डार्क हॉर्स - निलोत्पल मृणाल
प्रमुख पात्र
संतोष पिता - विनायक बाबू , माता - कमला देवी ,
रायसाहब(कृपाशंकर राय ), मनोहर सिंह गुरुराज सिंह
भरत विमलेंदू यादव जावेद खान
गौण पात्र
ठाकुर( विनायक बाबू के सहयोगी शिक्षक) पडोस का मंगनु, बैजू शुक्ला (बजरंग शुक्ला ) चाय वाला रुस्तम सिंह , छोटू दशरथ सिंह (गुरु के पिता) भोलानाथ यादव (विमलेंदू के पिता)
मनमोहिनी विदिशा(संतोष की गर्ल फ्रेंड) पायल(मनोहर की गर्ल फ्रेंड)
आयशा ( गोरेलाल यादव की कुक) दुखमोचन सर (समाजशास्त्र ) बटोहिया (लोकप्रशासन)
मयूराक्षी(गुरु की गर्ल फ्रेंड) गोरेलाल यादव (राय साहब का पडोसी)
श्याम सुंदर मिश्रा (राय साहब के गांववाले ) दिनानाथ शुक्ला (राय साहब के गांववाले )
सतेंदर राय (राय साहब के गांववाले ) जगदानंद बाबू ( राय साहब के पिता )
राय साहबकी मां जावेद खान की मां इलियास जावेद के चाचा
श्यामल किशोर सिंह सर (इतिहास) हर्षवर्धन चौहान सर (हिंदी) पराशर (मयूराक्षी का छोटा भाई)
भोलानाथ यादव (विमलेंदू के पिता ) रितुपर्णा महापात्र (विमलेंदू की पत्नी) गजपति महापात्रा
तेज नारायण यादव (कैबीनेट मंत्री) चेरी (रितुपर्णा का कुत्ता) टोनी डीलर सेवकराम
'डार्क हॉर्स' 'निलोत्पल मृणाल' लिखित उपन्यास है| जिसमें सिविल सेवा की तैयारी कर रहे संतोष नाम के युवा के संघर्ष की कहानी है |जो बिहार के भागलपुर का है और दिल्ली के मुखर्जीनगर में आयएएस की तैयारी कर रहा है| जिसमें माध्यम से लेखक ने युवा पीढी को यह संदेश दिया है कि कोई भी बात किस्मत पर आधरित नहीं होती, तो किस्मत बदलने की ताकद हमारे हाथ में होती है | कारण यहां हर कोई डार्क हॉर्स होता है| 'डार्क हॉर्स का अर्थ है 'अप्रत्यक्षित विजेता'| बस इसके लिए आवश्यक है जिंदगी में कोई एक रास्ता चून लो और उस रास्ते पर बिना रुके दौडते रहो तब एक दिन 'डार्क हॉर्स' साबित हो जाओगे| कारण सबमें एक डार्क हॉर्स छिपा है | यही प्रेरणा देनेवाली यह कहानी है | जो 27 अंकों में लिखी है|
पहले अंक में भागलपुर के विनायक बाबू, जो प्रायमरी शिक्षक है , अपने बेटे संतोष को विक्रमशिला रेल्वे स्टेशन पर छोडने जा रहे है| संतोष जिसने भागलपुर टीएनबी कॉलेज से बी.ए. किया है और आईएएस की तैयारी करने के लिए दिल्ली जा रहा है | कारण हिंदी प्रदेश के लोगों की सोच है की "डॉक्टर बनकर आप अपना करियर बना सकते है| इंजीनीयर बनकर आप अपना करियर बना सकते है पर अगर अपने साथ-साथ कई पीढियों का करियर बनाना है तो आईएएस बनाना होगा|" उनके दोस्त ठाकूर भी उसे शुभेच्छा देते है| मां कमला देवी गठिया की बिमारी होते हुए भी सुबह चार बजे उठकर बेटे की पूरी तैयारी करती है| उसे अच्छी पढाई करने के लिए कहती है| विक्रमशिला स्टेशन डूमरी गांव से चालीस किलोमीटर था| वहां पहुंचते सवा दस बज जाते है| संतोष 13 नं के मिडिल बर्थ के एस- 3 में जाके बैठता है और संतोष का आएएएस का प्रवास शुरू होता है|
दूसरे अंक में दिल्ली रेल्वे स्टेशन से मुखर्जी नगर तक पहुंच में जो तकलीफ हुई उसे चित्रित कियाहै| पहले पहल रेल से उतरते वक्त लगा पच्चीस सौ के वुडलैंड के जुते गायब हो गये| मेट्रो की टिकट के लिए लंबी कतार में खडा होना पडा| काउंटरवाले के पास पाच सौ के छुट्टे नहीं थे इसीलिए पैसे छुट्टे होने तक रुकना पडा| जैसे तैसे विश्वविद्यालय स्टेशन पहुंच गया| वहां से रिक्षा से मुखर्जी नगर गया, इस तरह संतोष का चांद्रयान पर पहुंच गया पर इस यात्रा से यह समझ गया कि शहर शब्दों और भावनाओं से परे है|
तीसरे अंक में संतोष मुखर्जी नगर में पहुंच गया है| संतोष मुखर्जीनगर में अपने दिल में तैयारी का दीया लिए उतरा था| इसीलिए वहां पर लगे सफल छात्रों के पोस्टर में अपने आप को महसूस कर रायसाहब को फोन लगाया| और बत्रा सिनेमा के सामने खडे है ऐसा बताया| संतोष की रायसाहब से मुलाकात बोकारो में एक शादी के दौरान हुई थी|
रायसाहब का पूरा नाम कृपाशंकर राय था| वे यूपी के गाजीपुर से थे| किसान परिवार से थे
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इतिहास में एम. ए करने के बाद बीएड भी किया था|
पिछले पांच साल से मुखर्जी
नगर में तैयारी के लिए रह रहे है|अपने तीसरे प्रयास में ही
आयएएस की मुख्य परीक्षा दी थी| उनके झडते हुए बाल और तेजी
सी लटकती झुर्रियों को देख साथी उन्हें रायसाहब कहते थे|
दस मिनट में वे संतोष को लेने पहुंचते है| कद में पांच फीट छ: इंच के थे|
राय साहब संतोष का स्वागत करते है| संतोष कहता है, अब आप की शरण में आए है,
जो बना दीजिए | आएएस या आईपीएस|”
पहले रूम पर तो चलिए| हमें भी आपका महल देखना है| महल नहीं कुटिया कहना यहां तपस्या करना होता है| कुछ ही मिनट में दोनों नेहरू विहार के फ् ट नं 394 में पहुंचते है| जहा चार फ्लोर है, प्रत्येक फ्लोर पर पच्चीस गज का कमरा है|और आठ लडके रहते है| जहां थर्ड फ्लोर के कमरे में राय साहब रहता है| जिसका किराया चार हजार और बिजली पानी का बील देना पडता है| कमरे में पहुंचते ही संतोष को ऐसी गंध आई जो संतोष ने पहले कभी महसूस नहीं की थी| उस दुर्गंध से संतोष को ओकाई आने लगी, पर उसने रोका| दिल्ली में उतरते ही संतोष समझौतेवादी हो गया था|राय साहब उसे बिठाकर दूध का पैकेट लाने गया| इतने में पूरे कमरे का परीक्षण किया | रायसाहब के सामान में पतंजलि अधिक प्रोडोक्ट दिखाई दिये जैसे पतंजलि का यूपीएससी के साथ कोई व्यावहारिक करार हुआ हो| दरवाजे से घुसते ही बाई ओर दुर्लभ शौचालय था| पच्चीस गज के इस कमरे में बेड, मेज, कुर्सी, रैक, बडी-बडी किताबें सहित बाकी सामान रखने के बाद बस इतनी सी जगह बची थी| जहां अभी-अभी संतोष ने कदम रखा था| मन-ही – मन संतोष सोचता है सचमुच तपस्या कर रहे है लोग यहां|”
चौथे अंक में रायसाहब संतोष को आयएएस के छात्र का सोचने का एंगल कैसे होना चाहिए इसका ज्ञान देते है| पहली सीख यह देता है कि एक आदमी के व्यवहार के आधार पर पूरे वर्ग या समुदाय के प्रति कोई धारणा बनाना ठीक नहीं है| संतोष के फोन की रिंग टोन सुनकर दूसरी सीख यह देता है की आप कैसा गीत सुनते हैं, कैसे गानों का रिंगटोन रखते हैं, मोबाईल का वालपेपर कैसा है इन चीजों से भी लोग आपके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करते है| तीसरी सीख यह देता है कि आदमी पेट का गुलाम हो जाता है वैसे उसके मस्तिष्क के दरवाजे बंद हो जाते है| विचार आने बंद हो जाते है| भूख का अंधा कुछ नहीं देखता| और एक सिविल के छात्र के लिए मस्तिष्क का खुला होना एवं विचारों का आना भोजन से कई ज्यादा जरुरी है|
तब संतोष कहता है अब हम आपके शरण में आए है, अब आप ही हमें बना दो| अपने पापा को भी यह बात बताता है कि हम सही जगह पर आए है| संतोष रायसाहब की बातों से प्रभावित होता है और अपने आप पर शर्मिंदा होता है| तब रायसाहब कहता है कि टेन्शन मत लेना धीरे धीरे आप भी सीख जाओगे|
