अब गरीबी हटाओ और लडाई

🔊प्रथम  सत्र के नोट्स 🔊

 

















































































🔊द्वितीय सत्र के नोट्स 🔊

























































‘अब गरीबी हटाओ’ नाटक की कथावस्तु :-

‘अब गरीबी हटाओ’ सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखित नाटक हैं| जो सात दृश्यों में लिखा गया है| जिसमें कुल प्रमुख पात्र छह हैं| प्रस्तुत नाटक में  गरीबी के कारण स्त्री शोषण किस प्रकार होता है, इस पर प्रकाश डाला है| इसमें दो प्रसंग है, जो अलग-अलग परिस्थिति में घटीत होते है| एक प्रसंग आधुनिक तो दूसरा प्रसंग प्राचीन समय का है| दोनों प्रसंग स्त्री शोषण पर प्रकाश डालते है, जिसके लिए केवल गरीबी ही है| उसका विवेचन नाटक पर आधारित निम्न रूप में कर सकते है| 

पहला दृश्य:-

सत्य मंडली के कलाकार नट-नटी रंगमंच पर ‘दंडे का घोडा’ नाटक कर रहे है| नट गीत गाते-गाते वह दंडे के घोडे को चलाते-चलाते रंगमंच पर पहुंच जाता है, जिसने विदुषक का हुलिया बना रखा है| सभी नेतागण विदुषक ही तो लगते है | इसीलिए उसे लगता है कि नेताजी का दंडे का घोडा चल सकता है, तो हमारा भी चला सकता है बस  जरुरत है हवाई किला बनाने की, ख्याल पुलाव पकाने की| नटी उसे इस बात का एहसास दिलाती है कि दंडे का घोडा कुछ काम का नहीं होता| वह आगे भी नहीं जाता वही का वही घूमता रहता है|जैसे लोगों को कहीं पहुंचने की चिंता ही नहीं है| पर हमें आगे जाना है कारण हम रंगकर्मी है | हमें नाटक करना है और तुम सूत्रधार हो| तब ‘दंडे का घोडा’ नाटक का प्रारंभ गणेश वंदना से होता है| परंतु इतने में खद्दर की टोपी पहननेवाले नेताजी का रंगमंच पर प्रवेश होता है| जो अपने आप को सूत्रधार बताते है| नेताजी मानना है कि  “हर नाटक का सूत्रधार मैं होता हूं, मैं ही रहूंगा| आपकी मंडली मेरी ही मंडली है| जब नट कहता कि आपका असत्य का नाटक ‘सत्य - मंडली’ नहीं कर सकती| तब नेता कहता है कि “यहां सत्य-असत्य कुछ नहीं होता| न राजनीति में, न साहित्य में, न कला में, न तुम्हारे थियेटर में|”  इसलिए ए नाटक आपको करना ही होगा| यह नाटक ऐसा करना है जैसे देश से गरीबी हट गयी है, ऐसा लगना चाहिए| सब सुख शांति से रह रहे है | अगर आप करने से इन्कार करेंगे तो कानून द्वारा करवाएंगे| कारण हम बस नचाना जानते है| इसलिए रंगमंच से ‘गरीबी हटाओं’ नाटक का ऐलान होता है| जो सांस्कृतिक उत्सव में मंत्री जे के सामने होता है| 


