दास्ताने कबुतर - कुसुम अंसल

                                             6) दास्ताने कबुतर - कुसुम अंसल


कुसुम अंसल का परिचय :-

        कुसुम अंसल का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में 1 अगस्त, 1940 ईस्वी को हुआ|  कुसुम जी के पिताजी श्री. सुरेंद्र कुमार अलीगढ़ के बड़े ताले  व्यवसायियों में से एक थे| इनकी माता जी श्रीमती सुशीला रानी एक कुशल गृहिणी थी| इनके दो बड़े भाई हैं विनोद और प्रमोद सहगल| वह अमीर घर की एकलौती बेटी है| कुसुम जी जब 11 महीने की थी तब उनकी मां का देहांत हो गया था| मां की मृत्यु के पश्चात उनकी बुआ यशोद रानी  ने उन्हें गोद ले लिया था|

         कुसुम जी की आरंभिक शिक्षा - दीक्षा अलीगढ़ के टिका राम कॉलेज में हुई| स्कूल के अलावा घर पर पढ़ने के लिए एक मास्टर जी आते थे| जब वह 10 साल की हुई तब उनकी बुआ और फूफा जी आगरा चले आए, तब कुसुम जी उनके साथ आगरा आई थी और उनकी अगली पढ़ाई आगरा में यथावत शुरू हुई| आगरा से इंटर साइंस करने के बाद फ्री मेडिकल की परीक्षा देने की तैयारी करने लगी| परंतु उनके पिताजी को मेडिकल पढ़ना पसंद नहीं था इसीलिए उन्होंने मनोविज्ञान में एम. ए. की पढ़ाई पूरी की| और आगे चंडीगढ़ विश्वविद्यालय से 'समकालीन उपन्यासों में महानगरी बोध' विषय पर पीएच.डी के लिए अनुसंधान कार्य किया| 

        सन 1961 में एम. ए. पास करते ही पिताजी ने उनका विवाह निश्चय किया और सुशील अंसल से उनका विवाह  1962 में  हो गया|उन्हें तीन संतानें हैं - अर्चना, अल्पना और बेटा प्रणव | कुसुम जी जब एम.ए. में पढ़ रही थी उसी समय उन्होंने कहानियां, कविताएं और तीन उपन्यास उनकी रचना की थी| उर्दू पत्रकार सलमान की सलाह पर अपना पहला उपन्यास 'अतीत के आंचल' प्रकाशित करने का सोच थी, परंतु उसे समय सलमान कहीं गायब हो जाते हैं| | बाद में इस उपन्यास का नाम बदलकर 'उदास आंखें' रखकर पॉकेट एडिशन के रूप में प्रकाशित किया| कुसुम अंसल ने अब तक नौ उपन्यास, सात कविता संग्रह, छह कहानी संग्रह, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, बांग्ला में कई कृतियां अनुदित| चर्चित उपन्यासों में 'एक और पंचवटी', 'उदास आंखें',  'नीव का पत्थर'| 'एक और पंचवटी' पर तो हिंदी फिल्म भी बन चुकी है|