पांचवे अंक में रायसाहब और संतोष ने खाना खा लिया है और राय साहब 'द हिंदू' पत्रिका निकालकर पढ रहा है| जो हर हिंदी माध्यम के छात्रों के ज्ञान आयर जानकारी से ज्यादा प्रतिष्ठा का अखबार था| उस समय क्रोनिकल पत्रिका का हाथ में ली थी| संतोष के सामने कुछ समय अखबार पढकर रायसाहब उसके लिए रूम दिखने के लिए बत्रा निकलते है| संतोष अपना इंप्रेशन बनाना चाहता था| सबसे पहले वह बैजू शुक्ला के चाय की दुकान पर जाते है| बैजू शुक्ला बनारस के रहनेवाले, जिनका का पूरा नाम बजरंग शुक्ला था| जो नोएडा में एक प्राईवेट कंपनी में सुपरवायझर का काम करते थे| यहां केवल महिना पांच हजार वेतन मिलती थी| इस महंगाई में उतने में गुजरा करना मुश्किल होने के कारण कुछ समय महाराष्ट्र बैंक के ऊपर आर्यभट्ट रिटर्न नाम से एक कोचिंग भी खोल दी थी पर उसमें भी दस के आगे छात्र न मिलने के कारण उन्होंने चाय की दूकान शुरू की थी जिसमें उन्हें महिना पंद्रह हजार मिल रहे थे| इतने में रुस्तम दोस्त वहां आता है| जो राय साहब को किरपा बाबू कहता है| चाय की दूकान पर चाय पीने के लिए आए छात्रों की बातचीत से रुस्तम को लगता है संतोष भी इलाहाबाद का है|
रायसाहब रुस्तम को कमरा देखने के लिए कहता है| रुस्तम गांधीविहार के लल्लू को फोन करता है की कहता की समझो कमरा मिल गया| रुस्तम का अविर्भाव देख संतोष उसका चेला बन जाता है| रुस्तम के बारे में अधिक जानने का प्रयास करता है| रुस्तम इलाहाबाद का रहनेवाला था| विशाविद्यालय से पढाई करने के बाद आएए एस की तैयारी कर रहा था नेताई रुस्तम के स्वभाव में थी | रुस्तम का सामाजिक दायरा बहुत बडा था| दोस्तों को मदद कर इन्होंने एक कामचलाऊ समाजसेवी का पद प्राप्त किया था|
राय साहब और संतोष रूम पर वापस आते है| दूसरे दिन रुस्तम का फोन मिलाने का प्रयास करते है परंतु फोन बंद होने की वजह से राय साहब डीलर के पास जाने के बारे में सोचते है | कारण वे संतोष से जल्दी छूटकारा पाने चाहते है | कई महिनों के बाद उनका रूम पार्टनर गांव गया था| इसलिए उन्होंने laptop और कुछ सीडी ले आए थे पर संतोष ने आकर सब मामला खराब कर डाला था|
डीलर भी केवल रूम का पता देते है और किराए के पचास प्रतिशत लेते है| इसीलिए दोस्त मनोहर को रूम खोजने के लिए साथ लेने के बारे में सोचते है उसके रूम पर पहुंचते है| मनहर अग्रवाल मिष्ठान के पिछले गली में रहता है| मनोहर एक फैशन सुधी मित्र है | उनके कमरे में होलीबुड के देवियों के सुंदर मनोहारी चित्रों से सजाया हुआ था| इसीलिए जब दोनों उसके घर पहुंचे तो उसने फेस पैक लगाया था और बालों में काली मेंहदी लगाई थी| इतना ही नहीं तो छाती पर कुछ चिपचिपा सा सफेद पदार्थ लगाकर जैन साधुओं की तरह बाल नोच रहा था|संतोष के लिए यह दृश्य एकदम नया और रोंगते खडा करनेवाला था पर संतोष के राय साहब के दुर्गंधी भरे रूम से अच्छा महसूस हो रहा|
छटे अंक में तीनों टोनी डीलर के पास पहुंचते है| टोनी संतोष को बजेट पूछता है| तब वह कहता है कि चार हजार से पांच हजार के बीच दिखाई| परंतु मुखर्जी नगर में इतने में तो केवल किचन आएगा| आगे वह कहता है कि 4500 में एक करवा दूंगा जिसमें १२७१ में बेड पर बाथरूम आठ लोगों में शेअर करना होगा| परंतु संतोष को पूर्णत: स्वतंत्र रूम चाहिए| इसपर डीलर कहता है कि क्या लडकी का मामला हैं? चलो ११००० का दिखता हुं | जहां लडकी लाओ , दारू पिओ कोई दिक्कत नहीं| इसपर संतोष को गुस्सा आता है | पर ज्यादा कुछ न कहे इतना तो कहता है कि कमरे में मां-बहन भी तो आती है| डीलर समझ गया कि लडकी वाली बात संतोष को लगी है| इसीलिए इंदिरा विकास का ६५०० का कमरा दिखता| परंतु संतोष को एक भी कमरा पसंद नहीं आता |
डीलर जाने के बाद वह अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए कहता है कि हम क्या यहां ऐयाशी करने आए है| लडकी की बात करता है| बिहार में होता तो वहां काट देते| रायसाहब उसे समझाते है गुस्सा छोड दीजिए हम यहां पढने आए है| पढने आए है इसका मतलब कोई भी बात सून लेंगे ऐसा नहीं मनोहर कहता है| बात को संभालते हुए संतोष कहता हम जा कहां रहे है? वजिराबाद कमरा देखने के लिए| बीच में संतोष को रुस्तम की याद आती है मनोहर उसका फालतू चरित्र संतोष के सामने खोलता है| इलाहाबाद के उपाध्यक्ष के चुनाव में शंभू सिंह ने जिसे हराया था| इतना भी वह फालतू नहीं है ऐसा रायसाहाब कहते है| लोगों को मदद करते है| इतने वे तीनों वजीराबाद पहुंचते है|
सातवें अंक में तीनों वजीराबाद के गली नं 14 के ग्राउंड फ्लोर के मकान नं 72/90 में रहनेवाले दोस्त गुरुसिंह के घर पहुंचते है| आते ही रायसाहब संतोष के लिए कमरा खोजने की बात करता है| गुरुसिंह कहता है कमरा मिल जायेगा पहले बैठे तो सही| संतोष को गुरुसिंह का कमरा सिविल सेवार्थी का लगा| बातों में वह रायसाहब की पोल खोलते है की वह अनामिका पटेल नाम की लडकी के लिए किस कदर पी गये| संतोष के सामने पोल न खुले इसीलिए विषय बदल देते है| वहां पर पडी किताब 'द रिबेल' की बात छेडते है| जो अल्बेयर द्वारा मार्क्सवाद पर लिखी किताब है|
गुरुराज सिंह झारखंड के संत कोलंबस कॉलेज का छात्र रहा था। कुछ समय राँची में भी सिविल की तैयारी के लिए रहा। अपनी पहली मुख्य परीक्षा उसने वहीं रहते दी थी। पाँच साल से दिल्ली में था। पिता सरकारी नौकरी में थे। गुरुराज अपने आप में कई विरोधाभासों का मिश्रण था। दुनिया दाएँ चले तो वह बाएँ चलता था। आईएएस की तैयारी के लिहाज से वह उतना पढ़ चुका था जितने की जरूरत नहीं थी। दुनिया को अपनी दृष्टि से देखता था और बिना हिचक अपनी बात कह भी देता था। कुछ लोग उसे अक्खड़ और दंभी कहते थे, पर मूलतः वह साहसी था। मुखर्जी नगर के बौद्धिक वर्ग के लिए वह एक बिगड़ैल आदमी था। बौद्धिकता की गंभीरता और तार्किकता पर बड़ी निर्ममता से व्यंग्य करता था। 'बुद्धिजीवी वर्ग' इस शब्द को वह एक गंभीर फूहड़पन कहता था। दारू और किताब उसके दो प्रिय साथी थे। काम भर का धार्मिक भी था और ज्योतिष का इल्म भी पा रखा था उसने। अब तक आईएएस में असफल था। पिता दशरथ सिंह उसे अपने जीवन की सबसे बड़ी समस्या कहते थे पर गुरुराज के लिए उसके पिता ही उसके जीवन दर्शन के गुरु थे। गुरुराज ने अपने जीवन के कई साल झारखंड के आदिवासियों के बीच गुजारे थे और उनके प्रति उसकी संवेदना कभी-कभार उसके विचारों में छलककर दिख ही जाती थी। कुछ लोगों का कहना था कि वह कभी नक्सली संपर्क में भी रहा था। यद्यपि उसके सर पर कुछ पुलिस केस भी थे जिसे वह अपने छात्र जीवन के दौरान कई सामाजिक संगठनों से जुड़े होने के कारण राजनीतिक षड्यंत्र का नतीजा बताता था। कुल-मिलाकर उसे देखकर कहा जा सकता था कि वह संभावनाओं से भरा एक निराश और बेचैन आदमी था।
गुरुराज सिंह के सामने रायसाहब की दशा देख संतोष गुरु में महागुरू नजर आने लगे| गुरु अपने उपरवाला कमरा संतोष को दिखता है | जिसका किराया पचपन सौ था, पर संतोष को कमरा पसंद आता है| अब संतोष वजीराबाद में स्थापित होने जा रहा था| उसे मनोहर और राय साहब किचन का सामान खरीदने में मदद करते है| जो किंग्सवे मार्केट से खरीदते है| सामान केवल खरीदने उसे रूम में लगाने में भी मदद करते है| संतोष रायसाहब और मनोहर को धन्यवाद देता है| तो राय साहब गुरु को धन्यवाद देने लिए कहता है और पार्टी का वादा लेकर वहां से निकल पडते है | राय साहब आज खुश थे कारण उन्हें सीडी और laptop याद आता है|
