B.A. III Hindi पेपर नं. 14 हिंदी साहित्य का इतिहास Objectives


 ⧭महत्वपूर्ण प्रश्न⧭

1) रीतिकाल में सामंतवादी  समाज व्यवस्था थी|
२) रीति काल के शासक भोग में रत थे |
३) रीति काल में शृंगार रस की प्रधानता थी |
4) बिहारी सतसई में ७१३ दोहे हैं|
५) 'रीति'  शब्द का अर्थ है 'काव्य निरुपण"|
6) रमा शंकर शुक्ल ‘ रसाल’ रीतिकाल को कलाकाल नाम से पुकारा है|
7) रीतिकाल में कला पक्ष की प्रधानता थी|
8)मित्र बंधुओं ने रीतिकाल को अलंकृत काल नाम से  अभिहित किया है|

9) सम्राट मोहम्मद शाह इतिहासकारों ने रंगीले की उपाधि दी है|

10) रीतिकाल का समय संवत 1700  लेकर 1900  तक माना जाता है|

11) मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार के रूप में  अज्ञेय को पहचाना जाता है|

12)आधुनिक काल का प्रारंभ संवत 1900 से  आचार्य शुक्ल विद्वान मानते हैं|

13)हिंदी साहित्य के इतिहास में प्रथम लेखक गार्सा द तासी है|

14) भूषण वीर रस के कवि माने जाते हैं|

15) प्रसाद की कामायनी को आधुनिक युग का महाकाव्य कहा जाता है|

16) ब्रज भाषा में जयशंकर प्रसाद कलाधर उपनाम से रचना लिखते थे|

17) बिहारी मूलतः शृंगारी कवि है|

18) घनानंद की प्रेमिका का नाम सुजान है|

19) आधुनिक काल में लिखी गई खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य उर्वशी है |

20) भारत दुर्दशा नाटक के नाटककार भारतेंदु है|

21) आचार्य शुक्ल परीक्षा गुरु उपन्यास को हिंदी का पहला उपन्यास मानते हैं|

22) प्रेमचंद को हिंदी उपन्यासों सम्राट कहा जाता है|

23) गोदान प्रेमचंद का उपन्यास है|

24) आधुनिक हिंदी साहित्य का प्रवेश द्वार भारतेंदु युग को माना जाता है|

25) भारत में सबसे पहले बंगला भाषा में उपन्यास लिखें|

26) प्रेमचंद की गोदान उपन्यास को भारतीय कृषक जीवन का महाकाव्य माना जाता है|

27) गो  संकट नाटक के नाटककार है प्रताप नारायण  मिश्र|

28) चंद्रगुप्त यह प्रसाद जी की प्रसिद्ध कृति है|

29) हिंदी के प्रमुख ऐतिहासिक उपन्यासकार वृंदावन लाल वर्मा है|

30) रामवृक्ष बेनीपुरी का पैरों में पंख बांधकर प्रसिद्ध  यात्रा  वृत्त है|

31) सन्यासी इलाचंद्र जोशी का प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक उपन्यास है|

32) शेखर एक जीवनी उपन्यास के लेखक अज्ञेय  है|

33) प्रसाद की पहली कहानी इंदु पत्रिका में प्रकाशित हुई थी|

34) आंचलिक उपन्यासों के प्रवर्तक फणीश्वर नाथ रेणु को माना जाता है|

35) मैला आंचल फणीश्वर नाथ रेणु का प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है|

36) आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आनंद रघुनंदन हिंदी का पहला नाटक माना है

37) झांसी की रानी नाटक के नाटककार वृंदावन लाल वर्मा है|

38) नाट्यशास्त्र भरतमुनि कृति है|

39) द्विवेदी युग में हिंदी नाटकों की परंपरा धीमी पड़ गई|

40) मादा कैक्टस लक्ष्मी नारायण लाल का प्रसिद्ध नाटक है|

41) साठोत्तरी कविता के प्रमुख कवि धुमिल  है|

42) छायावाद इस नामकरण मुकुटधर पांडेय कवि ने पहली बार उपयोग किया|

43) हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद का आरंभ 1936 ईस्वी सन् से माना जाता है|

44) 'किन्नर देश में' यात्रा वृत्त के लेखक पं. राहुल सांकृत्यायन है|

45) प्रगतिवाद के मूल में मार्क्सवादी विचारधारा है |

46) शोषित उनके प्रति करूण गान प्रगतिवाद काव्य की प्रमुख विशेषता है|

47) प्रकृति चित्रण छायावाद की प्रमुख विशेषता है|

48) कठिन काव्य का प्रेत केशवदास को कहा जाता है|

49 दास कैपिटल के लेखक कार्ल मार्क्स है|

50) बोलचाल की भाषा  साठोत्तरी कविता की प्रमुख विशेषता है|

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😀अतिरिक्त प्रश्न 😀

  युनिट 1 रीतिकाल

1. नामकरण

1.आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने रीतिकाल का समय सं1700 से   सं 1900 तक माना  हैl

*  २.आचार्य रामचंद्र शुक्ल जिने रीतिकाल को उत्तर मध्य काल कहा हैl

३. डॉक्टर नगेंद्र जी ने आचार्य केशव दास जी को रीतिकाल के प्रवर्तक के रूप में माना है l

4.आचार्य रामचंद्र शुक्ल चिंतामणी को रीतिकाल के प्रवर्तक के रूप मे -मानते है l

५.काव्यशास्त्र के नियमों पर आधारित जो ग्रंथ लिखे जाते है, उन्हे लक्षण ग्रंथ कहा जाता है

