नैना जोगिन- फणीश्वरनाथ रेणु

 


नैना जोगिन’ - फणीश्वरनाथ रेणु

प्रमुख पात्र

रतनी- नैना जोगिन        नैना जोगिन की मां

रमेसर             रमेसर की मां             स्वयं लेखक

गौण पात्र

माधो बाबू          लेखक की मां             डॉक्टर

पडोसी मल्होत्रा की नौकरानी

नैना जोगिनफणीश्वरनाथ रेणु लिखित ऐसी कहानी है| जिसमें एक पीडित महिला की व्यथा को चित्रित किया है|

      जिसका वास्तविक नाम रतनी है| परंतु लेखक ने उसे नैना जोगिननाम दिया है, कारण उसकी जामुन की तरह कजराई आंखे थी|

उम्र के सातवें साल में गांव के एक प्रतिष्ठित वृद्ध माधो बाबू ने उसके साथ असभ्य व्यवहार  किया था| जिनके यहां उसकी मां नौकरी करती है| आज रतनी और रतनी के मां की गांव में पंद्रह  एकड जमीन है| कारण सातवें में भी उसने माधो बाबू के खिलाफ मुकदमा चलाया था और जीत भी गयी थी| आज ग्यारह साल हुए रतनी मां उस के गांव में जमीनदारिन के रूप में जानी जाती है|

परंतु मां-बेटी ने जो मुकदमा चलाया था,वह अश्लील और घिनौना मुकदमा होने के कारण रतनी बदनामी हो गयी| बढते जवानी ने साथ वह बदनामी भी बढ गयी| इसलिये बडी होने के  बाद भी उसे कोई दुल्हा नहीं मिल रहा था | इसके साथ कोई घर जमाई बननेवाला भी कोई लडका नहीं मिल रहा था|  एक रात एक निमोछिया जवान भात खाने के लिये घर के अंदर गया तब उसकी मां ने उसके साथ जबरदस्ती से शादी की | परंतु आज दो साल हुए शादी को रतनी को संतान नहीं हुई|

तब उसने उसे लात मारकर घर से बाहर निकाल दिया| उस वक्त लेखक उसकी पुछाताछ करते है| कारण लेखक के घर से उसका घर दस रस्सी दूरी पर है| तब वह कहती है अगर शहर का कानून यहां लेकर आयेंगे तो गांव में फिर से मुकदमा चलेगा|

      आज उसका स्वभाव मुंहफट हो गया है| किसी भी कारण से वह लोगों को गंदी-गंदी गालियां देती हैं|

      जैसे आज वह रमेसर को गालियां दे रही है| कारण रमे सर की मां कल हट जाते वक्त लीची की टोकरी लेकर नहीं गयी थी| 

रमेसर लेखक का भैसवार है अर्थात भैसों का रखवाला है| उसके पिता हलवाह है| तो मां बर्तन मांजने का काम करती है| आज रतनी उसे गालियां दे रही है| वह भी बिल्कुल लेखक के घर की तराफ मुंह करके|

      रतनी को लगता है कि गांववालों ने रंडी कहकर बदनाम किया है, पर लेखक तो न करें कारण उन्होंने उसकी मां का दूध पिया है| इतनाही नहीं तो दिनों तक मां कहते थे| पर आज गांव वालों ने उन्हें बदनाम किया है|

वह अपना दुख लेखक को कहती है, “ बोलिये मैं पापिन हूं? मैं अछूत हूं? रंडी हूं? जो भी हूं, आपकी हवेली में पली हूं...तकदीर का फेर...माधो बाबू...रतनी नाम भी आपके ही बाबू जी का दिया है| आपने उसको बिगाडकर नैना जोगिन दिया! किस कसूर पर आप लोगों का क्या बिगाड दिया था रतनी के मां ने जो इसतरह बोल-चाल, उठ-बैठ एकदम बंद |”

लेखक उसकी तरफ ध्यान नहीं देते इसीकरण वह अब लेखक के आंगण के पौधे उखाड रहीं है| तब लेखक उसे और उसके पति को शहर के डॉक्टर के पास ले जाते है| परंतु वह भी असमर्थता व्यक्त करते है| तब वह उदास होती है|

      वह तो वास्तव में नील सरस्वती थी | परंतु समाज ने उसे बदनाम किया |

 

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