दूसरा  दृश्य:-

गरीबन का पुरवा गांव में सांस्कृतिक कार्यक्रम की तैयारी जोरों से शुरू है| नट न्याय व्यवस्था की बुनियाद कैसे हिल रही है यह गीत गाता हुआ रंगमंच पर आता है| तभी मुख्यमंत्री त्रिपाठी और कृषी मंत्री वहां पधारते है| उनके पिछे संत्री और दरोगा है| इस गांव का चुनाव करने के मुख्यमंत्री दरोगा की प्रशंसा करते है| करण इस गांव में सत्तर प्रतिशत हरिजन है और बाकी जाट-ब्राह्मण करीब- करीब बराबर है| गांव के सरपंच शर्मा है | उन्हें बुलाया जाता है और गांव की समस्या के बारे में पूछा जाता है| वे पानी की समस्या के बारे में मंत्री को बताते है| हरीजनों के लिए कुंआ भी नहीं खोद नहीं सकते कारण उनके हिस्से की जमीन नहीं है| कुंआ भी खुदवा देते पर उनके मन में बराबरी की हवस जग जायेगी, इसीलिए जो चल रहा वह ठीक है| इसके बाद महमूद कव्वाल की कव्वाली होती है| इसके बाद मुख्यमंत्री ‘गरीबन की पुरवा’ गांव के लोगों को संबोधित करते है| वे लोगों को बताते है कि गरीबी हटाने के लिए अलग मंत्रालय की स्थापना की गयी है, जिसके लिए छह करोड बानवे अरब रुपया खर्च कर चुके है| समय लगेगा कारण हमारा देश बडा है, पर गरीबी जरूर हटाई जायेगी| सिर्फ दस साल हमें दे दीजिए| 

इतने में वहां शोर मच जाता है| एक ग्रामीण एक औरत उसके दो बच्चों के साथ  लेकर आता है| जो भूख के कारण आत्महत्या करने गयी थी| उसका पति खून के जुर्म में जेहल काट रहा है| उसने  पिछले चुनाव में  सरपंच के खिलाफ खडे उमेदवार का गंडासे खून किया था| उसके औरत को भी जेल में भेजने के लिए कहा जाता है| ग्रामीण यह बताने का प्रयास करता है उसके पति ने कुछ नहीं किया, उसे फंसाया गया था| फिर भी दारोगा उसकी एक बात भी नहीं सुनता, उस औरत को लेकर जाता है और  मुख्यमंत्री गरिबी हटाने की बात करते है और दूसरा  दृश्य समाप्त होता है|  

तीसरा  दृश्य:-

तीसरा दृश्य मंत्रियों के कुछ वर्ष पूर्व की घटना अर्थात राजाओं की समय की घटना को चित्रित किया है| दृश्य का प्रारंभ नट-नटी के गीत-नृत्य से होता है| मंत्रियों के लोकतंत्र में केवल गरीब पिटता रहता है, राजाओं के समय में भी कोई अलग बात नहीं थी, इसे ही इस दृश्य में चित्रित किया है| इसमें मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री ही राजा और मंत्री बने है| राजा के सामने एक आदमी और औरत को बंदी बनाकर लाया गया है| जो गरीबन गांव के हैं| दोनों नाचते और गाते अच्छा है इसीलिए दोनों को बंदी बनाकर लाया गया है| औरत के मीठी आवाज को सून राजा उसे गीत गाने के लिए कहते है| औरत महंगाई का गीत गाती है| राजा खुश होते है| उनके गांव का नाम गरीबन की जगह गरीबन की पुरवा कर देते है और उसे कहते है कि आज से तू हमारे महल में रहेगी| अब तू गरीब नहीं है| प्र औरत कहती हमारा महल कुछ सम्बन्ध नहीं है, बस हमारे गांव की गरीबी हटाई जाए| पर इनके गांव में कोई गरीवी नहीं, यह औरत झुठ बोल रही है, ऐसा मंत्री कहते है| कारण धरती का स्वर्ग होता है | वहां बडी सुख शांति होती है| पर औरत फिर से कहती है हम एक वक्त की खाकर ही रहते है सारा अनाज आपके सिपाही खेत से ही ले जाते है| गांव में कुंआ तक नहीं| फिर से मंत्री कहता है यह औरत झूठ बोल रही है, गांव में कुंआ है| पर मांगने पर ही पानी मिलता है और हमे हमारे हक्क का कुंआ चाहिए बीच में ही आदमी उत्तर देता है| जो औरत का होनेवाला पति है| 

पर मंत्री कहता है अब वह तेरी औरत नहीं वह महल में रहेगी| राजा के लिए सब जान देने के लिए तैयार होते और तू एक लुगाई नहीं दे रहा| तेरी औरत भाग्यशाली है|आदमी कहता है हम अपना घर बसाना चाहते है| हम कहीं के नहीं रहेंगे| पर उसकी कोई बात सूनी नहीं जाती| सैनिक आदमी को पकडकर ले जाता है, औरत उसके साथ जाने का प्रयास करती है, पर सेनापति उसे रोकता है| राजा लोलुपता की हंसी हंसता है| तीसरा   दृश्य  यहां समाप्त होता है| 