 कविता संग्रह

 1) मन के दो पल

 2)दो दोहे का सच

3)  विरूपी करण 

4) चार मेरा होना

 5) समय की निरंतरता में

 6) पंख एक भेंट

 कहानी संग्रह

1) स्पीड ब्रेकर

 2)पत्ते बदलते हैं

3) 31 कहानियां

4)  वह आया था

 उपन्यास

1)  उदास आंखें

 2) न्यू का पत्थर

3)  उस तक

4) अपनी-अपनी यात्रा

 5) एक और पंचवटी

6)  रेखा कृति

 7)  तापसी

 आत्मकथा

जो कहा नहीं गया

 यात्रा वृतांत

आकृतियों का अतीत

 शोध

आधुनिक हिंदी उपन्यासों में महानगरीय बोध

 नाटक

रेखा कुर्ती और उसके होठों का सच

 निबंध

चेतना का कोलंबस

 अनुवाद

 एक सींग मी नो सॉन्ग

 ट्रैवलिंग विद सन  सनबीम

 माय लवरस  नेम एंड  अदर  स्टोरीज

शेलटरिंग रौडोज 

एज  आई एम

कल्वर्स 

6) दास्ताने कबुतर कहानी का कथ्

दास्ताने कबुतर  कहानी का उद्देश्य:-

1) मानवी जगत में बढ रही अमानवीयता का चित्रण करना|

2) धर्म के नाम हो रहे अधर्म की बातों का पर्दा फाश करना|


कहानी के पात्र  

चार  कबूतर – चितकबरे, दो कबूतर, निलेधारी

विकास मार्ग पर बच्चे को जन्म देनेवाली औरत 

ताऊ

चाचा

एक लडका

मोटी तोंदवाला पंडित

बारह-तेरह साल की कमसिन

कहानी का कथ्य

पहला प्रसंग – विकास मार्ग पर घटी घटना  

दूसरा प्रसंग – शहर से दूर उजाड खंडहर की घटना 

तिसरा प्रसंग -जन्माष्टमी के दिन की मंदिर की घटना 

'दास्ताने कबुतर' कुसुम अंसल लिखित कहानी है|जिसमें तीन प्रसंगों के माध्यम से मानवी जगत की अमानवीयता का चित्रण किया है।

पहला प्रसंग – विकास मार्ग पर घटी घटना  

कहानी का प्रारंभ कबूतरों के संवादों से हुआ हुआ हैं |  हर सुबह सारे कबूतर तसले के पास पानी पिने के लिए इकट्टा होते हैं| जिसमें चितकबरे, नीलेधारी, पहला कबूतर, दूसरा कबूतर समाविष्ट हैं| हर सुबह वह अर्थवान   ऊर्जा के साथ आते हैं और एक दूसरे को ऊर्जा देते हैं| परंतु आज पहला कबूतर बहुत उदास हैं|

वह गट गट पानी पीने लगा है| उसके सारे दोस्त वह कल कहां गया था, यह पूंछ रहे| तब वह विकास मार्ग पर हुई घटना अपने दोस्तों को बताता हैं, जो इन्सान के दुनिया की हैं| मानव किसप्रकार अपनी संवेदना भूल रहा हैं, अपने इमान को गिरवी रख रहा हैं और  वह अमानवीय बनता जा रहा हैं, इसकी यह कहानी हैं| शहर के विकास मार्ग से मानव का कैसा विकास हो रहा हैं इसपर कबूतर खेद व्यक्त करते हैं|

पहला कबूतर कहता कि मुझे विकास मार्ग उस सडक पर जाना बहुत पसंद है , कारण वहां दुकानें हैं, सडक पर लोग खचाखच भरे रहते हैं, हंसते हैं... मुझे अच्छा लगता है, तुम जानते हो भाई आनंद ही हमारी खोज है| हां वहां चाट पापडी के ठेले लगे रहते है, जहां कूडे के ढेर में बहुत कुछ मिलता है खाने को|  वहां दरिद्र बच्चे भी आते है| झूठी पत्तलों के गिरते ही उनके उदास चेहरे पर जो हंसी की लहर आती है, वह भी मुझे बहुत अच्छी लगती है... |

चितकबरा कहता हैं कौनसी हंसी दरिद्र के चेहरे पर हंसी मारिचिका की बात कर रहे हों  तुम ..खाने पर झपटना तो उनकी रोज की दिनचर्या है ...हंसी-हंसी वह कहां आती है, उनके सूखे होठों पर|इसी जगह पर कल मैं गया था| वहां विकास मार्ग पर मैंने अमानवियता का का दर्शन किया| वह देख मुझे ऐसा लगा कि “ क्या इन्सानों की दुनिया में ‘ईमान’ को ग्रहण लग गया? ऐसा होता हैं इन्सानों का जमीर?”