आठवें अंक में संतोष अब अपने सपनों की दुनिया सजा रहा था | उसने छह महिने रूम पर रहकर एनसीआरटी की किताबें पढने के बारे में सोचा था बाद में कोचीन ज्वाईन करने वाला था| अपना कमरा बिल्कुल वस्तु शास्त्र के अनुसार लगाया और थककर न जाने कब सो गया उसे पता ही नहीं चला | सुबह राय साहब के फोन से नींद खुली कारण बत्रा में किताबें लाने के लिए जाना था| तब तुरंत नहा-धोकर हनुमान चालीसा पढ संतोष बत्रा पहुंचता| राय साहब उसका इंतजार ही करवा रहे थे| दोनों किताब की दूकान पर पहुंचते| संतोष कुछ मांग करे अपने अनुभव से बनाई किताबों लिस्ट राय साहब आगे करते है| इतना नहीं तो विषय कौनसे रखने चाहिये यह भी बताते है| इतिहास और दूसरा विषय हिंदी साहित्य का इतिहास यह विषय रखने के लिए कहते है| जो स्वयं उनका भी था और हिंदी साहित्य का सलेबस भी कम है| संतोष को समाज शास्त्र में रुची है इसीलिये दूसरा विषय सोचकर तय करुंगा ऐसा कहता है | फिलहाल इतिहास और सामान्य अध्ययन का किताब लेगा| 2730 रुपये के किताबे वह खरीदता है और बाद में रात की पार्टी का सामान खरीदने मनोहर भी आता है| अब वे ज्यादा आदर्शवादी न बनकर वास्तविक बन रहे थे| अत: पार्टी के लिए चिकन और दारू की व्यवस्था करते है| संतोष और गुरु शाकाहारी है| श्याम पांच बजे संतोष के कमरे पर पार्टी के लिए इकठ्ठा होंगे ऐसा कहकर संतोष को रिक्षा में बिठाकर दोनों चले जाते है|
ऑटो चल दिया। संतोष पूर्णतः वैष्णव था। न कभी शराब पी थी, न माँस-मछली छुआ था। अभी संतोष के अंदर का द्वंद्व देखने लायक था। मुँह उससे भी ज्यादा दर्शनीय था। किताबों के कार्टन को ऑटो में पीछे धकेलकर रख दिया था। बीयर और दारू भरे कार्टन को गोद में लिए बैठा था कि कहीं काँच फूट न जाए। दिल्ली आने का मूल उद्देश्य अनजाने में ही पीछे हो गया। वैसे तो संतोष को यह पसंद नहीं आ रहा था| उस गांव में अपने नए घर मंत्रोच्चार के साथ में किस प्रकार प्रवेश किया था वह याद आता है| आज वह अपने घर में बीयर-दारू- चिकन के साथ प्रवेश कर रहा था| पर मन को यह समझाता है की "दूसरों को ख़ुशी देना सबसे बडा धर्म है| और मैं चिकन खिलाकर, दारू पिलाकर तीन लोगों को खुश कर रहा हूं तो यही मानव सेवा है, धर्म है| उसने अपने मन को दृढ किया और सोचा की वह गंगाजल से रूम को धोकर पवित्र करेगा और बाद में ऐसी बातों से दूर रहेगा|
गुरु को जब यह पता चलता है कि संतोष वैष्णव है तो उसने यह सब क्यों किया? वह समझाता है कि खुद को इतना भी गीला न रखो कि कोई जैसा चाहे आकार दे व्यक्तित्व का लचीला होना और गीला होना दोनों बातें अलग है| यह भी बात गुरु ने बीयर बोतल खाली करते हुए कही| संतोष की असहजता को समझ गुरु ने अपने रूम में पार्टी का प्रबंध किया|
नौवें अंक में शाम पांच बजते ही मनोहर और रायसाहब पहुंच जाते है| साथ में भरतकुमार नामक नए दोस्त को लेकर आए है| अक्सर मुखर्जी नगर में ऐसी पार्टी में एक दो लटकन आना प्रत्याक्षित रहता है| भरतकुमार ने अभी छत्तीसगढ से पीसीएस , उत्तर प्रदेश लोअर सबोर्डीनेट की मुख्य परीक्षा दी है| वे सीढियों से ऊपर ही जा रहे थे कि गुरु उन्हें अपने कमरे में बुलाता है| पार्टी जोरों से शुरू होती है| संतोष तो उन्हें केवल देख रहा था| इससे उसने सीखा था कि दारू बुरा नहीं होता आदमी का मन कैसे होता है यह मायने रखता है| ...दारू चरित्र खराब नहीं करता आदमी खुद अच्छा या खराब होता है| दारू से किडनी खराब होती है इस बात एहसास होते हुए भी गुरु उसकी प्रसंशा में बाते करता है| संतोष पहली बार ज्ञान को सुरा में डूबा हुआ देख रहा था| इसीलिये वहां मौजूद हर आदमी उसे हरिवंशराय बच्चन के टाईप का दिखाई दे रहा था| इस तरह वह रात भी गुजर गयी|
दसवें अंक में संतोष सुबह होने से पहले अपने कमरे में जाकर सोया| मनोहर जल्दी उठकर चला गया कारण उसके चाचा आनेवाले थे | दिल्ली स्टेशन पर 10 बजे की ट्रेन थी | 8.30 बज चुके थे| राय साहब फोन करके भरत के यहां पार्टी करने के बारे में कहते, जिसे संतोष इन्कार देता है| चाचा आने के कारण सेवकराम को दैनिक भास्कर की जगह ' द हिंदू' दालने के कहता है| चाचा किडनी के मरीज थे| एम्स में इलाज कर रहे है| दिल्ली में रहनेवाले छात्रों के साथ एक सामान्य समस्या थी कि साल भर में कोई-न-कोई परिचित इलाज करवाने दिल्ली आता रहता | कारण रहने और गाईड का प्रबंध हो जाता| रिक्षा में आतेआते 150 सवाल पुछते है चाचा | तब उन्हें पता चलता है कि सोने के भाव से भी ज्या यहां कमरे का किराया है| स्वतंत्र बाथरूमवाल कमरा लेना है तो उसका किराया आठ हजार होता| ५५०० के किराये के कमरा सार्वजनिक शौचालय में ही जाना पडता है|
कमरे में ब्रिटन की गायिका का फोटो देख थोडा देवी देवताओं फोटो भी लगाया करों यह नसिहत चाचा देते हैं कोई नुकसान नहीं होगा| वह चाचा के सामने अंग्रेजी अखबार पढता है| चाचा को बहुत प्रसन्नता होती है|कारण आईएएस की तैयारी करनेवाले अभ्यर्थियों के अभिभावकों को भी यह लालसा सदा बनी रहती है बच्चा कलेक्टर बने पर अंग्रेजी में बोलेगा तो बढीया कलेक्टर बनेगा| चाचा के यक्ष सवालों सेबचने के लिए यह अंग्रेजी पन उपयोग में आया| आगे चाचा जब घुमने जाने की बात करते है तब वह अध्ययन की बात करता है| यह भी उन पर लागू होती है| वह उसे अध्ययन करने के लिए कहते है| कारण उनकी वजह से मनोहर का कोई नुकसान न हो| तब वह दिन भर कमरे में बैठने की बात करते है| कल एम्स भी जाना है|
ग्यारहवें अंक में विमलेंदू दोपहर ही गुरु के रूम पर आया था | वह यूपी के बलिया का रहनेवाला था| पिता किसान थे| पढने में ठीक-ठाक था| उसने स्नातक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से द्वितीय श्रेणी में किया था | फिर भी अपने मेहनत के बलबुते पर मुख्य परीक्षा दे दी थी और एक वार साक्षात्कार तक पहुंच गया था| गुरु से उसकी खूब पटती थी शिवाय वह शराब पीने के घोर विरोधी था| उसे एक ही नशा था अपने के पसीने की भेजी कमाई को सफलता पूर्वक अमृत में बदल देना| विमलेंदू वहां बैठे किताबें पलटने लगा कि संतोष आया | जिसने अभी तक कोई कोचीन शुरू नहीं की थी| अभी वह NCERT की किताबें कमरे पढ रहा था| गुरु विमलेंदू को संतोष ने कौनसी कोचिंन ज्वाईन करे इसके बारे में मार्गदर्शन करने के लिए कहते है| संतोष की स्थिति बताते है | एक तो इतिहास विषय है दूसरा हिंदी या समाजशास्त्र ले इसमें फंसे है|
वैसे तो विमलेंदू के कोचिंग को लेकर विचार है कि "बिना कोचिंग किए तैयारी करके सफलता प्राप्त की जा सकती है| अत: विमलेंदू और गुरु दोनों कोचिंग का चरित्र चित्रण करने लगते है| उन्हें लगता है कि कुकुरमुत्तों की तरह उगे कोचिंग में क्वालिटी नहीं है| कुछ छोडे तो बाकी सब मायाजाल है| इनकी बातों से संतोष सोच में पडा | आखिर कोचिंग कैसा मायाजाल वह तो यह सोचाकर आया है एक दो कोचिंन ज्वाईन करके साल भर में अपनी नैया पार करेगा| अत: उसके मन में दोनों की बातों ने कोचिंग को लेकर अजब रेखाचित्र तैयार किया | इसके साथ वह दोनों के बातों को नजरअंदाज भी नहीं कर सकता कारण वे दोनों भी इंटरव्यूह तक पहुंच चुके है|
पर संतोष के मन में कोचिंग को लेकर प्रश्न निर्माण हुआ| बाद में वह कमरे में जाता है और सोचता है कि दूसरों की बातों से निर्णय लेना ठीक नहीं है| ये सब तो वर्षों से बैठकर पढ लिए और जाकर कोचिंग को भला-बुरा कह रहे है| हम तो अभी आए है| बेसिक जानकारी के लिये कोई भी कोचिंग देख लेंगे और बाकी आगे खुद की मेहनत काम आयेगी| इसके लिए मैं राय साहब की सलाह लूंगा| वह राय साहब को तुरंत फोन मिलता है| उस समय चार बजे थे| राय साहब ने शाम को आने को कहा पर संतोष को रहा नहीं गया वह तुरंत बत्रा की ओर निकल पडा|