चौथा दृश्य:-

चौथे दृश्य में आत्महत्या करनेवाली औरत के साथ हुई घटना का है ,हवालात में बंद किया है| इसका भी प्रारंभ नट-नटी के गीत से होता है| जिसमें देश में चारों तरफ रक्षक लुटेरे है, जिन्हें गरीबों को कैद करना कितना आसान है इसे व्यक्त किया है| यह लुटेरे राक्षसी वृत्ति के हैं|

हवालात में दारोगा आए हैं| जहां गरीबन को रखा है| दारोगा उस पर क्रोधित होता है| परंतु उसे अपने बच्चों की फिक्र हैं| तब दरोगा कहता है| बच्चे खुश है, वे आराम से खेल रहे| वे हलवा पूरी खा रहे है| उनकी देखभाल सरपंच कर रहे| अब वे भी आ रहे है, उन्हें पूछना| तेरे बच्चे ज्ञानू और सरसती को तुझे दिखाने के लिए लायेंगे| तेरे बेटे को सिपाही और बेटी को दाई बनायेंगे| उनकी शादी भी करेंगे| इतने में शराब के नशे में सरपंच आते है| दारोगा कहता है| इनके बच्चों की शादी करेंगे न? शादी क्या उन्हें घोडे पर बिठायेंगे| वैसे तो हरिजन हमारे सामने घोडे पर नहीं चढ सकता| कारण ब्राह्मण यदि उन्हें घोडे पर चढा देखता है, तो उसे सीधे नरक में जाना पडता है| कोई बात नहीं हम नरक में भी जायेंगे| ऐसा सरपंच कहते है| बच्चे दूध मलाई खा रहे है यह सून औरत बहुत खुश होती है| तब दोनों लोलुपता की हंसी हंसते है और जिसका आतंक औरत पर बढता है|   इस दृश्य के अंत में केवल औरत की चीख सुनाई देती है|और यहां चौथा दृश्य समाप्त होता है| 

पाचवां दृश्य:-

पांचवा दृश्य राजा के अंत:पुर का है| जहां गरीबन शय्या पर बैठी है| 

जैसे है राजा का प्रवेश अंत: पुर मी होता है वैसे ही वह औरत राजा के पैर पकडती है और कहती है मुझे जाने दो| हम तुम्हारे लायक नहीं है| हम हरिजन है| छोटे जात है है| मेरे सारे परिवार है गरीब है | राजा कहता है अब तू गरीब नहीं है| मेरे दिल की रानी है| अब कोई गरीब नहीं रहेगा| बस तू यह कह दे कि तू मेरी रानी है|

पर औरत है कि अपने मरद के साथ रहना चाहती है| उसके मरद जबान लडाई इसीलिए तो उसे जेल में डाल दिया है| वह अपने मरद को छोडने के लिए कहती है| और रोने लगती है| तब राजा कहता है कि क्या मैं तुझे पसंद नहीं| तेरे लिए मैं सबको मालामाल कर दूंगा| तेरे मां-बाप, मरद| मरद को तो सेना में रख लूंगा| तेरे बाप को गरीबन के पुरवा का राजा कहेंगे| बस तेरे हुक्म की देर है, तेरा घर महल हो जायेगा| औरत खुश होती है| 

आगे राजा कहता है मुझे तेरा यह नाम पसंद नहीं है| आज से तेरा नाम गौरी बानू होगा| हमारी महारानी ‘गौरी बानू’| इस पर औरत चुप रहती है| हम तुझ पर जान देते है| तुझपर सबकुछ न्यौछावर कर सकते हैं| वह राजा को मर्द को छोडने के लिए कहती, मां-बाप के लिए घर बनवाने के लिए कहती, घर के सामने कुंआ खोदने के लिए कहती है| इसके बदले में वह राजा को अपने आप को सुपूर्द करती है| अंत में उसके साथ नाचता गाता है और उसे अपने पास खिंचता है| यहां पर नाटक यह दृश्य समाप्त होता है| 