 सच में इन्सान अपनी इंसानियत भूल रहा हैं| उसकी संवेदना मर रही हैं| कल मैंने देखा सडक के कोने में एक जवान औरत फुथपाथ के उस छोर पर कराह रही थी और अपने पैर बार-बार सिकुड रही थी|

मेरी मदद करो ऐसा पुकार रही थी| पर किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं था| इतने में उस औरत ने रास्ते में ही बच्चे को जन्म दिया| बच्चा रो रहा था ...लिथडते खून मे पडी एक नन्ही सी जान फडफडा रही थी|

 मैं भी कुछ नहीं कर सका| न जाने कितने जूते चप्पल बहुत से पैर वहां से टकराते हुए चले गए, पर सब कान में लगी काली डिब्बी  के साथ बातें करने में व्यस्त थे| अब मैंने देखा कि लोग एकदूसरे बातें नहीं करते| चार लोगों में भी खडे हो तो उसके साथ ही बातें करते है|

चितकबरा कहता वह बात छोडो आगे हो गया वह तो बताओ| आगे उस औरत की चीखें गुम हो गयी और वह एक एक गहरे मौन में डूब गयी| “ हां शहर वह विकास मार्ग था मेरे भाई जहां वह औरत मरी थी|

वहां जुलूस निकाल सकते है लोग| किसी खास आदमी के मरने पर मोमबत्तियां जला सकते हैं| वह संवेदनशील जनता मंदिर-मस्जिद तोड सकती है, पर एक बेसहारा औरत को सहारा देना इनके कर्तव्य का कोई हिस्सा नहीं था| “अजीब है यह महानगरी का विकास मार्ग?” मैं वहां बैठा था बच्चे के पास, मक्खियां उडा रहा था| तभी एक पदचाप, एक लडकी वहां ठहर गई और झुककर उसने रोते बच्चे को उठा लिया, अपने दुपट्टे में लपेट उसे सहलाने लगी|

“सोचा चलो कोई तो निकाला दयावान” मैंने भी खुश होकर अपना पंख उसकी झोली में गिरा दिया| आशीर्वाद देना परिंदों का फर्ज हैं|
परन जाने कितनी देर वह बच्चा पडा रहा| कोई भी नहीं रुका ? कितना समय लगता है, पूछ लेने में किसी का दर्द बांट लेने में? ये आदमी क्या अपनी आदम जाति के प्रति इतने उदासीन हो सकते हैं| 

दूसरा प्रसंग – शहर से दूर उजाड खंडहर की घटना 

दास्ताने कबूतर का प्रसंग दो बंदी हुए बच्चे की  कहानी है| जिसे शहर से दूर उजाड खंडहर में बंदी बनाकर रखा था| कबूतर विकास मार्ग की घटना से दुखी होकर शहर से दूर खंडहर की ओर उडकर गये थे| तब वे एक बच्चे के रोने की आवाज सुनते हैं| तब कबूतर जहां बच्चे को बंदी बना के रखा है वहां के खिडकी के पासवाले पत्थर पर जाकर बैठता है| तब वह बच्चा बताता हैं की उसे बंदी बनाने वाले कोई और न होकर उसके के सगे चाचा है| मैं स्कूल से लौट रहा था कि चाचा ने मुझे गाडी में बैठने के लिए कहा, चाचा मेरे अपने पहचानवाले थे न!