बारहवें अंक में सतोष कोचिंग की तलाश में बत्रा पहुंच जाता है| चायवाले बजरंग शुक्ला को अच्छी कोचिंग के बारे में में पूछता है | तो संतोष ने यह महसूस किया कि गुरु और विमलेंदू से भी शुक्ला का अनुभव बहुत खतरनाक है| वह कहता है यहां के सब कोचिंग अच्छे है|पढाने बाहर के थोडे है जिन्हें नौकरी नहीं मिलती वे पढाते है| वे संतोष को 'नवरतन आईएएस' क्लास का नाम बता देते है| संतोष का सर चकरा जाता है| पर वहां खडे छात्रों की चर्चा सून मुखर्जी नगर का महत्व भी महसूस होता है| उसे लगता है विद्वता और आत्मविश्वास से परे यहां कुछ भी नहीं | संतोष वही खडा रहकर कोचिंग क्लासेस के होर्डींग्स देख रहा था| सबने सफलता की ग्यारंटी दी थी| | संतोष को लगा सबसे ज्यादा वेरायटी मुखर्जी नगर में ही मिलती होगी| इसीलिए गांव- कस्बे से छात्र यहां अध्ययन के लिए आते है| भारत में किसी भी परीक्षा के लिए इतना आकर्षण नहीं था और न ही इसकी तैयारी के लिए मुखर्जी नगर जैसा चुंबकत्व| संतोष इसे महसूस ही कर रहा था कि रायसाहब आता है| और उसे बत्रा सिनेमा के पीछेवाली गली में जो लोकसेवक मेकर कोचिंग है वहां ले जाते है|वहां जो रिसेप्शनिष्ट है मनमोहिनी वर्मा वह राय साहब के पहचान की थी| वह इसके पहले सूरदास कोचिंग सेंटर पर काम करती थी| जो रायसाहब ने ज्वाईन की थी और उसके सलाह से अपना पीजी का भूगोल विषय छोड हिंदी विषय लिया था| आज उसने संतोष को इतिहास के बजाय लोकप्रशासन और समाजशास्त्र यह विषय दिया था और संतोष का प्रवेश निश्चित किया था| गुरु और विमलेंदू के कनफ्जयून से उसका निर्णय संतोष को क्लियर लगा इसीलिए अपना प्रवेश निश्चित किया| आज संतोष संपूर्ण सिविल का छात्र बन गया था|
तेरहवा अंक : संतोष का कोचिंग में प्रवेश होनी की खबर राय साहब मनोहर को देते है और पार्टी करने के बारे में कहते है| परंतु मनोहर के चाचा अभी तक है और वह उन्हें दिल्ली घुमा रहा है| दो दिन के बाद चाचा जायेंगे तब पार्टी करेंगे ऐसा मनोहर कहता है| मनोहर ने चाचा को पहले दिन लाल किला, राजघाट, शक्ति स्थल, किसान घाट, एकता स्थल, समता स्थल, वीर भूमि, और दूसरे दिन इंडिया गेट , कुतुबमिनार आदि के दर्शन चाचा को कराए| संपूर्ण दिल्ली दर्शन कराया फिर भी चाचा के मन में चांदनी चौक , जामा मस्जिद देखने की ललक रह गयी| उन्होंने कहा फिर आउंगा तब देख लूंगा | मनोहर चाचा से मिलवाने के लिए अपने दोस्तों को घर बुलाता है| चाचा उन्हें समोसे देते है| सब समोसे खाने के लिए दूकान पर पहुंचते है| तब भरत चाचा के सामने सिगारेट पिता है इतना ही नहीं तो वह दारू भी पिता है यह बात चाचा को बताता है | बात संभालने के लिए राय साहब बीच में बोलता है यूं है कि दिन-रात पढाई करने के कारण कुछ लडके कभी-कभी लेते है, पर मनोहर बिल्कुल नहीं लेता|
पर चाचा को असलीयत का पता चला था| कारण उन्होंने मनोहर के कमरे में अंग्रेजी बोतल देख ली थी| साथ ही उन्हें भरत का बर्ताव बडों के सामने सिगारेट पिना ठीक नहीं लगा| उस वक्त उन्होंने कुछ नहीं कहा | पर जाते-जाते अपने मन का गुबारा निकालते हुए कहा,"थोडा अंग्रेजी मीडियम कम ही रखो तुम, हिंदी ही ठीक है समझे , बहुत मेंटल स्ट्रेस है न तो घर वापस चलो बाप-चाचा का बिजनेस संभालो, बहुत पढ तुम|" मनोहर चाचा की कसं खाता है कि वह दारू नहीं पिता | पर चाचा को सबकुछ पता चला था इसीलिए वह उस पर क्रोधित होते है| मनोहर चाचा की माफी मांगता है कहता है कि पिता जी को कुछ मत बताओं | कुछ नहीं बतायेंगे, सुधर जाओ | मनोहर ने आंसू पोछते हुए हां कहा | चाचा की ट्रेन निकल गई मनोहर को थोडा चैन मिला पर जाते-जाते चाचा मनोहर को हेडेक देकर गये थे|
चौदहवां अंक :-
संतोष का आज कोचिंग का पहला दिन था| संतोष ने सारे संभव धार्मिक कार्य किए | कोचिंग के प्रवेश द्वार को भी झुककर नमस्कार किया| मनमोहिनी को हंसते हुए नमस्कार किया| उसने भी हंसते हुए गुडलक कहा और क्लास में बैठ्ने के लिए कहा| सर आते ही होंगे| पहली क्लास समाज शास्त्र की थी| दुखमोचन मंडल सर कक्षा में आए | उन्होंने छात्रों को फीस किसने पूरी, आधी जमा की है या किसने फीस भर दी हैं या नहीं यह वास्तविक सवाल पूछकर समाज का विभाजन कैसे हुआ है इसका ज्ञान देते है | तब कक्षा में बैठे छात्र अपने शिक्षक के समाजशास्त्र का अर्थ समझाने की चमत्कारिक कला से आश्चर्य चकित हो गये| संतोष तो अत्याधिक प्रभावित होता है | संतोष प्रसन्न मन से बजरंग शुक्ला की दुकान पर पहुंचा वहां मनोहर और भरत जोरों से बहस शुरू थी| चाचा के सामने भरत ने जो बर्ताव किया उसे लेकर मनोहर नाराज था| बातों बातों में हिंदी और अंग्रेजी माध्यमों के संस्कारों पर भरत ने बात कही| जिसमें अंग्रेजी माध्यम के छात्र खुलकर करते हिंदी माध्यम के छात्र जो भी करते है छिपकर करते है| यह बात पहुंच भाषा पर गयी| तब बीच में गुरु कहता है कि भरत जी आपने खडे-खडे हिंदी माध्यम में पढनेवालों का लेवल कैसे माप लिया? किसी भी चीज के बारे में जानना, समझना, उस पर सोचना ज्ञान है कि उसे हिंदी या अंग्रेजी माध्यम में जानना समझना ज्ञान है| भाई साहब ! एक भाषा आपके द्वारा जाने और समझे गए बातों या ज्ञान को संप्रेषित करने, व्यक्त करने का माध्यम भर ही तो है ना! या अँग्रेजी में बोलना-लिखना हो ज्ञान है क्या? अगर ऐसा होता तो अमेरिका और इंग्लैंड में तो स्कूल ही नहीं होना चाहिए था, वहाँ तो बच्चे बचपन से ही अँग्रेजी बोलते हैं। इंग्लैंड में बर्गर बेचने वाले को यहाँ आईएएस बना देना था क्योंकि वो तो अँग्रेजी बोलता है। भरत कुमार जी अँग्रेजी दुनिया की एक कामगार भाषा है, इसे सीखना चाहिए इससे हमें कोई एतराज नहीं पर अँग्रेजी ही जीवन का आधार और सबसे कामगार है. ये हजम नहीं होगा सुन के। भाषा संवाद का माध्यम भर है, उसे वही रहने दीजिए।"
इसपर भरत कहता कि मैं यहां भाषा भाषा की बात नहीं कर रहा तो हिंदी माध्यम के संस्कृति उर उसके लेवल की बात कर रहा हूं| इस पर गुरु कहता है , अरे अपने ही कल्चर में चार अंग्रेजी की किताबे पढ लिए तो क्या अपने ही कल्चर को भूल गये आप? इस देश के हिंदी और अंग्रेजी बोलने वालों की एक ही संस्कृति है| यहां तक भी गुरु चुप नहीं बैठता| आगे कहता है की आप खुलकर दारू पीते है क्या हर रोज अपने बाप को फोन करके बताते हो? यह खुलकर पिना केवल प्रगतीशीलता का पैमाना हो गया है| वरना बताई यहां कौन नहीं जानता कि गुरु दारू पिता है| बडों के सामने पीने को साहस नहीं कहते| नारी पर अत्याचार होने पर, धर्म पापर सवाल उठने पर, सरकार की गलत नीतियों के विरोध करने आदि अनेक बातों का विरोध करने का साहस हममें है| गुरु धीरे-धीरे आग की गोले की तरह तप रहा था| वे राय साहब को कहते है कि देख रहा हूं आप में भी परिवर्तन आ रहा|
इस तरह भरत के प्रगतिशील विचारों को फाडकर दो फाडा बना दिया था| फिर भरत बिना चूप बैठे मांफी मांगते हुए गुरु से कहता है कि आयएएस इंटरव्ह्यू में केवल ठीक ढंग से अंग्रेजी न बोलने के कारण आप मुलाकात में फेल हो गए थे| नहीं तो आप आयएएस बन जाते इस वास्तविकता को आप नकार नहीं सकते| आपने कभी इसके बारे में सोचा| "हाँ सोचा, अँग्रेजी सीखना चाहिए ये सोचा, पर आईएएस बनने के लिए ही सीखना चाहिए ये कभी नहीं सोचूँगा। अपने ज्ञान और काम भर बैंड की जानकारी के साथ इंटरव्यू तक पहुँचे लड़के को केवल अँग्रेजी बोलने क्षमता न होने के आधार पर बाहर कर देने की परिपाटी का मैं विरोध करत हूँ। मैं उस मानसिकता का विरोध करता हूँ जिसने मुझे बिहारी दूल्हे का टाय वाला जुमला सुनाया। ये परिपाटी बदलेगी और मैं इसके विरुद्ध लड़ने साहस रखता हूँ। एक दिन ये लड़ाई जरूर होगी। हम जीतेंगे भी देख लेना भरत कुमार, हम जीतेंगे। ये मानसिकता हारेगी।" गुरु ने इतना कहकर आँड मूँद ली, दो बूँद नीचे गिरी टप से।|