*६.केशवदास रीति बद्ध कवि हैl

*७.बिहारीलाल रीति सिद्ध कवि हैl

.जॉर्ज ग्रियर्सन ने रीतिकाल का नामकरण रीति काव्य ऐसा किया हैl

*९.मिश्र बंधुओं ने रीतिकाल का नामकरण अलंकृत काल ऐसा किया है।

**१०.रीतिकाल का नामकरण आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ने दिया है।

**११.विश्वनाथ प्रसाद मिश्र जी ने रीतिकाल को श्रृंगार काल कहा है।

१२.त्रिलोचन ने रीतिकाल को अंधकार काल कहा है।

13.रमाशंकर शुक्ल 'रसालने रीतिकाल को कलाकाल कहा है।

14.डॉ भागीरथ मिश्र ने रीतिकाल को रीति श्रृंगार काल कहा है।

१५. डॉ गणपति चंद्रगुप्त ने शास्त्रीय मुक्त काव्य परंपरा इस प्रकार रीतिकाल का नामकरण किया है।

16. डॉ शिवकुमार शर्मा ने रीतिकाल को भौतिक वादी साहित्य ऐसा नाम दिया है।

 सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति

 17. जहांगीर के शासनकाल से रीतिकाल का प्रारंभ होता है।

१८. रीतिकाल मुगलों की सत्ता का पतन का युग है

१९. रीतिकालीन मुगल शासक शाहजहां का समय सुख शांति और समृद्धि का रहा है।

२०.रीतिकाल की कालखंड में ही शाहजहां ने अपनी पत्नी की मृत्यु की शोक में

ताजमहल की स्थापना की थी।

२१. मुगल शासकों में औरंगजेब एक कट्टर धार्मिय शासक रहा है।

२२. औरंगजेब के कट्टर धार्मिकता के कारण आगरा में जाट शक्ति निर्माण हो गई थी।।

23. औरंगजेब के कट्टर धार्मिकता के कारण पंजाब में बंदा बैरागी या शक्ति निर्माण हो गई थी।

२४. औरंगजेब के कट्टर धार्मिकता के कारण दक्षिण में मराठा शक्ति निर्माण हो गई थी।

२५. 22 अक्तूबर, 1964 को बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों ने शाह आलम द्वितीय को पराजित किया था।

२६. रीतिकालीन युग विलासप्रधान युग कहा जा सकता है|

 केशवदास

२७. केशव दास जी का जन्म संवत १६१२ में बुंदेलखंड के ओरछा नगर में हुआ|

२८. केशवदास  जी के पिताजी का नाम काशीनाथ मिश्र है।

*२९. केशवदास इंद्रजीत सिंह के दरबारी कवि है।

३०. केशवदास  जी का मृत्यु  सं. 1674 में ताई  जाता है।

*३१.केशवदास जी को कठिन काव्य का प्रेत कहा जाता है।

*32. केशवदास जी ने  रसिकप्रिया ग्रंथ में रस का निरूपण किया है।

33.कवि प्रिया ग्रंथ में अलंकारों का निरूपण हुआ  है।

३४. ‘छंदमाला’ ग्रंथ में छंदों का निरूपण हुआ  है।

३५.रामचंद्रिका राम काव्य का महत्वपूर्ण प्रबंधात्मक ग्रंथ है।

*३६.रामचंद्रिका को अलंकारों का पिटारा कहा जाता है।

३७.रतनबावनी एक प्रबंधात्मक रचना है, जिसमें राजा महाराजाओं की वीर गाथाओं का यशोगान है।

३८.विज्ञान गीता एक अध्यात्मिक ग्रंथ है।

३९. संस्कृत के प्रबंध चंद्रोदय के आधार पर केशव दास जी ने विज्ञान गीता इस ग्रंथ की रचना की है।

४०.जहांगीर जस  चंद्रिका क  प्रबंधात्मक रचना है, जिसमें राजा महाराजाओं की वीर गाथा उनका यशोगान मिलता है।

४१ वीर सिंह देव चरित केशवदास की एक प्रबंधक रचना है, जिसमें राजा महाराजाओं के वीर गाथाओं का यशोगान मिलता है।

 बिहारी

 ४२.बिहारी का जन्म संवत 1652 विक्रमी में ग्वालियर में हुआ।

*४३.बिहारी के पिता का नाम केशव राय है।

*४४. बिहारी के गुरु का नाम नरहरिदास है।

*४५. बिहारी महाराजा जय सिंह के दरबार के  आश्रित कवि है|

*४६.बिहारी की मृत्यु सं1720 में बताई जाती है।

*४७. बिहारी की एकमात्र रचना बिहारी सतसई है।

*४८. बिहारी सतसई में 713 दोहे हैं।

४९. बिहारी सतसई में श्रृंगार रस का प्रमुखता से चित्रण मिलता है।

*५०. बिहारी एक शृंगारी कवि हैं|

भूषण

*५१.भूषण जी रीतिकालीन एक वीर कवि है|

*52. भूषण जी का जन्म कानपुर जिले के तिकवांपुर गांव में इ.स. १६१५ में हुआ है|

*53.भूषण जी के पिताजी का नाम रत्नाकर त्रिपाठी है|

54.भूषण जी की मृत्यु इ.स. १७१५ में हुई है|

*५५.भूषण को ‘भूषण’ यह उपाधी चित्रकूट नरेश रुद्रशाह सोलंकी इ.स १६६६ में दी है|

*५६.छ. शिवाजी महाराज और बुन्देलखंड के नरेश छत्रसाल भूषण के प्रिय राजा थे|

*५७.‘शिवराज भूषण’ अलंकारों का लक्षण ग्रंथ है|

*58.‘शिवराज भूषण’ छत्रपति शिवाजी महाराज जी के जीवन पर आधारित है|

५९.शिवराज भूषण का रचनाकाल सं. १७३० है|

*६०.शिवाबावनी छत्रपति शिवाजी महाराज जी के जीवन पर आधारित भूषण की 52 छंदों की रचना है|

