B.A. III Sem II- Vidha Vishesh ka Adhyayan - Notes

 

'अंतिम साक्ष्य' उपन्यास की कथावस्तु - 


‘अंतिम साक्ष्य’ चंद्रकांता लिखित उपन्यास है | इसमें दो नारियों के जीवन की कहानी हैं| इसमें से एक नारी ‘बीजी’ है| जो एक  ऐसी नारी है, वह गृहिणी के लिये तय किए गये पारंपारिक विधान के दायरे में अपने होने के अर्थ ढूंढती है| अर्थात बीजी का अपना एक सुखी परिवार है, जिसमें पति ठाकुर, दो बेटे -विकी और सुरेश है| वह पति के प्रति समर्पित है| उसकी सारी दुनिया इस परिवार के भीतर ही समाई है| कारण “वह उस घर-परिवार  की बेटी थी , जहां न जाने कितने पीढ़ियों मां बेटी को और बेटी अपनी कोखजायी को आदर्श नारियों के शील-संस्कार दिमागों में ठूंस-ठूंसकर भरती आई है|”३९  ऐसी संस्कारशील औरतें नहीं तो कोई भी औरत अपने पति के जिंदगी में किसी दूसरी औरत को सहन नहीं कर पाती| अत: बीजी अपने जीवन में हार जाती| और अंदर से पूर्ण तरह टूट जाती है| इस तरह इस उपन्यास में एक ओर बीजी के टूटने की कहानी है, तो  दूसरी ओर जिस औरत के कारण वह टूट गयी उसकी कहानी है|

       वह औरत है ‘मीना’| मीना एक ऐसी स्त्री है, जो स्त्री के प्रति संवेदनहीन पुरुष सत्ताक समाज की लौह शृंखलाओं से लहू लुहान, रूढ नैतिकताओं की जकडनों से मुक्ती के रास्ते तलाशती है | उम्र के पच्चीस वर्ष क्रूरता और शोषण सहती मीना के लिये ठाकुर का प्रेम संजीवनी बन जाता है| और तमाम विवशताओं के बीच जी रही मीना अपनी विवशताओं को अपनी शक्ति बना टूटते सम्बन्धो को जोडने में जीवन सार्थकता पाती है| 

       इस तरह बीजी और मीना दोनों भी संवेदनहीन पुरुष सत्ताक समाज से पीडित है | एक का विश्वास घात हो गया है और दूसरी जिसका भोग वस्तू के रूप में सौदा ही हो गया है | इसी विवशता के बीच वह अपने अस्तित्व के साथ जीने का प्रयास करती है| इसी प्रयास की यह कहानी है| कारण इसी प्रयास के कारण ही मनुष्य भरपूर या आधा जीने के बाद भी अंतत: अपने पीछे कुछ खट्टी-मीठी यादें छोड देता है और यहीं यादें  जीवन में ‘अंतिम साक्ष्य’ बनकर रह जाती है| जो आगे आनेवाली पीढी के लिये रास्ता बनाती है|  ऐसे ही बीजी, मीना  प्रताप, सुरेश और विकी के यादों की कहानी ‘अंतिम साक्ष्य’ है | जो दस अंकों में लिखी गयी है |जिसकी कथावस्तु इसप्रकार –

       इस कहानी की प्रमुख पात्रा ‘मीना’ है| जिसके माता-पिता बचपन में ही मर गये है| चाचा – चाची ने पाला-पोसा है| परंतु उसकी चाची उसके साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं करती थी | चाची उसकी शादी पचास साल के बुढे लाला के साथ कर देती है| परंतु लाला मीना को छुता तक नहीं| कारण उसे शादी के वक्त मीना की उम्र बीस साल बताई थी, परंतु मीना केवल बारह साल की ही थी और उसमें  उसका बेटा मीना पर नजर डालने लगा, तब लाला उसे पुनश्च मायके छोड देता है| मीना की चाची ने मीना की शादी फिर से गुंडे जगन के साथ कर दी |मीना ने उसे अपना पति स्वीकार किया और कुछ समय ही सही उसके साथ बिताये| कारण जगन बाद में उसे दलाल मदनमोहन को बेच दिया |उसका नसीब अच्छा उसे वहां संगीत मास्टर मिलते है, वह भले मानस होते है | वे मीना को बाई के चंगुल से निकालते है|  उसे संगीत सिखाते है और जम्मू रेडियो स्टेशन में नौकरी भी दिलावते है | अब मीना वापस अपने गांव में ‘रेडियो कलाकार’ इस नयी पहचान के साथ रहने लगती है| वही पर उसे कैलाश और रमेश जैसे अच्छे दोस्त मिलते है | कैलाश और रमेश पति- पत्नी है| दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते है| दोनों का मिठ्ठू नामक छोटा सा बेटा भी है | कैलाश अपनी छोटी सी गृहस्थी में खुश थी |

       कैलाश के कारण ही मीना की प्रतापसिंह के साथ पहचान हुई थी| पहली बार सुरेश की मंगनी पर मीना मौसी प्रताप सिंह के घर आई थी| प्रताप सिंह इस कहानी के नायक है| जिन्हें बच्चे बाऊ जी कहकर बुलाते है| वे मीना की जिंदगी में अप्रत्याशित तरीके से आते हैं| खुद का  मकान, सरकारी नौकरी, पत्नी, दो बच्चे के पिता थे| घर गृहस्थी का सारा सुख प्रताप को था| मीना के संपर्क में आते ही कोई कोना फोडे की तरह दु:ख देने लगा| कडकडाती धूप में दिन भर सडक पर खडे, मजदूरों से चखचख करते ठेकेदारों, इंजीनियरों की समस्याओं में सिर खपाते प्रताप का मीना  के प्रति आकर्षण के विषय में चंद्रकांता जी ने लिखा है, “बार-बार भीतर के उस खाली पन से त्रस्त प्रताप मीना को नितांत वैयक्तिक कोने में समेटने को क्यों और कैसे बेताब हो उठे उसके बारे में अनेक तर्क-वितर्क करने के बाद भी वे कोई उत्तर न  पा सके|

