'नेता क्षमा करें’ — रघुवीर सहाय
'नेता क्षमा करे' रघुवीर सहाय लिखित कविता है| इसमें कवि के भावनाओं को प्रस्तुत किया है| कवि केवल सच्चे दिल से भावनाएँ व्यक्त करता है और अपने भीतर के सृजनात्मकता को गढता है| वह लोगों को नेताओं की तरह को बहलाना नहीं चाहता| अत: उसका उद्देश्य केवल सत्य बोलना और समाज को आईना दिखाना है| परंतु लोग वास्तविक बदलाव की बजाय बाहरी दिखावा पसंद करते हैं| इसीलिए कवि भी ऐसा ही लेखन करे ऐसी अपेक्षा करते है| पर जब कवि यह अपेक्षाएं पूरा नहीं कर पाता तब समाज उसे गलत समझ लेता है| परंतु कवि की भी अपनी मर्यादाएं है| वह अपनी मर्यादाओं में समाज को सत्य कहता है| इसे प्रस्तुत कविता में व्यक्त किया है वह इसप्रकार -
कविता के प्रारंभ में ही कवि यह स्पष्ट करता है कि वह केवल कवि है। उसके पास जनता की भूख मिटाने की ताक़त नहीं है, न ही वह धार्मिक या ईश्वर संबंधी उलझनों को सुलझा सकता है। वह कोई नेता, संत या सुधारक नहीं, बल्कि सिर्फ़ संवेदनशील हृदय वाला कवि है।
इसीलिए कवि समाज के प्रभावशाली लोगों अर्थात नेताओं से कहता है कि वे उसे क्षमा करें, क्योंकि वह उनके स्वार्थ, राजनीति और चालाकियों के मार्ग पर नहीं चल सकता। जो कवि नहीं है अर्थात नेताओं की तरह आपको झूठे वादों में नहीं बहला सकता| उसकी पहचान यही है कि वह एक कवि है, सत्य कहने वाला और समाज का दर्पण दिखाने वाला। इसीलिए कवि कहता है कि यदि सभी लोग और नेता एक ओर हैं और वह अकेला दूसरी ओर खड़ा है, तो भी वह अपनी सच्चाई और कवित्व से पीछे नहीं हटेगा।
इसके लिए जब उसने लोगों से संवाद करना चाहा और सहज भाव से "मैं तुम्हें प्यार करता हूँ" कहा तब निष्क्रिय अर्थात कामचोर लोगों ने उसके शब्दों को अर्थात उसकी गंभीर बातों को बहुत हल्का, साधारण लोकधुन जैसा समझ लिया और उसकी उपेक्षा की| फिर कुछ लोग उठे और बोले तुम बदलाव करना चाहते हो तो आओं फिलहाल यह पुरानी मूर्तियां तोड दो| कवि कहना चाहते है कि ए लोग असल में कोई परिवर्तन नहीं लाना चाहते है केवल बाहरी प्रतीक मूर्तियां तोडकर पुरानी परंपरा तोडने का नाटक कर नई परंपरा की मूर्ति कवि पर थोप देते है| कवि से सहयोग भी ऐसे लिया जाता है जैसे वह केवल औज़ार हो।
आगे कवि कहता है आप ही देखिये वास्तव में जो कवि नहीं अर्थात एक साधारण व्यक्ति या राजनीति/समाज में उलझे लोग अक्सर दूसरों की मूर्तियाँ गढ़ते और फिर ढहाते रहते हैं — यानी दूसरों की आलोचना करते हैं, उनकी छवि बनाते-बिगाड़ते हैं। लेकिन कवि का काम अलग है — वह केवल अपनी आंतरिक मूर्ति अर्थात अपने विचारों, भावनाओं, रचनाओं को गढ़ता है और फिर उसे स्वयं ही ढहा देता है अर्थात तोड देता है, यानी वह लगातार नए सृजन की प्रक्रिया में लगा रहता है।ताकि नए विचारों और सृजन के लिए जगह बने। यहां कवि यह कहना चाहता है कि उसके पास समय ही नहीं कि वह दूसरों की मूर्तियाँ यानी विचार, परंपराएँ या मान्यताएँ बनाने या तोड़ने में लगा रहे| अत: वह दूसरों पर आक्षेप करने की बजाय अपने भीतर की खोज और कविता-रचना में व्यस्त है। इसलिए यह कहना गलत है कि उसकी कविता दूसरों को तोड़ती है।
इस तरह प्रस्तुत कविता में कवि का असली कार्य क्या होता है इसे स्पष्ट किया| कवि का कार्य केवल अपने भीतर की सृजनात्मकता को गढ़ना और ढहाना है। वह दूसरों पर हमला करने या उनकी धारणाओं को तोड़ने में समय नहीं गँवाता। वह नेताओं की तरह झूठे वादे करके लोगों को बहलाना नहीं चाहता। उसकी असली पहचान केवल कवि की है, जो सत्य बोलता है और समाज को आईना दिखाता है।
नेता क्षमा करें’ — रघुवीर सहाय
लोगों मेरे देश के लोगों और उनके नेताओं
मैं सिर्फ़ एक कवि हूं
मैं तुम्हें रोटी नहीं दे सकता न उसके साथ खाने के लिए ग़म
न मैं मिटा सकता हूँ ईश्वर के विषय में तुम्हारा सम्भ्रम
लोगों में श्रेष्ठ लोगो मुझे माफ़ करो,
मैं तुम्हारे साथ आ नहीं सकता।
यानी कि आप ही सोचें कि जो कवि नहीं हैं
कि लोग सब एक तरफ़ और मैं एक तरफ़
और मैं कहूँ कि तुम सब मेरे हो
पूछिए, कौन हूँ मैं ?
मैंने कोशिश की थी कि कुछ कहूँ उनसे
लेकिन जब कहा तुमको प्यार करता हूँ
मेरे शब्द एक लहरिया दोगाना बन
(लोकगीत की वह सरल, मस्तीभरी और लहराती धुन जो आमतौर परमेलों, उत्सवों या ग्रामीण जीवन में गाई जाती है।)उकडू बैठे लोगों पर भिनभिनाने लगे
फिर कुछ लोग उठे बोले कि आइए तोड़ें पुरानी-फ़िलहाल-मूर्तियाँ
साथ न दो हाथ ही दो सिर्फ उठा
झोले में बन्द कर एक नयी मूर्ति मुझे दे गये
यानी कि आप ही देखें कि जो कवि नहीं हैं
अपनी एक मूर्ति बनाता हूँ और ढहाता हूँ
और आप कहते हैं कि कविता की है
क्या मुझे दूसरों को तोड़ने की फुरसत है ?
0 टिप्पणियाँ