*६१. बुंदी नरेश के जीवन आधरित भूषण की रचना छत्र साल दशक  है|

62.छत्र साल दशक  कवित्त छंद में लिखी रचना है|

६३.भूषण जे ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है|

घनानंद

*64.रीतिकाल के रीति मुक्त धारा के प्रमुख कवि घनानंद’ हैं|

*65.रीति मुक्त काव्य धारा को स्वच्छंद काव्य धारा  के नाम से जाना जाता हैं|

*66.घनानंद को रस की साक्षात मूर्ति माना जाता है|

67.घनानंद जी के लगभग २२ नाम मिलते हैं|

68.आ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार घनानंद जी का जन्म सं.१७३० है|

69.आ. रामचंद्र शुक्ल के अनुसार घनानंद जी का जन्म सं. १७४६ है|

70.घनानंद जी का जन्म भटनागर के कायस्थ परिवार में हुआ|

*71.घनानंद मुगल सम्राट मुहम्मदशाह रंगीले के मुंशी थे|

*72.घनानंद रंगीले के दरबार की सुजान’ नामक नर्तकी पर ये आसक्त हो गये थे|

*73.दरबार से निकाल ने के बाद घनानंद वृंदावन चले गये और वहां निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षित हो गये|

*74.भगवद भक्ति में सुजान इस शब्द  का व्यवहार  श्रीकृष्ण और श्रीराधिका के लिये घनानंद अपनी रचना में बराबर करते है|

*75.घनानंद का निधन अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण में  मथुरा में हुआ था|

*76.घनानंद मूलत: शृंगार रस के कवि हैं|

७७.घनानंद ने  अपने प्रेम को स्वच्छंद रूप में ब्रजभाषा में व्यक्त किया व्यक्त किया|

78.सुजानहित घनानंद  की प्रमुख रचना है|

 युनिट २

 1)प्रारंभिक हिंदी गद्य साहित्य का परिचय

79.प्रारंभिक गद्य साहित्य में ब्रजभाषा में लिखित नाभादास कृत अष्टयाम रचना मिलती है|

80.14 वीं शती में खडीबोली दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा थी|

*81.मुगलों ने राज-काज की भाषा की दृष्टि से उन्होंने फारसी भाषा का प्रयोग किया था|

*82.खडीबोली का प्रथम रूप अमीर खुसरो की रचनाओं में मिलता है|

83.प्रारंभिक गद्य रचना की दृष्टि से मुल्ला वजही की सब रस  रचना मिलती है|

*८४.खडीबोली गद्य का प्रामाणिक रूप हमें अकबर के दरबारी कवि गंग की रचना चंद छंद बरनन की महिमा” (१५७०) में मिलता है|

८५.भाषा योग वशिष्ठ रचना के रचयिता रामप्रसाद निरंजनी(पटियाला दरबारी) है|

८६.बायाबिल का हिंदी भाषा में अनुवाद ईसाई मिशनरियों के योगदान को व्यक्त करती है|

*८७.भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ३१ दिसंबर१६०० इ.स. में हुई थी|

८८.सन १८८४ में लार्ड मैकाले  ने ब्रिटीश पार्लमेंट में भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रसारित करने आवश्यकता पेश की|

*८९.इ.स. १८०० में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना हुई|

९०.ई.स. १८१७  में कलकत्ता स्कूल बुक सोसाइटी की स्थापना हुई|

९१.ई.स. १८२३ में  आगरा कॉलेज की स्थापना हुई|

९२.ई.स.न १८३३ में आगरा स्कूल बुक सोसाइटी स्थापना हुई|

९३.समाजसुधार की राजा राम मोहन राय  नें ब्रह्म समाज की स्थापना की|

९४.स्वामी दयानंद सरस्वती ने  आर्य समाज की स्थापना की|

९५.खडीबोली हिंदी के दृष्टि से स्वामी दयानंद सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश ने पत्रिका निकाली|

*९६.कलकत्ता से प्रकाशित हिंदी की प्रथम पत्रिका  उदंत मार्तंड’ ( पं. जुगलकिशोर शुक्ल ३० मई१८८६) ने प्रारंभिक गद्य की दृष्टि से कार्य किया है |

९७.कलकत्ता से प्रकाशित हिंदी का दूसरा पत्र बंगदूत (९ मई१९२९ ) ने प्रारंभिक गद्य की दृष्टि से कार्य किया है|

९८.प्रजामित्र पत्र कलकत्ता से  १८३४ प्रकाशित हुआ|

*९९.बनारस(समाचार पत्र) १८४४ का संपादन  राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ने किया |

100.मार्तंड – १८४६ का संपादन  मौलवी नासिरुद्दीन ने किया |

*१०१) १८०३ ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज के हिंदी-उर्दू अध्यापक जान गिलक्राइस्ट हिंदी और उर्दू में पुस्तके लिखाने का प्रयास किया |

*१०२.)दिल्ली निवासी मुंशी सदासुखलाल  ने भागवत कथा का सुखसागर’ नाम से अनुवाद किया|

*१०३) मुंशी इंशा अल्ला खां ने रानी केतकी की कहानी’ शुद्ध हिंदी में लिखने का प्रयास किया|

१०४.)मुंशी सदसुखलाल नियाज’  (१७४६-१८२४) उर्दू और फारसी के अच्छे कवि और लेखक थे|

१०५)मुंशी सदसुखलाल नियाज’  सुखसागर’ के अतिरिक्तविष्णुपुराण के प्रसंगों पर आधारित एक अपूर्ण रचना भी की है|