इसीलिए मैं गाडी में बैठ गया| इतने में ताऊ ने मेरे मुंह पर रुमाल रख लिए और जब होश आया तब इस खंडहर में पाया| अपनों पर विश्वास रखना मेरा जुर्म हो गया है| अब वे मेरे अपहरण का मुआवजा चाहते है| पर मेरे पापा के पास इतने पैसे नहीं है| वे सीधे सच्चे इन्सान है, मामूली सी नौकरी करते है, पता नहीं किस हाल में होंगे... यह कहते – कहते बच्चा रो पडा| इतने में कोठरी का दरवाजा खोला और एक आदमी भीतर आया| और बच्चे को बडी बेरहमी से खाना दिया और कहा कि जब तक तेरे बाप से पैसे वसूल नहीं होते, तुझे जिंदा रहना होगा|  

उसने भी जेब से काली डिबिया निकाली और बेटे को बाप से| बेटा पापा से कहता है कि मुझे इस कोठरी से बाहर निकालो मेरा यहां दम घुट जायेगा| इतना कहा नहीं की काली डिबिया छिनकर जेब में रख दी| बच्चा चीखता रहा चिल्लाता रहा| और कहता रहा कि मेरे पापा गरीब हैं| कहां से लायेंगे इतने पैसे? उल्टा उस आदमी ने बच्चे के मुंह पर जोर से दो चाटे लगाये और बाहर निकल गया|  काली डिबिया क्या काला जादू है? अरे नहीं इसे मोबाईल फोन कहते है... एक यंत्र, बात करनेवाला आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान|

नीली लकीरवाला परेशान होकर कहता है, “ फोन, यंत्र हम क्या जाने, हमारी भाषा तो शब्द, स्पर्श, रस और गंध है... पर यह यंत्र क्या कभी किसी का भला नहीं करता? अवश्य ही किसी शैतान ने गढा है इसे, अपनी जादुगरी के लिए? तब कबूतर पुरानी तरकीब से बच्चे को छुडाने के बारे में सोचते है| अर्थात चिठ्ठी उसे मां- बाबा के पास पहुंचाकर... तब कबुतर खिडकी के पास पहुंच गये| तब उन्होंने देखा की एक आदमी बच्चे के मृत शरीर को बाहर ले जा रहा था| इतना ही नहीं तो चाचा ने उस बच्चे का चेहरा जुतों से इतना कुचल दिया की पहचान ही नहीं पाए|

यह देख वह चारों कबूतर फडफडायें, पर उनकी फरियाद कौन सुनेगा वह परिंदे जो ठहरे|बच्चे को अगर छोड देते तो बता देता... इसीलिए उसे मार दिया जाता है| इतना नहीं तो पैसे न मिलने के कारण चाचा –ताऊ उसकी लाश पर थुकते हैं| सारे आदमी निकल गए| कबूतर तो आंखे फाडकर केवल देखते रह गये इन्सान के जगत की अमानवियता|  

तीसरा प्रसंग – जन्माष्टमी के दिन की मंदिर की घटना 

खंडहर में हुई  बच्चे की मौत देख कबूतर गहरी काली चुप्पी में खो जाते है| इस चुप्पी को तोडते हुए निलेधारी कहता है चलो घर चलें| इस पर दूसरा कबूतर कहता हैं, हां अब चलना चाहिए सुबह से हमने कुछ खाया भी नहीं| पता नहीं हम क्यों भटक रहें हैं, इन्सानों की दुनिया में? जहां हमारे उदासी की अहमियत ही नहीं| अन्य कबूतर कहता है सच है दुख चाहे कितना भी क्यों न हो, भूख को झुठलाया नहीं जा सकता इसीलिए अब चलना ही चाहिए| तब्ब सारे कबूतर एक साथ उडने लगते है|  

चितकबरे कहता है पर इस वक्त कहां मिलेगा खाना? ढाबे पर चलते हैं, जहां भिखमंगे बच्चों का जत्था बैठता है| दूसरा कबूतर बोला| चितकबरे कहता है, वहां नहीं जायेंगे, कारण भिखमंगे बच्चों का रोटी तुकडे के लिए लडना झपटना अच्छा नहीं लगता| तो क्या तुम्हें ढाबे के भीतर जो मुर्गों की टांगे चबाई जाती है, वह अच्छा लगता है| न जाने कितने मुर्गों की जाने जाती है हररोज? खैर मनाओं यार हमारे शरीर के अंदर ज्यादा गोश्त नहीं, नहीं तो यह इन्सान हमें नही खा लेता| पहला बोला|   