       बीजी प्रताप की पत्नी जब विकी के साथ सूट का कपडा खरीदने के लिये मीना के घर गयी थी, तो उसने देखा, भीतर बाऊ  जी पलंग पर लेटे थे और मीना मौसी उनका माथा सहला रही थी| अधलेटी मीना मौसी अपने शरीर के तमाम आवरणों से बेखबर जाने किस भावाकाश में उडाने भर रहीं थी|

बीजी का मुंह क्षोभ और घृणा से  ऐंठने लगा| ‘उम्र भर का जहर तूने मेरे लिये ही संजोए रखा था सर्पिणी कहकर भागती हुई घर लौटी| उस रोज के अप्रत्याशित घटना के बाद बाऊ जी जल्द घर लौटने लगे, परंतु इसके बाद बाऊ जी और बीजी के बीच दूरियां बढती गई | चंद्रकांता जी लिखती है, “आंतरिक रूप से अलग होते पति- पत्नी पुन: लगाव के कारण अपने भीतर फिर ढूंढ न सके| भीतर की टूटन यहीं से सुरु हो गयी थी| इसके बाद बाऊ जी महिने भर के दौरे पर निकाल गये| अब की बार बीजी बहुत रोई थी| अपना कोई बाहर जाते वक्त रोना बीजी अशुभ मानती थी| अत: बीजी की तबियत दिन-प्रतिदिन खराब रहने लगी| मामूली सा  बुखार तपेदिक का रूप धारण कर गया | भूख मरती गयी और जीने की इच्छा थी| बाऊ जी पत्नी की विरक्ती को देखकर दुखी थे, किंतु उसे समझा नहीं सके|

       बीजी की मृत्यु के बाद बाबूजी और विकी उदास रहने लगे| सुरेश ने तो आवरगर्दी के तमाम हदों को लांघ दिया| अत: परिवार को संभालने के लिये बाऊ जी मीना मौसी को घर लेकर आते है| बाऊ जी ने मीना से कहा था, “तुम्हें आज भी किसी सुख का लालच देकर साथ चलने के लिये नहीं कह रहा | बस थोडा सा  सहारा चाहिये| उस वक्त मीना भी उदासी, सहानभूति  और करुणा की त्रिवेणी में नहा उठी थी|

मीना मौसी के घर आते ही विकी घर छोडकर जाने की जिद्द करने लगा और सुरेश दिवाण साहब की लडकी को लेकर भाग गया| बाऊ जी बहुत दु:खी हुए, क्यों कि उनकी इच्छा थी कि उनके दोनों बेटे पढ- लिखकर अच्छे ओहदे पर जाएं| परंतु दोनों बेटे बीजी के जाते ही अलग सोचने लगे| इन सारी चिंताओं से उन्हें तनाव का रोग लग गया| रात रात भर करवटे बदलते रहते| बीजी के मृत्यु के बाद बाऊ जी का घर जो टूटा फिर जुड न सका| मीना मौसी का आना भी उन्हें खुश नहीं कर सका| एक अशुभ मौन मीना मौसी और बाऊ जी के बीच जडें पकडता गया| दोनों लडके  मीना मौसी को अपनी मां की मौत का जिम्मेदार समझते थे| सुरेश ने घर में आवरा लडकियां लाना शुरू कर दिया| बाऊ जी उसे समझा नहीं सकते कारण उन्होंने मीना को घर में लाकर रखा था|

सुरेश की आवरगर्दी इतनी बढ गयी कि उसने गुप्ता सर पर चाकू से वार किया| पुसिल उसे हथकडी लगाकर घर लाई तो बाऊ जी ने उसे हमेशा के लिये घर से बेदखल कर दिया| आगे फुटपाथ की जिंदगी से तंग आकर वह आर्मी में भर्ती हो गया|

       विकी एम.एस्सी. पूर्ण करने के बाद दिल्ली में नौकरी करता है| जिससे मुश्कील से घर किराया निकलता था| पर वह उस माहौल से निकलना चाहता था| दिल्ली में उसकी मुलाकात मिस नीला सिंह से हुई | यह विकी की उम्र की थी और बडी सुलझी हुई लडकी थी| दोनों जल्दी अच्छे दोस्त बन गये | दोनों ने अपनी अपनी प्रेम कहानी सुनाई और साथ-साथ रहने का निश्चय किया| इसी बीच विकी को बाऊ जी एक्सीडेट की खबर मिलती है|

बाऊ जी ने मरने से पूर्व घर का बटवारा कर दिया परंतु विकी और मीना ने उनकी मौत के बाद उसको बेच दिया और अपने-अपने रास्ते चले गये | विकी अपने जीवन की शुरुआत नये सिरे से करता है| सुरेश वापस घर लौट कर नहीं आता| मीना मौसी पीछे मुडकर नहीं देखती| विकी का हाथ पकड उसे आगे बढा रही है| उम्र के अनुभव  उसे सिखा चुकें हैं कि कटना, जुडना, जख्मी होना, अनिवार्य शर्तें हैं, जीवन की अर्थवत्ता पाने के लिये|

इसप्रकार प्रस्तुत उपन्यास में अनमेल विवाह और उसके फलस्वरूप मीना की नियति, विवाहेत्तर सम्बन्धो का निरुपण हुआ है| यथार्थत: यह उपन्यास मातृ-पितृ विहीन, अनाथ मीना के विवश जीवन का दस्तावेज है|     

 

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