जांच अभी जारी है - ममता कालिया

 जांच अभी जारी है - ममता कालिया 

‘जांच अभी जारी है’  ममता कालिया लिखित कहानी है| जिसमें राष्ट्रीय कृत बैंक के भ्रष्टाचार को चित्रित किया है| साथ में नौकरी करनेवाली महिला की समस्या को चित्रित किया है|  

‘जांच अभी जारी है’ कहानी की नायिका अपर्णा जोशी है | जिसे शिक्षक प्राध्यापक बनना बासी और निरीह लगता है, इसीलिए विश्वकर्मा डिग्री कॉलेज में प्राप्त शिक्षक की नौकरी छोड उसने राष्ट्रीय कृत बैंक में नौकरी पकड ली थी| जो उसने अपने बलबुते पर प्राप्त की थी| इसीलिए माता-पिता को गौरव महसूस होता है| माता- पिता कहते है, हमारी बेटी ने अपनी लियाकत के बूते यह जगह पायी हैं| हजारों ने इम्तहान दिया, पर पास तो बिरले ही हुए! भगवान तुझे दिन-रात तरक्की दें|” 

अपर्णा मेहनत और एकाग्रता से काम करती है, इसीलिए उसे मुख्य हॉल में ड्युटी मिलती है| वह बैंक के काम से बहुत प्रभावित रहती है| बैंक में दो बजे तक का समय पलक झपकते ही बीत जाता है, कारण यह पब्लिक डीलिंग का समय रहता है| उसके बाद असली काम शुरू होता है| गार्ड शटर बंध करता है और अंदर पैसे- पैसे का हिसाब मिलाया जाता है| दस पैसे या दस रुपये की भी अगर गडबडी हो जाए तो पुनश्च कागजात मिलाए जाते है| अपर्णा सोचती है कि भूल -चूक लेनी देनी कह अपने पर्स से वह दस रुपये उसमें डाल दिए जाये| परंतु बैंक में भूल-चूक वाला मुहावरा नहीं चलता| इसीलिए बैंक का प्रत्येक कर्मचारी प्रामाणिकता से काम करता है| कुली की नियत कभी खराब नहीं हुई| बैंक के इसी प्रामाणिकता से अपर्णा प्रभावित हुई थी| बैंक में जगह-जगह पर लगे नारे उसे अर्थपूर्ण लगते| जैसे ‘परिश्रम ही देश को महान बनता है’, अनुशासन आज की जरुरत है|’ 

उसे रात में भी बैंक से जुडे ही अपने आ रहे थे|  उसके बैंक में दो महिलायें काम करती है| उसमें मिसेज श्रीवास्तव ने उसे सतर्क करने हेतु कहा था, “संभल रहना अपर्णा, ये शादी- शुदा मर्द बडे खतरनाक होते हैं| पहले आतुर, फिर कातर, और फिर शातिर, एकदम, पन्नालाल हैं सब के सब|” अपर्णा को तो सारे मर्द सीधे लगे| उस ऐसा कभी लगा ही नहीं कि वह मर्दों के बीच काम कर रही है| परंतु उसका यह विश्वास ढाई महिने मी टूट जाता है| बैंक के शाखा प्रबंधक मि. खन्ना ने उसे पूछा आज शाम क्या कर रही हों? उस वक्त मां की बिमारी को बताकर अपर्णा छूट गयी| परंतु आगे कुछ ही दिनों में मि. सिन्हा ने  उसे पूछा| अब की बार वह इन्कार नहीं कर सकी| मि. सिन्हा के बेटे का जन्म दिन था, परंतु वह अपने मां के साथ बनारस गया हुआ था| उन्हें अपने बेटे की याद आ रही थी इसीलिए दो - चार दोस्तों को बुलाकर पार्टी का आयोजन किया था| केवल बीस मिनट के लिए वह अपर्णा को रुकने के लिए कहते है और अपर्णा रुकती| 

परंतु उसे अलग ही दृश्य नजर आता| वहां विस्की की पार्टी थी| अपर्णा क्रोधित होकर वहां से निकल जाती है| राष्ट्रीय कृत बैंक ऐसा इस्तमाल अपर्णा के लिए धक्का था| बैंक में नौकरी करने आज उसकी अखड खंडीत हो गयी| 

ऐसे में साल बीत जाता है| साल बीतने पर बैंक का कर्मचारी एल.टी. सी. प्राप्त करने का अधिकारी बनता है| ऐसे में मां ने कहा कि तू छुट्टी ले ले हम जगन्नाथपुरी घुमने  के लिए जायेंगे| अपर्णा भी बहुत दिनों से कुल्लू- मनाली जाना चाहती थी| इसीलिए उसने छुट्टी ले ली, परंतु अचानक पिताजी के सीने में दर्द उठने की वजह से वह स्टेशन की बजाय अस्पताल पहुंच जाती है| 