१०६) मुंशी सदसुखलाल नियाज’  सुरासुर निर्णय’ और वातिक’ यह दो गद्य पुस्तकें भी मिलती हैं|

*१०७) उदय भान चरित के लेखक  इंशाअल्ला खां हैं|

*१०८) लल्लू लाल (१७६३-१८२५) फोर्ट विलियम कॉलेज से संबंधित थे|

१०९) लल्लू लाल भागवत के दशम स्कंद पर आधारित प्रेमसागर’ की रचना की |

११०) लल्लू लाल की  भाषा पर ब्रज भाषा का प्रभाव है|

*१११) सदल मिश्र बिहार के रहनेवाले और फोर्ट विलियम कॉलेज से संबंधित थे|

*११२) सदल मिश्र नासिकेतोपाख्यान और राम चरित’ |

११३) सदल मिश्र भाषा पर ब्रज और पूर्वी का प्रभाव है|

११४) राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद (१८२३-१८९५) शिक्षा विभाग में इन्स्पेक्टर पद पर नियुक्त थे|

*११५)राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ठेठ हिंदी का सहारा लिया|

११६) राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद ने १८६४में  इतिहास तिमिर नाशक’ इतिहास ग्रंथ लिखा|

*११७)राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद  बनारस अखबार शुरू किया|

११८) राजा लक्ष्मण सिंह(१८२६-१८९६) ने हिंदी और उर्दू को अलग-अलग भाषाएं माना है |

११९) राजा लक्ष्मण सिंह ‘कालिदास’ के कई ग्रंथों का अनुवाद किया हैं|

*१२०) राजा लक्ष्मण सिंह       १८४१ में प्रजाहितैशी’ नामक पत्र निकाला|

*१२१) बाबू नवीनचंद्र राय ने ब्रह्म समाज के सिद्धांतों  के प्रचार के लिये अनेक पत्रिकाएं निकालीजिसमें १९६७ में प्रकाशित ज्ञानदायिनी’ प्रमुख है|

१२२)पंजाब में हिंदी को प्रसारित करने का काम  श्रद्धाराम फुलौरी ने किया |

१२३)श्रद्धाराम फुलौरी सत्यामृत प्रवाह’ एक सिद्धांत ग्रंथ लिखा|

*१२४)श्रद्धाराम फुलौरी ने १८७३’ में भाग्यवती’ नामक एक सामाजिक उपन्यास लिखा|

 

२)आधुनिक कालीन सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति

१२५) आधुनिक काल का समय सं १९०० से लेकर सं आज तक

डॉ. नगेंद्र जी ने पुनश्च इसका विभाजन किया है-

*१२६) भारतेंदू युग को  नवजागरण या पुनर्जागरण काल (ई.१८५७-१९००)  भी कहा जाता है|

*१२७) द्विवेदी युग को  जागरण सुधार काल या  पूर्व छायावादी/स्वच्छंदतावादी  युग (ई.१९०० से १९१८) भी कहा जाता है|

*१२८)छायावादी युग का समय  ई. १९१८ से १९३८ तक है|

*१२९) प्रगतीवाद- प्रयोगवादी युग (ई. १९३८ से १९५३)

*१३०) नवलेखन काल (ई. १९५३  के आगे )

*१३१) १७५७ के प्लासी युद्ध ने अंग्रेजों की नींव भारत में दृढ कर दी|

१३२) सन १८५४ में झांसी को लैप्स की नीति के द्वारा कंपनी ने अपने शासन मे ले लिया|

१३३)सन १८५७  में भारतीयों  ने अंग्रजो के विरोध में प्रथम स्वतंत्रता युद्ध छेडा|

१३४)सन १९०९ मार्ले मिंटो सुधार कानून पास हुआ, इसने मुसलमानों को अलग  प्रतिनिधित्व दिया |

१३५) सन १९१६ में हिंदू मुस्लिम समझौता हो सका और श्रीमती ऐनी बेसेंट के  प्रयत्न से कांग्रेस के दोनों दलों में भी एकता परंतु इसी बीच में प्रथम महायुद्ध छिड गया|

१३६) सन १९२० में तिलक के देहावसन से कॉंग्रेस का नेतृत्व पूर्ण रूप से गांधीजी के हाथ में आई थी|

*१३७) गांधी जी ने अहिंसात्मक उपायों से स्वतंत्रता  प्राप्ति को लक्ष्य बनाया|

१३८) गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में मानवतावाद को प्रमुख स्थान दिया|

१३९) आधुनिक युग में पूंजीवाद के ने से वर्गसंघर्ष बढ रहा था|

१४०) सन 1975 में श्रीमती श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने राष्ट्र को  अनुशासित करने के लिए आपत्कालीन स्थिति  घोषित करके एक क्रांतिकारी कदम उठाया था|

 ३)भारतेंदू हरिशचंद्र

१४१) भारतेंदू हरिशचंद्र का जन्म ९ सितम्बर१८५० काशी के एक वैश्य परिवार में हुआ|

*१४२)भारतेंदू हरिश्चंद्र जी  अमीन चंद्र के वंशज थे |

१४३) भारतेंदू हरिश्चंद्र जी के  माता का नाम पार्वती देवी         है|
*१४४) भारतेंदू हरिश्चंद्र जी पिता जी का गोकुल चंद्र उर्फ गिरिधर दास है| जो संस्कृत तथा हिंदी भाषा के प्रकांड पंडित थे|

१४५) भारतेंदू हरिश्चंद्र जी हिंदी की शिक्षा पं. ईश्वरदत्त से ली|
भारतेंदू हरिश्चंद्र जी उर्दू   की शिक्षा  
मौलवी ताज अली से ली |