गुरु के आंखो में पानी देख माहोल थोडा परिवर्तित हो गया| मनोहर थोडा बात को संभालते हुए कहता है गुरु भाई भाषा के बारे में जो आप हमेशा कहते वह थोडा फिर से बता दीजिए न|" तब गुरु कहता है, "भाषा तो सब जरुरी है, अग्रेजी व्यापार की भाषा है, उर्दू प्यार की भाषा है और हिंदी व्यवहार की भाषा है|" इस बात पर सब हंस पडे|
पंद्रहवां अंक :-
तीन दिन क्लास करने के बाद संतोष मनोहर को फोन करता है | कारण वह अब अपने आपको बदलना चाहता है| मनोहर की तरह रहना चाहता है| मनोहर भी उसे इसमें मदत करता है| दूसरे दिन पूरा परिवर्तित होगे संतोष क्लास को निकल पडता है| पहले गुरु उसे देखता है| क्लास में भी वह मनमोहिनी को स्मार्टी कहते हुए उसका फोन नं मांगता है| इस परिवर्तन पर किसी को आश्चर्य नहीं होता कारण मुखर्जी नगर में कुछ लोग तैयारी करने आते थे, तो कुछ लोग तैयार होने|
संतोष मनमोहिनी का नाम अपने फोन में मेरी मोहिनी नाम से सेव करता है| उस दिन कक्षा में बैठने की जगह भी बदलता है| तब एक लडकी उसके पास आगे बैठती है| शिक्षक भी उसके बदलाव महसूस करते है| जाते-जाते वह लडकी उसके साथ बाते करती है|
संतोष देर रात मनमोहिनी को फोन करता है और मेसेज भी करता है| इस बात को लेकर दूसरे दिन मोहिनी भडक उठती है| कहती है हंसकर बातें करना यह मेरा काम है| आप सबको लगता क्या है कि यहां मैं इश्कन-इश्कन करने बैठी हुं क्या? संतोष माफी मांगता है| उसने संतोष को विश दी थी इसलिए वह थोडा कन्फ्युज हो गया था| मोहिनी कहती है ," देखिये हमारा काम होता है स्टुडेंड का उत्साह बढाना हमारा काम होता है| वर्ना हम भी जानते है कि सौ में से दस सिलेक्ट होते हैं, बाकी गधे ही होते है| पर हमें सबको घोडा कहना पडता है है|
संतोष अब महसूस हो रहा था उसने विष नहीं जहर दिया था| और उसका इतिहास छुडवार उसे लोकप्रशासन और समाजशास्त्र विषय पकडवा दिए थे| संतोष का दिल टूट जाता है| अब उसका क्लास करने का मन नहीं होता| वल क्लास के बाहर के समोसे के दूकान पर जाकर बैठता है| वहां पर वही लडकी आती है, जो कल कक्षा में साथ में बैठती है| जिसका नाम विदिशा है| आज उसके साथ उसकी दोस्त पायल भी है| जो मनोहर की सहेली है| जो कल रात मनोहर के साथ थी| उससे संतोष बारे सारी बातें पता चलती है| विदिशा संतोष को सैंटी कहकर बुलाती है| इस नए नाम से संतोष का बुझा हुआ चेहरा पुन: खिल उठा| पर आज संतोष का पहला ब्रेक अप हुआ था और संतोष ने बुझे मन से मनमोहनी का नं अपने फोन से डिलीट किया था|
सोलहवां अंक:
प्रस्तुत अंक में संतोष को क्लासेस के मायाजाल के बारे में पता चलता है| विदिशा और पायल दोनों सहेलियां है और रूम पार्टनर भी है दोनों खुले विचारों वाली थी इस्ले बाद भी विदिशा और पायल के स्वतंत्रता के अलग-अलग अर्थ थे| विदिशा के लिए स्वतंत्रता का अर्थ मर्यादा के साथ खुलकर जीना तो पायल के स्वतंत्रता का अर्थ किसी भी तरह से जीना जिसमें मर्यादाओं की बंदिश के लिए कोई जगह नहीं थी| ऐसे ही वह देर रात तक वह अपने दोस्तों के रूम पर रुकती और उनसे नोट्स भी पूरे करवा लेती| ऐसे वह आज कौशिक के रूम पर रुकी थी कारण उसने कौशिक को अर्थशास्त्र के नोट्स बनवाने के लिए थे| | पर उसने नहीं बनवाये थे| इसीलिए वहां रुककर उसने नोट्स लिखवार लिए| सुबह चार बजे रूम पर आई थी|
संतोष पहले ही क्लास में पहुंच गया था| आज लोकप्रशासन का पहला क्लास था| क्लास के डायरेक्टर खगेंदर तूफानी ने भी आयएयस की तैयारी की सफल नहीं हुए इसीलिये क्लास खोला है| आज बहुत दिनों बाद लोकप्रशासन के शिक्षक मिले थे| विदिशा का भी यही विषय था | वह भी आती है| क्लास में प्रफुल्ल बटोहिया लोकप्रशासक के शिक्षक आए| छात्र उनके व्याख्यान से प्रभावित होते पर पता नहीं वह इस क्लास में कितने दिन रहने वाले है| समाजशास्त्र के सर दुखमोचन पिछले दिनों से परेशान थे कक्षा में लेट आ रहे थे| आज जब व कक्षा में आते है तब छात्रों को पता चलता है कि दुर्खीम टिफिन वे ही चलाते है| क्लास के छात्र टिफिन बंद करने के बारे सोच रहे इसीलिये वे परेशान थे| तब डायरेक्टर से वे कहते है, जिसमें से अच्छा लाभ होगा उसे रखेंगे|
यह सब देख संतोष परेशान हुआ परंतु विदिशा खुश थी कारण उसने अभी तक कोई फीस नहीं भरी थी| संतोष ने तो पूरी फीस भर दी थी| संतोष इसी परेशानी में घर वापस आता है| दूसरे दिन जब क्लास में पहुंचता है, तब लोकप्रशासन की बटोहिया सर की ही क्लास थी| उन्होंने छात्रों को वे शिक्षक क्यों बने इसकी कहानी बताई | वे शिक्षक बनना नहीं चाहते थे पर अपने मां-बाप को दिया वचन निभा रहे थे| वे आयएएस नहीं बन गये पर वे 500 छात्रों को आएएएस बनायेंगे| तब संतोष को भी अपने मां की याद आती है और अपने मां-बाप के सपनों को याद कर उसके आखों से आंसू छलक पडते है|
सत्रहवां अंक
इस अंक में राय साहब के जनम दिन के बहाने स्त्री के बदलते रूप को चित्रित किया है| दिन महीने गुजर रहे थे| उस दिन संतोष ने उठते ही मनोहर के सात मिस्कॉल देखे| फोन किया तो पता चला कि राय साहब का बडे है और पार्टी करनी | संतोष मना करता है पर मनोहर दोस्ती कसम देता है| न चाहते हुए भी संतोष को पार्टी में शामिल होना पडता है| वैसे तो मुखर्जी नगर में 'जन्मदिन मनाना सबसे बडा इवेंट था| ऊपर से राय साहब को आज उदास लग रहा था| इसीलिए शाम के पार्टी की पूरी तैयारी मनोहर करता| उसके लिए नजदीकी दोस्तों को ही बुलाया गया था| केवल एक नए दोस्त जो क्रिश्चन कॉलनी में रहता है और जिसका नाम जावेद खान है| रायसाहब ने एक लडकी को भी बुलाने को कहा था| मनोहर ने पायल को बुलाया था| सब आ गये थे| अभी लडकी नहीं आई थी| रुस्तम गडबडी करता है, तो राय साहब कहता कि अभी तक गुरु नहीं आया| रुस्तम झट से कहता कि गुरु कही पी के भूल गया होगा| यह बात संतोष अच्छी नहीं लगती| इतने गुरु भी आता है| सब की बोलती बंद होती है| सब पीने लगे थे कि पायल के आने की आवाज आती है| सब के सब बोतल छिपाते है| पायल रायसाहब को शुभेच्छा देती| वहां जावेद के गीत होते है|
जावेद खान मूलतः बिहार के छपरा जिले के एक गाँव महादेवपुर का रहने वाला था। पढ़ाई में बचपन से अव्वल था। जब वह इंटर में था तब पिता चल बसे। कुछ खेती लायक जमीन थी, उसी के भरोसे पहले छपरा से स्नातक किया और फिर सिविल की तैयारी के लिए जिंदगी का एक जुआ खेलने दिल्ली आ गया। यहाँ उसने पढ़ाई के साथ बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाना शुरू किया। गाँव में एक बीमार माँ थी। खेत भी लगभग बिक चुके थे, यही कुछ दो बीघा बचा हुआ था। यहाँ पर ट्यूशन से जो पैसा आ रहा था उसी से संघर्ष जारी था। कभी-कभार मौके पर उसके कुछ मित्र भी संभाल देते थे। जावेद सही मायने में रोज जिंदगी से उठा-पटक कर रहा था। वो अपने माँ के बचे हुए दिनों को जिंदगी का हर सुख देना चाहता था। वह पढ़ाई में दिन-रात जी-तोड़ मेहनत भी कर रहा था। अभी-अभी बिहार लोक सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा भी दी थी।