इसकी खबर वह अपने अधिकारी को फोन करके देती है और सोचती है कि दस दिन के बाद जब वह दफ्तर जायेगी तो एडवांस वापस कर देगी परंतु मि. खन्ना और मि. सिन्हा ने उसे सबक सिखना चाहते है| तय यही हुआ था कि नये अपरिपक्व, अनुशासनहीन अधिकारी हैं, उन्हें सबक सिखाया जाये और उनकी लीपापोती कतई मंजूर न की जाये|” 

परिणामस्वरूप अपर्णा दस दिन के बाद जब दफ्तर में पहुंचती तब चपरासी उसके हाथ में रजिस्टर लिफाफा पकडा देता है| उसपर धोखा धडी का केस दर्ज किया है| उसने एल.टी. सी. का झूठा बिल पेश कर बैंक के साथ धोखा धडी की है| उसने तो शाखा प्रबंधक मि. खन्ना को फोन किया था| सिंन्हा भी उनके साथ है|परंतु वे इन्कार करते है और जो कुछ कहना वह लिखित रूप में दे, ऐसा भी कहते है| 

इससे अपर्णा बिल्कुल नहीं डरती कारण वह सच्चाई उसके साथ है| उसके पिता भी कहते है, “तू बिल्कुल न डर| सत्य में आज भी शक्ति है| मेरी इतनी उम्र हो गयी, मैने आज तक झूठ का सहारा नहीं लिया और मैं कभी घाटे में नहीं रहा| अत: वह अपने पिता के साथ क्षेत्रीय कार्यालय में बडे साहब से मिलने के लिए जाती है| उनका क्षेत्रीय कार्यालय कानपुर में है| वह जिस अधिकारी से मिलना चाहती थी वह कही बाहर घुमने के लिए गये थे| तब वह कनिष्ठ अधिकारी से मिलने का प्रयास करती| वहां भी उसका और पिताजी का चपरासी द्वारा अपमान होता है| वह उस अधिकारी को यह बताने का प्रयास करती है कि उसके विश्वसनियता पर संदेह न किया जाए| परंतु वे अधिकारी उसकी एक भी सून नहीं लेते| उल्टा उसे कहते है कि आपके विरुद्ध जांच की कार्यवाही तो करनी पडेगी|

जिसके लिए एक जांच समिती नियुक्त की जाती है| जिसमें  क्षेत्रीय कार्यालय के एक अधिकारी प्रीतमसिंह, युनियन के प्रतिनिधि समीर सक्सेना और एक अन्य अधिकारी जांच समिती में थे| अब अपर्णा अपने आप को बेहद फंसा हुआ पाती है| वह प्रत्यक्ष प्रीतमसिंह  और समीर सक्सेना से मिलने का प्रयास करती है| उन्हें खन्ना  और    सिंन्हा का औरतों के प्रति व्यवहार ठीक नहीं है, यह बताने का प्रयास करती| वह अपने सहयोगी फरीदा जलाल को उन्होंने जो गंदे शेर लिखे है, उसके बारे में बताती है, परंतु फरीदा उसे मदद करने के लिए तैयार नहीं होती| अब उसे अपनी हर महसूस हो रही| दिनोदिन उसकी फील बढती ही जा रही थी|

कभी- कभी उसके मन में आता सीधे वित्त मंत्री के नाम पत्र लिखूं, पर वह जान गयी थी इस पत्र का नतीजा भी यही होगा एक और जांच समिती बैठा दी जायेगी| अब उसके ही ओफिस में उसका कोई सम्मान नहीं| अठराह सौ रुपये पर जांच  बैठाई थी जिस पर अब तक अट्ठाईस हजार खर्च हो गये थे|

अपर्णा के मन में अब आक्रोश पैदा हो रहा था, वह खन्ना और सिंन्हा को मारने के बारे सोच रही थी| वह चीख चीख बताएगी राष्ट्रीय कृत बैंक में किस प्रकार घपले और सौदेबाजी होती है| सबकुछ समझते हुए भी अपर्णा आवाज नहीं उठ पाई| 

जांच एक अधिकारी उसका ढांढस बांधने का प्रयास करते है| सबकुछ मिटा देंगे और तुन्हारा तबादला दूर करेंगे| वहां तुम नये सिरेसे जिंदगी शुरू करना| परंतु वह सोचती है, इतना आसन है यह? कारण दुनिया की नजरों में वह एक गुन्हेगार बन गयी थी| हर शुक्रवार और शनिवार उसके गुन्हेंगारी की जांच हो रही | वह इसमें से निकलने की कोशिश में और उसमें उलझती जा रही थी| इसीलिए जांच अभी तक जारी है| 

इसप्रकार प्रस्तुत कहानी में राष्ट्रीय कृत बैंक के भ्रष्टाचार को चित्रित किया है| और प्रामाणिकता से नौकरी करनेवाली महिला की समस्या को चित्रित किया है|        




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