ढाबे पर हो रहे बली को देख कबूतर वहां नहीं तो  मंदिर की ओर निकल पडते है| कम से कम वहां तो मानव कोई अनैतिक काम नहीं करता होगा, ऐसा कबूतरों को लगता है| ऊपर से आज जन्माष्टमी है| लोग भगवान को प्रसाद का भोग लगाते, मिठाई खाने को मिलेगी, यह सोच कबूतर मंदिर की ओर उड चलते है| उस दिन मंदिर को छोटी-बडी बल्बों की लडी से सजाया गया था| जो जल-बुझ रही थी| मंदिर के भीतर मंजिरे-ढोल तथा गाने कर्णभेदी स्वर से भक्तिमय वातावरण बन गया था| 

 मंदिर के मुख्य द्वार पर बहुत भीड थी| भक्तजन धक्का मारकर एक दूसरे के आगे निकल जाने की होड में लगे थे| कबुतरों को भूख लगी थी इसीलिए वे सोच रहें थे मंदिर में बटोरे हुए प्रसाद के अवशेष को कहां फैंका जा रहा है| तब वे देखते है कि वह सारा सामान मंदिर के पिछवाडे में फेंका जा रहा है| तब कबूतर मंदिर के पिछवाडे में पहुंच जाते है|  चितकबरा पहले से कहता है कम से कम आज तो मंदिर का पिछला दरवाजा खुला रखते, तो सामने इतनी भीड नहीं होती|  

तब पहला कहता है अरे यह कमरा है, दरवाजा नहीं| जहां भंडारा रखा जाता होगा| अरे नहीं यहां पे मोटी तोंद वाला पंडित रहता है, जो लोगों की जन्मपत्रियां बांचता है| सब हंस पडे| सबकी हंसी से चितकबरा  खुश होता है| परंतु यह हंसी ज्यादा समय तक नहीं रहती, कारण पुनश्च्य उन्हें मानव की अनैतिकता दर्शन होता है|

  कारण मोटी तोंद वाला पंडित कमरे से बाहर निकलकर, इधर-उधर देख अखबार के कागज में लपेटकर कुछ फेंक देखा है| निलेधारी को लगता है, कुछ खाने के लिए होगा| वह लेने के लिए आगे दौडता है|   

इतने में कमरे से बारह-तेरह साल की कमसिन को कमरे के बाहर धकेल दिया जाता है| वह बदहवास होकर दौड रही है| तब उन्हें समय में आता है कि अखबार में क्या फेंका गया होगा| परंतु निलेधारी ने उसे चोंच लगाई थी| इसीलिए वह अपने चोंच को धो-धोकर शुद्ध करता है|

  लडकी अवस्था देख वह सोचते है शायद उस कमसिन का अंत भी वही होनेवाला था, जैसा फुथपाथ के छोर पर कराहती, प्राण देती स्त्री का हुआ था|

  तीनों चुपचाप अंधेरे में नि:शब्द होकर बैठ गए|   



बहुविकल्पी प्रश्न

1) 'दास्ताने कबूतर' कहानी की लेखिका कुसुम अंसल है।

2) सब कबूतर पानी से भरे तसले ले पास बैठे थे।

3) कल पानी पीने के बाद कबूतर विकास मार्ग की ओर चल पड़ा था।

4) झूठी पत्तलों के गिरते ही उनके उदास चेहरे पर जो हंसी की लहर आती है वह भी मुझे अच्छी लगती है।

5) दरिद्र के चेहरे पर की हंसी मारीचिका की बात होती है।

6) एक जवान औरत फुटपाथ के छोर पर पड़ी कराह रही थी।

7) एक आदमी अपनी आदिम जाति के प्रति उदासीन हो गया है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