जावेद भिखारी ठाकुर के प्रसिध्द नाटक 'बेटीबेयवा' गीत सुनाता है| इन गीतों से पायल बोर होती है और कोई सिगारेट पिता है यहां" सबको लगता है कि पायल धुएं से प्राब्लेम हैं| सब कहते कि यहां कोई नहीं पिता तब पायल अपने पर्स से सिगारेट निकालती है और माचीस की मांग करती है| इतना ही नहीं तो वह शराब भी पिती है| सब पायल की तरफ देखते रहते है| सब सोच रहे थे कि वह चली जाए पर राय साहब सोच रहा था बाकी चले जाए पायल रुके| इतने वह जाने के लिए निकलती है| तब रायसाहब उसे अपनी डायरी में ऑटोग्राफ मांगता हैं और पायल को प्रभावित करता है| संतोष और मनोहर पायल को छोडने के लिए जाते है| तब संतोष सोचता है यह लडकी बोल्ड नहीं तो क्लीन बोल्ड है|
अठारहवां अंक :-
संघ लोकसेवा के परीक्षा का फॉर्म आ चुका था मुखर्जी नगर के विद्यार्थियों के लिए यह घोषणा की तरह होता है| कारण इसके बाद ही सब गंभीरता से अध्ययन में लग जाते है| इसका फॉर्म संघ लोकसेवा के कार्यालय में जाकर भरना एक अलग तरह से फिलिंग देता है| इसीलिए मनोहर संतोष को शाहजहां रोड के धौलपुर हाऊस के मुख्य कार्यालय में बुलाता है| इंटरव्यूह के लिए इस मंजिल तक आना यह एक प्रेरणादायी प्रक्रिया होती है| मनोहर और संतोष फॉर्म भरकर वापस आ रहे थे पायल को किसी ओर लडके के साथ फॉर्म भरते हुए देखा| गत साल वह मनोहर के साथ थी| आज किसी ओर के साथ | मुखर्जी नगर का तापमान बढा हुआ था | सब कमरे से ज्ञान का धुंआ उड रहा था| कोचिंग में भी टेस्ट सिरी का उत्सर्जन रहता है| गुरु- विमलेंदू, रायसाहब -भरत जोडी बनाकर तैयारी कर रहे थे| ऐसे माहौल में गुरु अपने अखबारों से बने नोटस पढ रहा था कि उसके फोन की रिंग बजी| देड साल बाद इस नं से फोन आया था मयूराक्षी का फोन था | गुरु और मयूराक्षी दोनों एक दूसरे के तब से जानते थे जब से वे एक साथ कोचिंग ले रहे थे| वह पढने-लिखने के प्रति समर्पित लडकी थी| वह गुरु के अलावा किसी को नहीं जानती थी| सब ठीक चल रहा था पर एक दिन उसने गुरु का फोन नहीं उठाया | तब गुरु पार्क में था और वह भी किसी ओर लडके के साथ में थी और गुरु को कहती है वह बिझी थी| तब गुरु ने जान लिया कि वह कभी उसकी नहीं थी| उसने ने कभी शिकायत नहीं की कारण उसने अपने मन की बात उसे कभी नहीं बतायी थी| फिर वह दूसरे दिन उसके कमरे पर पहुंचता है| तब वही लडका उसे साथ था | उसने अपनी जिंदगी चून ली थी उसके बीच अब गुरु नहीं आना चाहता था| सालों बाद उसका फोन आया था| गुरु फोन उठाता है| सालों बाद भी उसका बातें करने का तरीका नहीं बदल गया था| वह सोच रही थी गुरु फोन करेगा और गुरु सोच रहा था वह फोन करेगी| आज उसे गुरु की जरुरत है| वह गुरु के साथ बातें करना चाहती है| इसीलिये कल शाम चार बजे पार्क में मिलने का तय होता है|
उन्नीसवां अंक :-
आज पीटी का एक्झाम का दिवस था | बत्रा में रेली का रूप आता है| राय साहब को लगभग सभी रिश्ते दारों ने फोन पर आशीर्वाद दिया | संतोष ने पूरे पूजा पाठ के साथ परीक्षा के लिए निकल पडा| परीक्षा हॉल पर पहुंचते ही अक्षता छिडकने लगा| उसमें से एक चावल का दाना एक लडके के आंखों में चला गया संतोष बाल-बाल बच गया था| बाकी भी सब अपने-अपने सेंटर पर पहुंच गये थे| परीक्षा खत्म होने के बाद संतोष पूरी तरह पसीने से नहाया हुआ था| दूसरे दिन सब बत्रा में मिले| उनमें संतोष का स्कोर अच्छा निकलकर आ रहा था| परन्तु यूपीएससी के प्रश्नपत्रों की खासियत यह होती है की भी आत्मविश्वास के साथ सही उत्तर नहीं दे पाता| उसमें गुगल भी कुछ नहीं कर सकता| इतने रायसाहब वहां आता हा परंतु उसने पूरा अगल पहराव किया कोई उसे पहचानता नहीं| वह मनोहर को पेंड्राईव देता है और उसमें फिल्म भरने के लिए कहता है| उसने बताया कि उनके रूम पार्टनर ने रूम छोड दिया हैं और पडोस में गोरेलाल यादव नाम का लडका रहने के लिए आया है| जिसकी उम्र सत्ताइस साल थी| उसने खाना पकाने के लिए आयशा नामक महिला को रख लिया था| जिसके दो-दो छोटे-छोटे बच्चे थे|शायद गोरेलाल उस औरत को पसंद करता था परंतु वह औरत बहुत होशियार थी| वह एक सधे हुए खिलाडी की तरह सब सही किए जा रही थी|
एक दिन नेहरू विहार में सब्जी खरीदते वक्त रायसाहब पायल दिखाई दी थी| वे उसका पिछा करते है| तब वह कहती है नोटस लेने के लिए आई थी , तब रायसाहब कहता है मुझसे मांगते तो हम दे देते| राय साहब उसे ज्यूस पीने की जिद्द करते परंतु वह इन्कार करती है| और रिक्शा में बैठ चली जाती है| राय साहब को उसका रुखा व्यवहार थोडा बुरा लगता है| परंतु शाम को 11.30 बजे फोन करती है| सुबह थोडी पी रखी थी इसीलिये तमीज भूल गयी | पर मैं कल तुम्हारे कमरे पर आ रही हूं मुझे नोटस चाहिये | तब वह सुबह का इंतजार बेसब्री से करने लगा| 10 बजे बराबर पायल आती है| राय साहब को क्या करे क्या न करे यह सूज ही नहीं रहा था| पायल को दुर्गंधी से अच्छा नहीं लग रहा | पर नोट्स चाहिये थे इसीलिये दुर्गंधी को वह सहन करती है| जब वह बाथरूम गयी इसके फोन साईलेंट मोड पे बजा| राय साहब ने देखा की स्क्रीन पर calling...jan 3 आ रहा था| तब राय साहब ने अपने विलचित हो रहे विचारों को संभाला|| बाथरूम से पायल बाहर आने के बाद उसे बहना कहके पुकारता है| उसे नोट्स देता है| संपर्क बनाये रखने के लिए वह जितना हो सके करता है | इस संदर्भ में लेखक लिखते है, यहां अक्सर कोचिंग में अपने पास में बैठी लडकी में लडका पहले अपनी प्रेमिका देखता है, फिर दुल्हन देखता है, फिर एक अच्छा दोस्त देखता है और अंत में बहन पर आकर समझौता कर लेता है| वह बहन बनाकर ही सही लडकी से संबंध बनाये रखते है| जैसे राय साहब ने पायल के साथ किया|
बिसवां अंक
पीटी की परीक्षा खत्म होने के बाद जावेद, रायसाहब गांव जाने के बारे में सोच रहे थे | कारण जावेद की मां बिमार थी और राय साहब देढ साल हो गये गांव नहीं गया था| संतोष रिझल्ट आने के बाद जाने के बारे में सोच रहा था| गुरु का तो घर ही छूट गया था| राय साहब और जावेद एक साथ जाने वाले थे कारण रायसाहब का इलाहाबाद विश्वविद्यालय में काम था| ट्रेन में यात्री उन्हें बहुत सम्मान देते है कारण उन्हें लग रहा वे भविष्य के आईएएस अधिकारी के साथ बैठे है| इस तरह इलाहाबाद विश्वविद्यालय का काम पूरा कार राय साहब दूसरे दिन अपने गांव धरपटिया जिल्हा गाजीपुर में पहुंच जाता है| रास्ते में ही श्याम सुंदर मिश्रा मिल गय और उन्होंने यक्ष प्रश्न पूछ कि आयएएस वाला कोर्स कब खत्म होगा| घर पहुंचते है तो द्वार पर ही पिता जी मिलते है| उसकी अवस्था को देख क्रोधित होते हुए कहते है कि यह क्या दशा बनाई रखी है| आवाज सुनते है मां बाहर आती है और पिताजी पर क्रोधित होते हुए कहती है देढ साल बाद बेटा घर आया है और प्रवचन देना शुरू किया| प्रवचन हैं देख नहीं रखी चेहरा कितना सुख गया है| पिता जगदानंद का हृद्य भर आया और उन्होंने कहा अब दस दिन पढाई की चिता बंद केवल खाओ - पियो| कहते हुए बाहर निकल गये|