146) भारतेंदू हरिश्चंद्र जी उर्दू में रसा’ उपनाम से कविता लिखा करते थे|
*147) भारतेंदू हरिश्चंद्र जी अंग्रेजी की शिक्षा राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद से ली |
148) भारतेंदू हरिश्चंद्र जी पत्नी का नाम 
मन्नादेवी है |
१४९( भारतेंदू हरिश्चंद्र जी की 
दो प्रेमिकायें थी – माधवी (एक क्षत्रीय लडकी) ,  मल्लिका (इनके पडोस में रहनेवाली बंगाली कवयित्री )

*१५०) हरिश्चंद्र को  ‘भारतेंदू’ उपाधि  उनके साहित्यिक योगदान को देखते हुए पं. रामेश्वर दत्त व्यास ने सन १८८० में सार  सुधानिधि पत्रिका में प्रदान की|
१५१) भारतेंदू की मृत्यु २५ जनवरी
१८८५ (३५ वर्ष का ही जीवन काल ) में हुई|

*१५२) भारतेंदू जी नवजागरण के अग्रदूत रहें हैं|
*१५३) भारतेंदू को  आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रवर्तक /युग प्रवर्तक भी कहा जाता हैं| 
१५४) भारतेंदू जी को 
भारतीय सांस्कृतिक पुनरुत्थान के अग्रदूत कहा जाता हैं|

१५५) निज भाषा उन्नति अहैसब उन्नति को मूल।

                                बिन निज भाषा-ज्ञान केमिटत न हिय को सूल।।” भारतेंदू हरिशचंद्र की पंक्तियां हैं|

१५६) भारतेंदू हरिशचंद्र का काव्य

भक्तसर्वस्व (1870), प्रेममालिका (१८७१),प्रेम माधुरी (१८७५),प्रेम तरंग (१८७७), उत्तरार्द्ध भक्तमाल(१८७६-७७),प्रेम-प्रलाप(१८७७),होली (१८७९), मधु मुकुल(१८८१),राग-संग्रह (१८८०),वर्षा-विनोद (१८८०), फूलों का गुच्छा- खड़ीबोली काव्य (१८८२),प्रेम फुलवारी (१८८३),    कृष्णचरित्र (१८८३)दानलीला, तन्मय लीला, नये ज़माने की मुकरी,    सुमनांजलि बन्दर सभा (हास्य व्यंग्य),बकरी विलाप (हास्य व्यंग्य) नाटक – नाटक विभाग में उल्लेख हैं|

१५७) कहानी         अद्भुत/ अपूर्व स्वप्न
१५८)
 यात्रा-वृत्तान्त-  सरयूपार की यात्र,         लखनऊ
*१५९)आत्मकथा-             एक कहानी- कुछ आपबीतीकुछ जगबीती
१६०)
 उपन्यास-        पूर्णप्रकाश,           चन्द्रप्रभा

१६१) निंबंध संग्रह     
१६२)१ .
नाटक, कालचक्र (जर्नल),
१६३)२.लेवी प्राण लेवी
१६४)३.भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है
?
१६५)४ .कश्मीर कुसुम
१६६)५. जातीय संगीत
१६७)६. संगीत सार
१६८)७. हिंदी भाषा
१६९)८. स्वर्ग में विचार सभा

पत्रिकाएं –
*१७०)१. कवि वचन सुधा – १८६८ काशी से प्रकाशित|
*१७१)२. हरिश्चंद्र चंद्रिका मैगजीन – १८७३ |
*१७२)३ . बालबोधिनी   -२ जून१८७३ काशी स्त्री जीवन से संबंधित |

१७३)भारतेंदू जी ने कविता में पूर्व प्रचलित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है|

१७४)भारतेंदू जी ने गद्य के लिए खडीबोली का प्रयोग किया है |

*१७५)भारतेंदू जी को हिंदी गद्य का जन्मदाता कहा जाता है|

4)मोहन राकेश

*१७६)मोहन राकेश जी का जन्म ८ जनवरी१९२५ में अमृतसर में हुआ|

*१७७)मोहन राकेश जी का वास्तविक नाम  मदनमोहन गोगलानी है|

१७८)मोहन राकेश जी के पिताजी का नाम करमचंद गोगलानी है, जो पेशे से  वकील थे|

१७९)मोहन राकेश जी के भाई का नाम वीरन है|

१८०)मोहन राकेश जी के बहन का नाम  कमला है|

१८१)मोहन राकेश जी ने एम. ए. हिंदी  पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की है|

*१८२)मोहन राकेश जी संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त हुआ है|

१८३)सारिका पत्रिका का संपादन  मोहन राकेश जी ने सन १९६२-६३  में किया था|

१८४)मोहन राकेश जी मृत्यु ३ दिसंबर, 1972 में  हृदय की गति रुकने के कारण हो गयी|

मोहन राकेश जी के कहानी संग्रह

१८५ )इन्सान के खंडहर  1950

१८६ )नये बादल  - १९५७

१८७ )जानवर और जानवर – १९५८

१८८ )एक और जिंदगी- १९६१

१८९ )फौलाद का आकाश – १९९६

१९० )आज के साये- १९६७

१९1 )मेरी प्रिय कहानियां- १९७१

मोहन राकेश जी के उपन्यास

*१९२) मोहन राकेश जी का प्रसिद्ध उपन्यास अंधेरे बंद कमरे में – १९६१है|

१९३) न आनेवाला कल – १९६८

नाटक

*१९४)आषाढ का एक दिन – १९५८

*१९५) लहरों का राजहंस – १९६३

*१९६)आधे- अधूरे – १९६९

१९७)अंडे के छिलके ( एकांकी संग्रह )

