ईश्वर का चेहरा - विष्णु प्रभाकर

 ईश्वर का चेहरा - विष्णु प्रभाकर 

            'ईश्वर का चेहरा' विष्णु प्रभाकर लिखित ऐसी कहानी है, जो सच्ची मानवियता की पहचान दिलाती है|  सच्ची मानवियता यह है कि अपने दुख को भूलाकर दूसरे के दुख को दूर करना है| यह भावना जाति तथा धर्म से परे होती है| बस यहां वह इन्सान केवल इन्सान होता है कोई जाति या धर्म का नहीं होता| तब ऐसे इन्सान में ईश्वर का रूप नजर आता है, ऐसी भावना को चित्रित करनेवाली यह कहानी है| और यह भावना प्रत्येक व्यक्ति में होती है कारण मानवता का एहसास प्रत्येक व्यक्ति के दिल में होता ही है|  यह कहानी भी मानव के मानवियता परिचय देनेवाली ही है| वह इसप्रकार-

        इस कहानी में अस्पताल का प्रसंग है| जिसमें एक हिंदु और एक मुस्लीम महिला एक ही बिमारी से पीडित है और अस्पताल में एक ही वार्ड में  इलाज करवा रही है| हिंदू महिला का नाम प्रभा और मुस्लीम महिला का नाम सबीना है|  प्रभा को अब जाने का कोई दुख नहीं| उल्टा वह खुश है कि वह अपने असली घर जा रही है| पर उसके बिमारी के कारण उसके परिवारवाले बहुत दुखी है| अनेक लोग हर रोज उसे देखने और बीमारी का हाल पूछने के लिए  अस्पताल में आते थे। उसके पति महंगी दवाइयां, फल, तथा अंडे लेकर हमेशा उसे मिलने के लिए आते थे। प्रभा की तबीयत में सुधार नहीं है, यह देखकर रोते रहते हैं। 

     प्रभा की आर्थिक स्थिति अच्छी है| वह महंगी दवाईया ला सकती है| पर प्रभा ही है कि उसे अपने असली घर जाने की जल्दी हो गयी है| पर सबीना यह  देखती है कि प्रभा पर बच्चे, पति, परिवार, मेहमान सभी बहुत प्रेम करते हैं। सभी को लगता हैं, वह इस बीमारी से ठीक हो जाए।तब वह सोचती है कि प्रभा को अपने लोगों के लिए ठीक होना ही होगा| इसलिए सबीना हमेशा प्रभा के पास बैठकर सुख-दुःख की बातें करती रहती है। नई-नई पौष्टिक दवाइयां, फल, तथा अंडे खाने की सलाह देते हुए कहती है, "मैंने सुना है यह दवा खाने से तुम्हारे से भी खराब हालत वाले मरीज भी खुदा के घर से लौट आए हैं।" ऐसा कहकर सबीना प्रभा का हौसला बढ़ाने का प्रयास करती है। 

        वास्तव में सबीना ने इन दवाईयों को कभी अजमया तक नहीं| कारण उसकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है| वह झोपड़पट्टी में रहती है।  वह महंगी दवाईया, फल ला नहीं सकती है। वह ला नहीं सकती तो क्या हुआ प्रभा तो ला सकती है| और शायद उसके बच्चो के नसीब से या उनके प्यार को देख भगवान उस पर मेहरबान हो उसके ठीक कर दे| स्वयं उस बिमारी से लड रही सबीना प्रभा के बारे जो सोच रही है वह देख प्रभा की आंखे भर आती है और वह उसे एक टक देखती रहती है| तब प्रभा को बराबर लगता रहा कि ईश्वर का अगर कोई चेहरा होगा तो सबीना के जैसा ही होगा।

        इस प्रकार प्रस्तुत कहानी में लेखक  ने यह स्पष्ट किया है कि स्वयं का दुख भूल दूसरे का दुख कम करनेवाला व्यक्ति भगवान ही हो सकता है| सबीना का यह प्रेमभाव जाति- धर्म की सीमाएं पार करके इंसानियत, मानवता तक पहुंच जाता है।

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