श्याम को राय साहब श्याम को गांव घूमने के लिए निकले| वहां चबुतरे पर राय साहब बैठता है| वहां के अनेक लोग राय साहब को सुनना चाह रहे थे| साथ साथ कुछ जिज्ञासु लोग उन्हें प्रश्न पूछना चाह रहे थे | कारण उन्हें पक्का यकीन था की आयएएस की तैयारी करनेवाला छात्र हर चीज का जवाब जानता है, ऐसा उन्हें लगता है| दिनानाथ सवाल पूछता है कि बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म कब हुआ | सतेंदर राय कहता आपने सही जबाव पूछा है| राय साहब को इस प्रश्न का उत्तर मालूम नहीं था| तो सतेंदर पूछता है कि नेहरू कब मरे थे| राय साहब को सही उत्तर पता न होने के कारण भाषण देते हुए कहता है यह आदमी हमारे विचारों में जिंदा है वे कभी नही मर सकते| राय साहब यह सोचता है सब हमारे ज्ञान के बारे में जान गये | यह बात पिता को भी समझती हैं इसीलिये घर आते ही वे राय साहब पर क्रोधित होते है| चबुतरे पर लोगों से मिलने गये थे या सब मिट्टी में मिलाने गये थे| मां बीच में पडती है | तब भी वे कहते है | क्या पढ रहा हैं यह? बाप की उम्र का हो गया फिर बाप का सहारा नहीं छूटा है| ठीक है नौकरी भाग्य का भी चीज है पर जानकारी तो होनी चाहिये | इसे आंबेडकर की जन्म तिथि नहीं पता? आगे कहते है कि दिनानाथ बता रहा था कि सब लोग हंस रहे थे और कह रहे थे कि बाप का पैसा लूटा रहा है बेटा|
पिता उसे कह देते है हम अब दिल्ली का खर्चा नहीं उठा सकते| अब तुम्हें पढने की हमारी हालत नही है| अब तुम नौकरी देख लो | यह कहकर वे सोने गये |
इधर महादेवपुर में भी जावेद के चाचा इलियास मियां ने तांडव छेड रखा था| अब हम तुम्हारी मां को नहीं संभाल सकते| जावेद कहता है 15 बीघा से 3 बीघा पर आ गये है सब आप ही को ही बेच दिया है| अब मां बिमार है इसीलिये थोडा ज्यादा पैसा मांग रहा हुं इसके इसके लिए 1 बीघा और जमीन ले लो | थोडे दिन में मेरा रिझल्ट आएगा| चाचा घुसे से कहता है दर्जी का बेटा हाकीम बनेगा| अब महादेवपुर और उसके सपने में केवल 2 बिघे का फसला था| उस दिन वह अपने मां से लिपटकर खूब रोया पर मां ने उसे समझाया, पता नहीं दफन होने को दो गज भी जमीन बचेगी कि नहीं, पर तू मत हारना जावेद , अब्बा का सपना पूरा करना| ये जमीन जाने दे | तुझे तो आसमान जीतना है|
इक्कीसवां अंक
जावेद और राय साहब दिल्ली लौट आते है | दो-ढाई महिने ऐसे ही गुजर गये सब रिझल्ट की राह देख रहे थे| और एक दिन परिमाण आ गया | गुरु, विमलेंदू और मयुराक्षी पास हो जाते है| पर संतोष, मनोहर और राय साहब फेल हो जाते है| राय साहब का अंतिम अटेट था| इसीलिये ज्यादा दारू पीकर सो गये थे| मनोहर का फोन ही नहीं उठा रहे थे| दोस्तों को लगा कि उन्होंने कुछ गलत तो नहीं किया होगा| सब डर के मारे रायसाहब के कमरे में पहुंचते है| उसकी अवस्था देख सब दुखी होते है| इसमें संतोष वह स्वयं फेल हो गया है यह भी भूल जाता है| राय साहब ठीक होने पर जब वह अपने कमरे पर लौटता तब उसे एहसास होता है कि वह फेल हो गया है|अपने माता-पिता को फोन करके बता है, वे उसे समझाते है| वह फूट-फूट कर रोता है| दूसरे दिन गुरु से मिलता है तो गुरु समझाता है पहले ही प्रयास में कोई पास नहीं होता| तुम पास हो जाओगे पहले अपने विषय बदल दो| जिसका आपने अध्ययन ही नहीं किया वह आपने विषय क्यों लिए? मम मोहिनी के चक्कर में यह सब हुआ था| पर अब दूसरा क्लास ज्वाईन करने के लिए संतोष के पास पैसे ही नहीं थे| साल भर उन्होंने सारा पैसा पार्टी में उडा दिया था| अब क्या करे? तब गुरु कहता है सारे क्लासेस पैसा कमाने के पीछे नहीं होते| मैं तुम्हें जिनका नाम बताता हूं तुम उनके पास जाओ| और पहले अपने विषय बदल लो | इतिहास के तुम श्यामल सर के पास तो हिंदी के लिए हर्षवर्धन सर के पास चले जाओ| यह दोनों भी विद्यर्थियों के लिए फिट होनेवाले शिक्षक थे| गुरु ने दोनों से बाते की | संतोष की पूरी स्थिति को बताया और कहा की फीस की कोई बात नहीं संतोष जितना जमा कर सकेगा उतना देगा| तब श्यामल सर कहते है बस तुम मेहनत करना| फिर भी संतोष को क्लास के लिए 25 हजार रुपयों की जरुरत थी| अब वह पैसे कहां से लाए| पिता जी को कैसे मांगे| फिर हिम्मत करके मां को 25 हजार रुपये मांगता है| कमला देवी विनायक बाबू को बताती है| अब बीच मंझधार तो हम अपने बेटे को नहीं झोड सकते| वह अपने गहने बेचकर बेटे को पैसे देने की बात करती है| परंतु विनायक बाबू किसी से ब्याज पर पैसे लेते है और अपने बेटे को भेजते है|
बाईसवां अंक
गुरु, विमलेंदू और मयुराक्षी मुख्य परीक्षा की तैयारी कर रहे थे और संतोष भी पूरे मेहनत के साथ पढाई में जूट जाता है| सूर्य की रोशनी में जितने चीजें आती है उतना युपीएस की सिलेबस है | इतनी कठीणता होने के बाद भी यह एक आशावादी क्षेत्र है इसीलिये इसे कोई भी तुरंत छोडकर कोई भी नहीं जाता | मुख्य परीक्षा परीक्षा में गुरु, विमलेंदू और मयुराक्षी तीनों भी पास होते है और मुलाकात तक पहुंच जाते है| इसकी ख़ुशी में मयुराक्षी गुरु को पार्क में मिठाई देने के लिए बुलाती है| गुरु जब पार्क में पहुंचता है तब वह उसी लडके के गले मिलती हुई देखता है| बाद वह गुरु के भी गले मिलती है| परंतु गुरु उसे दूर करता और कहता है जिसे पहले मिली हो उसे ही गले लगाओ | मयूरक्षी को गुरु का यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता| जब उसे गुरु के व्यवहार की पीछे का कारण समझमें आता है| तब वह गुरु पर रुष्ठ होती है | कारण गुरु जिसे उसका प्रियकर समझ रहा वह वास्तव में मयूराक्षी का छोटा भाई पराशर था| दोनों एक साथ रहते है और जिसने बैंक पोओ की परीक्षा पास की है| परंतु गुरु के इससंकुचित विचार के कारण वह गुरु को हमेशा हमेशा के लिए छोडकर चली जाती है| जाते -जाते वह गुरु को कहती कि अब उसे गुरु से बहुत आगे निकल जाना है| यह बात वह सच भी करती है | कारण गुरु मुलाकात में फेल हो जाता है पर मयूराक्षी का 21 वां रेंक आता है| विमलेंदू ने इतिहास रचा था पूरे भारत में उसका 42 वां रेंक आया था| गुरु नें अपने पिता दशरथ बाबू क मेसेज करके कहा कि पिताजी मेरा संघर्ष अभी जारी है|
तेईसवां अंक:-
इस अंक में विमलेंदू के पिता के ख़ुशी का चित्रण किया है| बेटा कलेक्टर बनने कारण भोलानाथ यादव के घर पर स्वयं कैबिनेट मंत्री तेज नारायण यादव अपनी बेटी का रिश्ता लेकर आए थे| उस वक्त उन्हें मारे ख़ुशी के कुछ समझ में नहीं आ रहा था| उस वक्त विमलेंदू मसूरी ट्रेनिंग के लिए गया था| इतना बडा रिश्ता खुद चलकर आया था, इसीलिए वह इन्कार नहीं कर सके और उन्हें शब्द दे गए | यह बात विमलेंदू तक पहुंचे वह अपना निर्णय अपने पिता को बता देता है कि उसने उसके साथ ट्रेनिंग कर रही उडीसा की रितुपर्णा से साथ शादी तय कर ली है| वह भी उडीसा के मुख्य सचिव गजपति महापात्रा की बेटी थी| तीन पीढियों से उसके खानदान में सब आयएएस ही बन गये थे| पिता मंत्री को फोन करते है कि बेटे ने हमसे रिश्ता तोड दिया है और वह अपने मर्जी का मालिक बन गया है| उसके शादी में भी वे मेहमान की तरह ही शामिल होते है| शादी भुवनेश्वर में थी| शादी के बाद विमलेंदू का मन बैचेन हो गया था| कारण उसकी पत्नी हर वक्त कुत्ता चेरी से प्रेम करती रहती| जब वह आयए एस बन गया था तब पूरा गांव देखने आया था परंतु आज इस घर में नए दामाद को मिलने कोई भी नहीं आया था| इस तरह अपनी दुनिया का हिरो यहां एक साधारण स्तर पर आ गया था| इतना ही नहीं तो शादी के रात उसे कुत्ते के साथ सोना पडा तब उसे इन्सान तक होने का दुख हुआ| उसे अपना घर याद आने लगता है| इधर जैसे उसके मन की बात पिताजी जान गये है| वह परम मित्र विरंची पांडे से कहते है कि मेरा बेटा बहुत उंचाई तक पहुंच गया | अब उंचाई दुख कैसे बताये का नीचेवालों को| दोस्त समझाते है कि क्यों टेन्शन ले रहे है?
