सीमा रेखा - विष्णु प्रभाकर

 

विष्णु प्रभाकर लिखित एकांकी  सीमा रेखाराष्ट्रीय चेतनासे परिपूर्ण है|

     प्रस्तुत नाटक में लेखक  ने यह चित्रित किया है कि जनतंत्र में जनता की प्रतिष्ठा होती हैयह ठीक है | पर जब जनता गुंडों के बहकावे में आकर समाज की शांति भंग करने का प्रयास करती है, तब शासन को उन पर रोकथाम लगानी पडती है| ऐसे वक्त कठोर निर्णय लेने भी पडते है| 

पर जननेता का कहना है कि अगर जनता गुंडों की सुनती है तो शासक की क्यों नहीं? इसका कारण यह है कि शासक लोग अपने आप को राजा तथा शासक मानने लगते  है| वे यह भूल जाते है कि जनराज्य में शासक कोई नहीं होता, सब सेवक होते है|’

     परिमाण स्वरूप गुंडों के बहकावे में आकर समाज में आंदोलन होते हैं, जिससे नुकसान केवल जनता का ही नहीं तो शासन का भी होता है| अत: इसके कारण नुकसान केवल देश का ही होता है | अर्थात देश की ही क्षति होती है

     कारण सरकार और जनता के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं होती |

सीमा रेखा इस एकांकी की कहानी एक परिवार के बीच घटीत हो गयी है| जिस परिवार में शासन और जनता के प्रतिनिधी है | बडे भाई लक्ष्मी चंद ५६ साल के है और व्यापारी है| दूसरे भाई शरतचंद्र उपमंत्री है, जो 52 साल के है| तीसरे भाई 48 साल के कैप्टन विजय पुलिस कप्तान है | तो चौथे भाई सुभाषचंद्र जननेता है| जिनकी उम्र ४४ है|

     कहानी का प्रारंभ शरतचंद्र जी के फोन पर बाते करने से हुआ है |

वह विजय को लेकर चिंतित है| कारण बैंक के पास भीड बेकाबू हो गयी है|

     इतने में उनकी पत्नी अन्नपूर्णा घबराई हुई आती है और पति को कहती है आपने सुना रामगंज में गोली चली है| आपके राज्य में गोली कैसे चला सकती है|

     इस पर वे कहते हर कोई समझे तो अपना राज्य| गोली चली हैं, तो इसके पीछे जरूर कोई कारण होगा|

पर सविता को यह बातें बिल्कुल पसंद नहीं | वह कहती गोली जनता की रक्षा के लिये होती है, आत्म रक्षा के लिये नहीं|

     शरतचंद्र कहते है कि विद्रोह को दबाना सरकार को पूरा का पूरा अधिकार है|शरत तिलमिलाकर कुछ कहना चाहता था | इतने में कप्तान विजय वहां आते है|

     शरतचंद्र विजय को गोली क्यों चलाई, इसके बारे में पूछते है| वे गुंडे है|

     अन्नपूर्णा सविता को कहती है तुम्हें इतना तेज नहीं होना चाहिए |

सविता के बाते सुन लक्ष्मीचंद कहते है कि सब मर जाये|अब तो पांच वही मर गये है और बीस घायल हो गये हैं| इतने उसके पति सुभाष चंद्र आते है|

     उनके भी विचार वैसे ही है| उन्हें भी लगता हैं की विजय नें गोली चलाकर गलत किया है| जनता ने ही शासन के हाथ में बागडौर दी फिर चाहे वे जो कुछ करे |

          इतने में बाहर शोर की आवाज आती है| वह देखने के बहने सविता वहां से खिसक जाती है| 

सुभाष को लगता है कि राज्य की रक्षा करते-करते प्राण देने चाहिए प्राण लेने नहीं चाहिए | शरतचंद्र को यह केवल कोरा आदर्श लगता है|

     इतनाही नहीं तो सुभाष यहां तक कहता है कि शाम तक गोली चलाने वाले को कप्तान पुलिस को पकड के छोडूंगा |

     लक्ष्मी चंद अर्थ दादा जी कहते है, अपने ही घर में तुम अपनों के दुश्मन बनके आए हो|

सुभाष मंत्री अर्थात शरतचंद्र को इसका उत्तर मांगता है|

     तब वे कहते है कि भीड को कानून को  हाथ में नहीं लेना चाहिए |

इसपर सुभाष कहता है कि जब तक सरकार और उसके अधिकारी ठीक आचरण नहीं करेंगे, तब तक जनता प्रदर्शन करती ही रहेगी, कानून हाथ में लेती रहेगी| भाईसाहब , इस नौकरीशाही ने, शासन की इस भूख ने आपको जनता से दूर कर दिया है|

इतने में तारादेवी लक्ष्मी चंद्र की पत्नी विक्षिप्त अवस्था में आती है| वह कहती है की जनता की सरकार की गोली का शिकार अविनाश हो गया है|

     यह बात सुनकर विजय पागल सा हो जाता हैं| अविनाश वहां क्यों गया था| लक्ष्मी चंद कहता है कि तुमने मार डाला मेरे बेटे को | शरत कहता छोटे बेटे से क्या बैर ?

     अविनाश उस वक्त जनता था और आप जनता के शत्रु ...

शरतचंद्र मंत्रिमंडल की बैठक के लिये जाने लगते हैं| इतने में सुभाष आता है| भाई को अपने साथ चलने के लिये कहता है| कारण भीड बेकाबू हो गई है|

     जिसके कारण विजय और सुभाष को भीड कुचला देती है| यह सुन विजय की पत्नी उमा चीख पडती है|

     इसप्रकार जनता के आंदोलन के कारण तीन जाने जाती है|

 



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