‘बालिका का परिचय’ कविता का आशय(मुकुल काव्य संग्रह में संकलित)
‘बालिका का परिचय’ कविता में कवयित्री ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ जी ने बालिका के गुणों का सजीव चित्रण किया हैं| कवयित्री के अनुसार बेटी ही उनके गोदी की शोभा है और सुहाग की लालिमा होती है| भिखारिन को मिली शाही शान है तथा मनोकामना मतवाली है| कवयित्री के लिए उनकी बेटी ही अंधेरे में दीपक की ज्योति के समान है और काले बादलों के बीच उजाले के समान है|
रातभर कमल में कैद भंवर के लिए उषा मुक्ति का आनंद लेकर आती है और पतझड के बाद आनेवाली हरियाली नव चेतना लेकर आती है, वैसे ही बेटी जीवन में आनंद लेकर आती है|
तपस्वी के समान मगन रहनेवाली और सच्चे मन से प्यार करने वाली बेटी नीरस दिल में अमृत धारा बनकर आती है और नष्ट नयनों की जीवन ज्योति बन जाती है |
उसका मचलना, किलकना और हंसता हुआ अभिनय आदि क्रीडापूर्ण क्रियाएं देखकर कवयित्री को अपना बचपन याद आता है| इसलिये कवयित्री के लिए उनकी बेटी ही मंदिर, मस्जिद, काबा और काशी है| अर्थात लोगों को इन स्थानों में जाकर जो आनंद और शांति की अनुभूति होती है, वही अनुभूति उन्हें अपनी बेटी के साथ रहकर मिलती हैं| बेटी ही उनके लिए की ध्यान, धारणा और जप-तप बन गई है| बेटी में ही उन्हें घट- घट वासी के दर्शन होते हैं अर्थात भगवान के दर्शन होते है|
ऐसी बेटियां अगर आपके आंगन में आती है तो, कृष्णचंद्र की क्रीडाओं को अपने आंगन में देखो और माता कौसल्या के मातृमोद को अपने मन में महसूस करों, ऐसा कवयित्री कहती है| इसलिये कवयित्री कहती है कि प्रभु ईसा में जो क्षमा शिलता है, नबी मुहम्मद के पास जो विश्वास है और गौतम बुद्ध जी के पास जीव दया का भाव है, उन्हें बेटी में देखो |
बेटी के इतने सारे गुणों को चित्रित करने के बाद कवयित्री अंत में लिखती है और मैं क्या बेटी का परिचय दूं | बेटी के गुणों को वही जान सकता है, जिसका दिल मां का होता हैं|
सुभद्रा कुमारी चौहान का परिचय
बालिका का परिचय कविता का आशय
0 टिप्पणियाँ