१९८) बीज नाटक

१९९)*निबंध संग्रह *  - परिवेश

200)*अनुवाद *- शाकुंतल, मृच्छकटिक

२१०)यात्रा वृत्तांत - आखरी चट्टान तक

२०२)डायरी - मोहन राकेश की डायरी

 ५)जयशंकर प्रसाद

*२०३)जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रमुख आधार स्तंभों में से एक है।

*२०४)छायावाद का समय सन 1918 से 1936 तक निर्धारित किया गया है।

२०५)30 जनवरी 1889 काशी में सराय गोवर्धन मोहल्ले में|

२०६)जयशंकर प्रसाद जी के पितामह का नाम शिव रत्नसा  हैं|

२०७)जयशंकर प्रसाद जी  पिता का नाम  देवी प्रसाद साहु हैं|

२०८)जयशंकर प्रसाद की माता का नाम  मुन्नी देवी हैं|

*२०९)जयशंकर प्रसाद जी का परिवार ‘सुंघनी साहू’ के नाम से प्रसिद्ध था|

२१०)प्रसाद जी की माता -पिता शिव भक्त थे|

२११)शिव जी की कृपा से संतान प्राप्त होने के कारण उन्होंने पुत्र का नाम जयशंकर रखा था|

*२१२)जयशंकर प्रसाद प्रारंभ में वे कलाधर उपनाम से ब्रजभाषा में कविताएं लिखते थे |

*२१३)जयशंकर प्रसाद जी को प्राचीन संस्कृत ग्रंथों को पढाने के  लिये दीनबंधु ब्रम्हचारी शिक्षक थे|

२१४)क़्वीन्स कॉलेज में प्रसाद का नाम लिख दिया थापर यहां पर वे आठवीं कक्षा तक ही पढ सके|

*२१५) सन १९०९ ईसवी में प्रसाद जी ने उनके भांजे अंबिका प्रसाद की आर्थिक सहायता से  इंदु’ मासिक पत्रिका निकाला|

२१६) सन १५ नवम्बर१९३७ को राजयक्ष्मा से पीडित होकर जयशंकर प्रसाद जी मृत्यु  हो गयी|

*२१७) जयशंकर प्रसाद जी का ‘चित्राधार प्रथम साहित्य संग्रह है |(१९१८ ई. प्रथम१९२८ दूसरा)  

जयशंकर प्रसाद का काव्य

२१८)प्रेम पथिक १९०९ ई

२१९)करुणालय १९१३ ई.

२२०)महाराणा का महत्त्व १९१४ ई॰

२२१)चित्राधार १९१८ ई.

२२२)कानन कुसुम १९१३- ब्रज भाषा१९१८, १९२९ खडीबोली

२२३)झरना १९१८  ई.

२२४)आंसू १९२५  ई.

२२५) लहर १९३५  ई॰

*२२६) जयशंकर जी का प्रसिद्ध काव्य संग्रह कामायनी (१९३६  ई.) है|

कहानी संग्रह  -

२२७)छाया १९१२   ई.

२२८)प्रतिध्वनि १९२६   ई.

२२९)आकाशदीप १९२९   ई

२३०)आंधी १९३१  ई.

२३१)इंद्रजाल १९३६ ई.

उपन्यास संग्रह  -

२३२) कंकाल १९२९ /   ई. २३३)तितली १९३४ /   ई.  २३४)इरावती १९३८   ई॰

*नाटक  -

*२३५)उर्वशी १९०९     ई./ २३६)सज्जन १९१०     ई. / २३७)प्रायश्चित १९१४   ई/ 23८)कल्याणी परिणय १९१२ ई/   २३९)विशाखा १९२१ ई. / २४०)राज्यश्री १९१५ ई. / २४१)अजातशत्रु १९२२  ई/ २४२)जनमेजय का नाग यज्ञ  १९२६  ई/२४३)कामना १९२७  ई.

*२४४)स्कंद गुप्त १९२८  ई. / २४५) *एक घूंट १९३०  ई. /२४६) *चन्द्रगुप्त १९३1  ई. /२४७) *ध्रुवस्वामिनी १९३३  ई.

 

युनिट ३

1)हिंदी उपन्यास साहित्य का उद्भव और विकास

*२४८) मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्र मात्र समझता हूं उपन्यास की परिभाषा प्रेमचंद्र जी ने की है।

*२४९)हिंदी साहित्य में बंगला साहित्य से प्रभावित होकर उपन्यास साहित्य लिखा जाने लगा।

*२५०)सर्वप्रथम भारतीय उपन्यास की रचना सन 1957 में बंगला साहित्य में प्यारी चांद मित्र और टेक चांद ठाकुर ने आलालेर घरेर दलाल के रूप में की।

*२५१)प्रेमचंद्र जी को केंद्र में रखकर हिंदी उपन्यास का विकास बताया जाता है।

२५२)पूर्व प्रेमचंद्र युगीन उपन्यास का समय 1882 ईस्वी सन् से लेकर 1917 ईसवी सन तक है।

२५३)पूर्व प्रेमचंद युगीन उपन्यास के काल को आविर्भाव काल भी कहा जाता है।

२५४)प्रेमचंद युगीन उपन्यास का समय इसवी सन 1918 से लेकर 1936 तक है।

२५५)प्रेमचंद युगीन उपन्यास के कालखंड को विकास काल भी कहा जाता है।

२५६)प्रेमचंदोत्तर युग इन उपन्यास का समय सन 1937से लेकर आज तक है।

२५७)प्रेमचंदोत्तर युग इन उपन्यास के कालखंड को विस्तार काल कहा जाता है।

*२५८)प्रेमचंद पूर्व लिखे गए उपन्यासों का मूल उद्देश्य मनोरंजन ही रहा है।

**२५९)हिंदी का प्रथम उपन्यास लाला श्रीनिवास दास कृत परीक्षा गुरु माना जाता है।

*२६०)प्रकाशन काल की दृष्टि से श्रद्धा राम फुलौरी लिखित भाग्यवती 1877 हिंदी का प्रथम उपन्यास माना जाता है।

