्हारे लल्लू का तो मैं पता लगा सकूंगा, इसके पहले तुम अपना हाल तो सुनाओ ऐसा चौबेजी कहते है| तब सोनपाल कहता है, “ पता लग जयागौ, लल्लू लौट आवैगौ?” 

लल्लू लौट आएगा या नहीं यह मैं नहीं बतला सकता कारण यहबात मेरे हाथ में नहीं| सोनपाल नाराज होता है| और उसकी आंखों  में पानी आ जाता है | फिर उसने अपनी दु:ख गाथा सुनानी शुरू की|

मेरे बेटे का नाम डालचंद| दो-तीन बसर मदरसा में पढा है| कितना पढा मैं नहीं जानता, पर ग्यारह आने की किताब तक पढा है, इतना जानता हूं|  बहू को लेने के लिए ससुराल बमरौली कटारा चला गया था| परंतु उन्होंने बहू को भेजा नहीं| तब वह भांजे के पास पीपरमंडी आगरे में रुक गया| भांजे उसके साथ बमरौली कटारा चला गया| वह वापस आया, पर हमारा बेटा वापस नहीं आया| तब से उसका पता नहीं| बेटे के दुख में उसकी मां डल्ला - डल्ला कहते मर गयी| 

अब आंखे धुंधली हो गयी है| बोझ उठाया नहीं जाता| कैसे दिन कटेंगे| छोटा लडका है, पर वह कुछ काम का नहीं| जुआ खेलता है, कमाता कुछ नहीं| उसका विवाह कर दिया है| तरकारी बेचकर चार आने कमाता हूं जैसे- तैसे तीन आदमियों को गुजारा हो पाता है| आठ साल पहले डालचंद की चिट्टी चीनी डाट( ट्रिनीडाड) आई थी| फिर कुछ पता नहीं चला| अपनी दुख भरी कहानी बताकर सोनपाल ने गहरी सांस ली| 

  तब लेखक कहते है वे लल्लू का पता लगाने का प्रयास करेंगे ऐसा कहते| पर वह मिलेगा ही यह नहीं बता सकते| तब लेखक  ट्रिनीडाड के दोस्त को पत्र लिखते है| कई  महिनों के बाद एक मित्र मा. रैवरैंड सी. डी. लाला का उत्तर आता है| उससे पता चलता कि वह सन 1916 में शर्तबंदी कुली की हैसियत से वहां गया है| वह स्वस्थ है और साथ में उसकी लिखी चिट्टी भी भेजते है| जिसमें वे सोनपाल, फकीरचंद, भाई गेंदलाल, मौजराम, वीरीराम, गोवर्धन, भाविजी, आगरेवाले रामप्रसाद, खरगसिंह शोभाराम इन सबको नमस्कार करते है| गांववालों को सबको राम-राम पहुंचाता है| आगे कहता है कि परमेश्वर की मेहरबानी हुई तो अपनों से मिलेंगे, नहीं हुई तो चीनीडाट टापू में ही पडे रहेंगे| कारण अभी दस वर्ष पुरे नहीं हुए दस वर्ष पुरे हुए तो  एक सौ पांच रुपये किराया नहीं हुए तो दो सौ दस रुपये किराया लगेगा| अपने दो बेटों का हाल भी वह पुछता है| 

जब यह चिठ्ठी चौबेजी ने सोनपाल को जाकर दी, तब आठ साल के बाद अपने बेटे के हाथ की चिट्टी देख वह बहुत प्रसन्न होता है| उसके पत्नी को तो बहुत हर्ष होता है| लोधे जाति की होते हुए भी उसने दूसरी शादी नहीं की थी| तब सोनपाल चौबेजी को पूछता था ‘हमारा लल्लू कब लौटोगौ? 

लल्लू वापस आए इस अपेक्षा उन्होंने अपने बेटे को उसके मां के मरने तक की खबर नहीं भेजी| वह सोचते है अगर मां के बारे में उसे पता चला तो वह वापस नहीं आयेगा|  जैसे उस बुढे के मन में नवीन आशा का संचार हो गया था| अब वह हररोज चौबेजी जी के घर साग दे जाने लगा था| तीन-चार कुटुंब लायक तरकारी लाकर पटक देता|  वह पैसे देने लगते तो उसके आंखों में आंसू आते| कहता आपने लल्लू का पता लगा दिया है| इस तरह लल्लू के लौटने की आशा में वह कुछ दिन जिता रहा|

चौबेजी ने अनेक बार सोचा कि श्री शिवप्रसाद गुप्त को सारा किस्सा भेजूं और डालचंद के किराए दो सौ दस रूपए भेज दूं| उनकी प्रार्थना पर गुप्त जी  आवश्य यह  काम करते| परंतु कुछ संकोचवश और आलस्यवश यह काम नहीं कर सके| वृद्ध बेचारा प्रतीक्षा करता रहा| परंतु साल भर में उसकी यह प्रतीक्षा समाप्त हो गयी| आखिर वह बिमार हो गया| उसके बिमारी की खबर मिली परंतु वह देखने के लिए नहीं गए| वैसे तो दो-तीन मिल की दूरी पर ही किसान का गांव था| एक दिन अकस्मात उनके छोटे बेटे ने आकर यह समाचार किया कि उसके पिता चल बसे| मरते वक्त भी उन्होंने कहा कि चौबेजी से पूछ लेना लल्लू कब लौटोगौ?

अपने बेटे का नाम लेके दोनों पति-पत्नी मर गये| दोनों के मरने की खबर एक साथ ही डाल चंद को भेज दी गयी| डालचंद इससे दुखी हुआ होगा, वही जानता है|  

और यह सुना है कि किसी गांव में अपने मायके एक स्त्री रहती है, जिसने अपने पति के याद में चौदह बरस बिता दिए| पति कैसे आता?  ट्रिनीडाड यहां से पंद्रह हजार मिल दूर है और बीच में सात समुद्र है| अत: लल्लू अब तक नहीं लौटा| इसीलिए चौबे के कान में सोनपाल बुढे के शब्द आज भी घूम रहे है, ‘लल्लू कब लौटेगौ?

इसप्रकार प्रस्तुत रेखाचित्र में ऐसे किसान का रेखाचित्र खिंचा है, जिसका बेटा उसे छोडकर सात समुंदर पार गया है| जिसके आने की प्रतीक्षा में उसने अपने प्राण तक छोडे| 

 


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