छटा दृश्य:-

छटे दृश्य में राजा ने गरीबन के मरद को छोड दिया है| यह बात प्रहरी उसे बताता है| आदमी जानता है कि इसके लिए उसके औरत ने बडी कुर्बानी दी होगी| उसके कहने प्र ही राजा ने उसे सैनिक भी बना दिया है| परंतु सैनिक बनना सबसे बडा जेल है, यह बात प्रहरी उसे कहता है|  कारण वहां आदमी दूसरे के हुक्म का मोहताज होता है, जैसे आज प्रहरी है| लगान न देने के वजह से राजा ने प्रहरी  बाप को मार डाला और उसकी सारी जमीन हडप ली| उसे सैनिक बनाया जहां उसकी मर्जी कुछ नहीं चलती| वह सबसे बडा लुटेरा है और लुट का हथियार हमें बनाता है| आज सैकडों रानियां हैं| 

तुम सैनिक नहीं बनना चाहते, तो भी तुम्हें सैनिक बनना पडेगा| घर, औरत, सुख, शांति कहने के लिए बहुत अच्छा लगता है, पर वह हमारे लिए नहीं| अगर तुम विद्रोह करोगे तो कुचल दिये जाओगे| तुम्हारी औरत भी तुम्हें मिलने आयेगी, तो भी उसके खिलाफ कुछ नहीं कहना| तब आदमी राजा को मारने की बात करता है| ऐसी गलती तो कभी नहीं करना, कारण दीवारों के भी कान होते है| 

राजा के पास हम प्रशंसक होने की खबर जानी चाहिये | राजा को अगर यह पता है कि हम उसके स्वामी भक्त है, तो वह हमें तुकडी का नायक बनाता है| हम सेनापति नहीं बन सकते| कारण छोटे जात के है| छोटे जात का काम हुकुम बजाना होता है| हुकुम देना नहीं| 

तुम्हें राजा का खात्मा करना है तो राजा के प्रशंसा का गीत जोर-जोर से गाना होगा| कारण गाना आग की तरह फैलता है| तब राजा हमें सबसे ज्यादा वफादार समझेगा और हमारी तुकडी महल के पहरे पर लगेगी| तब तुम्हारी औरत मिलने आयेगी, तब हम उसकी मदद से रंगमहल तक पहुंचेगेऔर राजा का काम तमाम कर देंगे| और दूसरा राजा हम बनायेंगे| परंतु तब तक राजा के प्रशंसा का गीत गायेंगे| जैसे-

“हम राजा को प्यार करेंगे,

मौत भी आए ललकार लडेंगे,

हम अपने राजा को प्यार करेंगे|” 

यहां छटा दृश्य समाप्त होता है|

सातावां दृश्य:-

सातवें दृश्य में आत्महत्या करने गयी गरीबन का पति जेल से भागकर गांव में आया है| वह ग्रामीण को अपने औरत और बच्चे के बारे में पूछता| उसके औरत के साथ सरपंच और दारोगा ने जो किया उसे वह बताते है| बच्चे एक दो बार सरपंच की बकरी चराते दिखे थे, बाद में नहीं दिखे, लोग कहते है कि शायद उन्हें बेचा है| आदमी उसे मारने की बात करता है| तब ग्रामीण कहता कि उसे मारकर कुछ नहीं होगा| दूसरा सरपंच पैदा होगा| उसका बहुत बडा खानदान हैं|उसकी असली जडें काटनी होगी| बदला ऐसा लेना चाहिए जो न फले, न राजा रहना चाहिए न मंत्री| 

अब तुम्हें सबको साथ लेकर लडना होगा| तुम जवान हो, मर्द हो अपने सरपंच खुद बनो| आग से लडों, धुएं से नहीं| इस तरह नट-नटी मंच पर गरीबों के पक्ष में विचार व्यक्त करने लगते है| तब नेता मंच पर आता है और नट को कहता यह आपने क्या सुरु किया यह गरीबी हटाओं नाटक है| नहीं अब इस मंच से ‘अब गरीबी हटाओ’ यही नाटक होग|   






 


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