*२६१)परीक्षा गुरु उपन्यास इसवी सन 1882 में प्रकाशित हुआ है।

२६२)श्यामा स्वप्न उपन्यास के लेखक ठाकुर जगमोहन सिं है।

२६३)बालकृष्ण भट्ट के उपन्यास है -- रहस्य कथा(1879), नूतन ब्रह्मचारी(1886), एक अजान सौ सुजान(1892)

२६४) राधा कृष्ण दास लिखित निस्सहाय हिंदू (1890)उपन्यास गोवध की समस्या पर आधारित है।

२६५)लज्जाराम मेहता के उपन्यास हैंधूर्त रसिकलाल (1899), स्वतंत्र रमा परतंत्र लक्ष्मी(१८९९), बिगड़े का सुधार (१९०७), आदर्श हिंदू (१८९०)|

२६६) तिलिस्मी एक अरबी शब्द है।

*२६७) तिलिस्मी शब्द का अर्थ है जादू इंद्रजाल या अलौकिक रचना।

*२६८)ऐयार का अर्थ है चपल व्यक्ति।

*२६९)हिंदी में ऐयारी उपन्यासकार के प्रवर्तक देवकीनंदन खत्री है।

*२७०) चंद्रकांता उपन्यास के लेखक देवकीनंदन खत्री है।

२७१) अंग्रेजी लेखक आर्थर कानन डायल के जासूसी उपन्यासों से प्रभावित होकर हिंदी में जासूसी उपन्यास लिखे जाने लगे।

*२७२)हिंदी में जासूसी उपन्यासकार के रूप में गोपाल राम गहमरी का प्रमुख स्थान आता है।

२७३)सन 1998 में गोपाल राम गहमरी ने बंगला से हीरे का मोल उपन्यास अनूदित किया था।

*२७४)1900  में गोपाल राम गहमरी ने जासूस नामक पत्रिका शुरू की थी।

२७५)जादुई उपन्यासों के अंतर्गत निहाल चंद वर्मा की कृति जादू का महल विशेष प्रसिद्ध रही।

२७६) प्रेमाख्यान उपन्यासों के एकमात्र सूत्रधार  किशोरीलाल गोस्वामी है|
२७७) क्रांतिकारी प्रवृत्ति के लेखक के रूप में एकमात्र नाम दुर्गा प्रसाद खत्री का है।

*२७८) प्रेमचंद पूर्व युगीन अनुदित उपन्यासों में अंग्रेजी से हिंदी में अनूदित उपन्यास में डेनियल डिफो का विश्व प्रसिद्ध उपन्यास रोबिन रॉबिंसन क्रूसो 1807का पहला स्थान आता है।

२७९)*प्रेमचंद जी को उपन्यास सम्राट कहा जाता है।

२८०)*प्रेमचंद आदर्शोंमुख यथार्थवादी उपन्यास कार है।

*२८१)प्रेमचंद उर्दू में नवाब नाम से लेखन करते थे।

२८२)*प्रेमचंद जी ने लगभग 12 उपन्यास लिखें।

२८३)*गोदान प्रेमचंद्र जी का प्रसिद्ध उपन्यास है।

*२८४)प्रेमचंद्र जी के प्रतिज्ञा उपन्यास में विधवा समस्या का चित्रण मिलता है।

*२८५)प्रेमचंद जी के सेवासदन उपन्यास में वेश्या समस्या का चित्रण मिलता है।

*२८६)प्रेमचंद जी के निर्मला नामक उपन्यास में अनमेल विवाह की समस्या का चित्रण है।

*२८७)प्रेमचंद्र जी के गोदान उपन्यास में किसान की समस्या का चित्रण किया है।

*२८८) कंकाल और तितली उपन्यास के उपन्यासकार जयशंकर प्रसाद है।

२८९)अलका, अप्सरा, प्रभावती, और निरुपमा उपन्यास के उपन्यासकार निराला है।

२९०)‘और भी कारण उपन्यास के उपन्यासकार विश्वंभर नाथ कौशिक है।

२९१)‘अंतिम आकांक्षा उपन्यास के उपन्यासकार सियारामशरण गुप्त है।

२९२)‘हृदय की प्यास उपन्यास के उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री है।

*२९३)‘चित्र लेखा उपन्यास के उपन्यासकार भगवती चरण वर्मा है।

२९४)‘नाच्यौ बहुत गोपाल उपन्यास के उपन्यासकार अमृतलाल नागर है।

२९५)‘सारा आकाश उपन्यास के उपन्यासकार राजेंद्र यादव है।

२९६)*मनो वैज्ञानिक उपन्यासकार के रूप में जैनेंद्र जी का प्रमुख स्थान है।

*२९७) जैनेंद्र जी के मनोवैज्ञानिक उपन्यास 1.सुनीता २.परक, ३.त्यागपत्र।

२९८)*शेखर एक जीवनी उपन्यास के उपन्यासकार अज्ञेय है।

*२९९)इलाचंद्र जोशी एक मनोवैज्ञानिक उपन्यासकार हैं।

*300)‘अंधेरे बंद कमरे में उपन्यास के उपन्यासकार मोहन राकेश है।

301)*साम्य वादी उपन्यासकार के रूप में यशपाल जी का प्रमुख स्थान है।

*302)झूठा सच उपन्यास के उपन्यासकार यशपाल है।

३०३ ) रति नाथ की चाची/ बलचनमा/ बाबा बटेसर नाथ/ दुख: मोचन आदि उपन्यासों  उपन्यास कार नागार्जुन है।