चौबीसवां अंक :-
रायसाहब गुरु और मनोहर को फोन करके तिमारपुर थाने में बुलवा लेता है| पुलिस उसे पकडकर ले गयी थी| कारण गोरेलाल यादव आयशा को भागाकर ले गया था| गुरु और मनोहर वहां पहुंचते है| दो घंटे के पूछताछ के बाद राय साहब को पुलिस छोड देती| उसे उसके कमरे पर पहुंचाकर दोनों अपने कमरे की ओर निकल ही पडे थे की बत्रा में जावेद दिखाई देता है| वह अपने गांव जा रहा था करण उसकी मां बहुत बिमार थी| वह तात्काल रेल टिकट करवाना चाहता था पर मिल नहीं रहा था| ट्रेवेस का मिल रहा था पर टिकट की किमत 2300 रुपये थी और जावेद के जेब में केवल 800 रुपये थे| परंतु गुरु और मनोहर उसका प्रबंध करते है| जावेद महादेव पुर के निकलता है परंतु उसके पहुंचने पहले ही मां इस दुनिया को छोडकर चली जाती है| मां जाने के बाद वह बिल्कुल टूट जाता है पर उसी वक्त उसका रिझल्ट आता है वह हाकिम बन गया था| मौलवी चाचा उसे समझाते तेरी मां तुम्हारी खुशियों के लिए ही भगवान के पास चली गयी है|
आगे फिर से पीटी का फॉर्म संतोष और मनोहर ने भर डाला| गुरु ने एक साल रुकना ठीक समझा कारण उसका अंतिम अटेम्प्ट रह गया था| परंतु संतोष को अब की बार पूरा विश्वास था| परंतु अब की बार इतिहास विषय वालों की दुर्गति हो गयी और लोकप्रशासन का निकाल अच्छा निकला| अर्थात संतोष का विश्वास टूट गया वह फेल हो गया| वह यमुना नदी की ओर जा रहा था| गुरु उसे देखता है| कहां जा रहे हो ? संतोष क्रोध में कहता है मरने चलना है क्या? कहां गया आप का ज्ञान गुरु ? टीचर बदल लिए, विषय बदल लिए, सब तरह से मेहनत की फिर भी कहां गया रिझल्ट ? अब क्या जबाव दूं अपने पिताजी को? चिल्लते हुए कहता| गुरु उसे शांत करता है और रूम पर लेकर आता है| इतने में पिता जी का फोन आता है? जितना हो सके हमने किया| तुम्हारे भाग्य में आयएएस बनाना नहीं है ? तुम वापस आ जाओ|
फोन रखते ही तुरंत राय साहब का फोन आता है वह भी कहता है की हम दिल्ली छोडकर जा रहे है| वह कहता है यहां बहुत कुछ सीखा तैलेंट ही सब कुछ नहीं है भाग्य में भी होना चाहिये तभी मिलेगा| राय साहब के मन में रह रहकर अपने पिता और राय साहब की बात गूंज रही थी| जो संतोष को अंदर से हिला देती है| अपने हाथ के लकिरों को श्याई से मिटा देता है| और इसमें फिर से मैं अपना भाग्य लिखुंगा| उसने तय किया कि अब वह अपने रस्ते दौडेगा दौडकर भागेगा नहीं|
पच्चीसवां अंक
दूसरी बार भी जब संतोष फेल हो गया तब उसने दिल्ली में रहना तो तय किया था पर यहां रहना आसान नहीं था कारण पिताजी ने साफ कह दिया था दिल्ली के पढाई का खर्चा भेजना अब उनके बस की बात नहीं| पर संतोष वापस जा भी नहीं सकता कारणउसके पास कोई डिग्री नहीं थी जिसके सहारे वह अन्य कहीं हाथ पांव मारे| अत: ऐसे ही महिने ऐसे ही गुजर रहे थे और पिताजी भी यह सोच पैसे भेज रहे थे कि संतोष आज आ जायेगा, कल आ जायेगा| इतनी परेशानियों में खुद को परीक्षा के लिए तैयार करना इतना आसान नहीं था, फिर भी संतोष ने अपने आप को तैयार किया और तिसरी बार पीटी का फॉर्म भर दिया| फॉर्म भरते ही दुनिया से संपर्क ही तोड दिया| बहुत दिनों बाद मनोहर से उसने फोन पर बातें की थी | वह उसने इसीलिये फोन किया था कि बत्रा में उसे विदिशा मिल गयी थी और वह भी वापस जा रही थी| उसकी शादी एक इंजीनियर से तय ही थी| संतोष जाते वक्त उसे मिलता है तब उसने कहा था, हमारे भाग्य में कहीं से सिविल नहीं था सैंटी जी|" तब संतोष राय साहब ने दिल्ली छोडते वक्त कहीं हुई बात याद आती है,"आईएएस आदमी भाग्य से बनता है , तैलेंट से ही सब कुछ नहीं है|"
तब संतोष सोचने लगा दिल्ली छोडनवाले के सबके निशाने पर भाग्य ही है| भाग्य में आईए एस बनना नहीं होता भाग्य छ:-सात साल बर्बाद करने दिल्ली में लाता ही क्यों है? संतोष ने तो अपने हाथ की रेखाएं कब की मिटा दी थी | वह विदिशा को कहता है अगर आपको इंजीनीयर पसंद नहीं मना कर दीजिए| अगर आप सलेक्ट होते तो मना करती| सब हंस पडते है| विदिशा चली जाती है| उसके जाने के बाद संतोष मनोहर को पायल के बारे में पूछता है| परंतु मनोहर ने उसकी बात न करे ऐसा कहा और दोनों बत्रा पहुंच अपने -अपने कमरे में चले गये |
छब्बीसवां
पीटी की परीक्षा हो जाने के बाद रिझल्ट आने तक कोई छात्र अलग राज्य के फॉर्म भरते है, तो कोई अगली परीक्षा की तैयारी में लग जाते है तो कोई घूमने जाते है| ऐसे जी गुरु अपने मित्र के यहां पटना में गया था| वैसे तो उसका यह अंतिम चान्स था| रिझल्ट निकल आता है| न गुरु और न संतोष कहीं भी नजर नहीं आते | संतोष का फोन बंद है इसीलिये मनोहर गुरु को फोन लगाता है और संतोष के बारे में पूछता है| गुरु कहता है मैं तो पटना में हूं हो वह अपने रूम परजाके देखो| हमारा तो अंतिम चान्स भी मिट्टी में मिल गया | और फोन काट दिया| वह संतोष के कमरे पर गया तो ताला लटक रहा था| ऐसे ही पांच दिन गुजरे संतोष का कोई पता नहीं चला | कुछ दिन बाद दिल्ली वापस आया तब उसने देखा की संतोष के कमरे में अलग ही लडका रह रहा हा| तुरंत गुरु ने मनोहर को फोन करके बताया कि संतोष कमरा छोड के चला गया है| फिर भी संतोष कहां है यह पहेली सुलझ ही नहीं रही थी|
सत्ताईसवां अंक :
पर गुरु और मनोहर को इस बात का सुकून था कि संतोष जहां है वहां सुरक्षित है| गुरु का तों बुरा दौर चल रहा था | पर मुखर्जी नगर ने उसके सारे द्वार बंद किए थे| बहुत दिनों बाद राय साहब मनोहर को फोन करता है| गुरु और संतोष के बारे में उल्टी बातें करता है तब मनोहर फोन रख देता है| गुरु बार-बार अपनी कुंडली निकालकर देख रहा था| उसमें स्पष्ट आईएएस का योग स्पष्ट दिखाई दे रहा था| गुरु इस पर हंस देता है और आज पांच दिन बाद वह घूमने निकलता है| चलते-चलते वह बत्रा सिनेमा के पास पहुंच जाता है और देखते ही रह जाता है| कारण बत्रा सिनेमा केतीन मंजिल ऊपर वाले छत पर संतोष का फोटो गया था | वह मनोहर को फोन करके बताते है कि संतोष मिल गया है सबसे उंचाई पर पहुंच गया है| मनोहर जब वहां पहुंचा तब उसने देखा की उनका दोस्त आईपीएस बन चुका हैं| गुरु मनोहर को कहता है 'डार्क हॉर्स' निकला हमारा संतोष|' 'डार्क हॉर्स का मतलब गुरु समझता है कि रेस में दौडता ऐसा घोडा जिस पर किसी ने भी दांव नहीं लगाया हो, जिससे किसीने जीतने की उम्मीद न की हो और वही घोडा सबको पीछे छोड आगे निकल जाए, तो वही डार्क हॉर्स है मेरे दोस्त| उसने भाग्य को ठेंगा देकर अपने मेहनत से अपनी तकदीर खुद गढ ली थी| इसके लिए वह एक साल अंधेरे में रहा और अपने जीवन में उजाला लेकर आया है| इस दिनों में वह संत नगर में रहता है| पर किसी को इसके बारे में नहीं बताता है| जब गुरु और मनोहर कोचिंग पहुंचते है तब संतोष वही बैठा था | तीनों दोस्त गले मिले और खूब रोए| संतोष ने माफी मांगी|
आगे छः साल बाद मनोहर सीमेंट का व्यावसायिक बन जाता है| गुरु राष्ट्रीय पार्टी का प्रवक्ता बनता है | यह खबर वह टीवी जब देखता है तब अपनी पत्नी को कहता है 'एक ओर डार्क हॉर्स' मनोहर को गुरु की कहीं हुई बात याद आती है,"जिंदगी आदमी को दौडने के लिए की रास्ते देती है, जरुरी नहीं है कि सब एक ही रास्ते दौडें| जरुरत है कि कोई एक रास्ता चुन लो और उस ट्रेक पर दौड पडो| रुको नहीं...दौडते रहों | क्या पता तुम किसी दौड के डार्क हॉर्स साबित हो जाओ|" इस तरह इस उपन्यास में संतोष के साथ सब अपने अपने रास्ते के डार्क हॉर्स बन गए|
0 टिप्पणियाँ