३०४) घरौंदा/ कब तक पुकारुं राज्ञेय राघव के उपन्यास है|

३०५) बीज/ नागफनी  का देश/ हाथी का दांत अमृतराय के उपन्यास हैं

३०६)*ऐतिहासिक उपन्यासकार के रूप में वृंदावन लाल वर्मा जी का प्रमुख स्थान है।

*३०७) झांसी की रानी/ गढ़कुंडार/ कचनार/ मृगनयनी/ अहिल्याबाई वृंदावनलाल वर्मा जी के ऐतिहासिक उपन्यास हैं|

दिव्या/ अमिता इस उपन्यास के उपन्यासकार यशपाल है।

३०८)*आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का उपन्यास बाणभट्ट की आत्मकथा प्रसिद्ध रहा है।

३०९)*आंचलिक उपन्यासकार के रूप में फणीश्वर नाथ रेणु जी का प्रमुख स्थान है।

३१०)*फणीश्वर नाथ रेणु लिखित मैला आंचल पहिला आंचलिक उपन्यास है।

३११)*आधा गांव इस उपन्यास के उपन्यासकार राही मासूम रजा है।

*३१२) श्री लाल शुक्ला लिखित राग दरबारी उपन्यास को 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

३१३) कृष्णा सोबती के  मित्रों मरजानी सूरजमुखी अंधेरी के उपन्यास प्रसिद्ध हैं|

*३१४) मन्नू भंडारी का उपन्यास आपका बंटी प्रसिद्ध है | (महाभोज /स्वामी)

३१५) ‘कलिकथा: वाया बाईपास उपन्यास की उपन्यासकार अलका सरावगी है।

३१६) ‘वां’ उपन्यास की उपन्यासकार  चित्र मुद है।

 २)हिंदी नाटक साहित्य का उद्भव और विकास

*३१७) नाटक एक दृक-श्राव्य विधा है|

३१८) नाटक शब्द की उत्पत्ति नट’ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है अभिनय|

३१९)नाट्य शास्त्र’ ग्रंथ  के रचयिता ‘भरतमुनि है|

३२०)17 वीं शताब्दी में कुछ संवाद प्रदान नाटकों की परंपरा का श्रीगणेशा                 हुआ|

३२१)विद्यापति के  नाटक हैं -  रुक्मिणी – हरणपारिजात हरण| 

*३२२) केशवदास का नाटक    विज्ञान गीता है|

३२३) लछिराम का नाटक करुणाभरण  है|

३२४)हृदयराम का नाटक हनुमान नाटक है|

३२५) प्राणचंद्र चौहान    का नाटक    रामायण महानाटक  है |

*३२६) प्रकाशन काल की दृष्टि से सैयद आगा हसन अनामत का इंद्र सभा  (१८५३) प्रथम न

३२७)*आ. शुक्ल ने रीवा नरेश विश्वनाथ सिंह आनंद रघुनंदन’ (१८२१- १८५४) प्रथम नाटक  माना है|

*३२८) गिरीधर दास का नाटक नहुष (१८५७ प्रथम ) है|

३२९) भारतेंदू युग के नाटकों का समय सन १८५७ से १९०० ई. तक है|

३३०) प्रसाद  युग के नाटकों समय सन १९००  से १९५० ई. तक है|

३३१)प्रसादोत्तर युग के नाटकों का समय सन 1950 से 1775 ई. तक है|

३३२)भारतेंदू युगीन नाटकों की देश भक्ति प्रमुख विशेषता है|

३३३)भारतेंदू युगीन नाटकों के गद् की भाषा खडीबोली है |

३३४) भारतेंदू युगीन नाटकों के पद्य की भाषा ब्रज है |

भारतेंदू हरिशचंद्र (अनूदित नाटक)

*३३५) संस्कृत के चौर पंचाशिका के  बंगला संस्करण का हिंदी अनुवाद भारतेंदू हरिशचंद्र ने       विद्यासुंदर (१८६८ ई.) नाम से किया है |         

३३६)  रत्नावली(१८६८)३३७)धनंजय विजय (१८७३)३३८)कर्पूर  मंजरी (१८७५),

३३९) प्रबोध चंद्रोदय का हिंदी अनुवाद अनुवाद भारतेंदू हरिशचंद्र ने    पाखंड विडंबन (१८७२) नाम से किया है|

३४०) मुद्राराक्षस(१८७८) विशाखदत्त  मुद्रराक्षक का अनुवाद | 

*३४१) शेक्सपियर के मरचेंड ऑफ वेनिस’ (१८८०) हिंदी अनुवाद भारतेंदू हरिशचंद्र ने दुर्लभ बंधु नाम से किया है|

भारतेंदू हरिशचंद्र मौलिक नाटक

३४२) वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति(१८७३), ३४३) सत्य   हरिशचंद्र (१८७५), ३४४)श्री चंद्रावली (१८७६ ई.)३४५)विषस्य विष मौषधम (१८७६), ३४६)सती प्रताप (१८८३)   ३४७)प्रेम जोगिनी (१८७५) ३४८)भारत जननी (१८७७)

३४९)लाल श्रीनिवासदास  के नाटक -रण धीर प्रेम मोहिनी (१८७७), संयोगिता स्वयंवर

३५०) राधा कृष्ण दास के नाटक -      महाराणा प्रताप (१८९७) दु :खिनीबाला

३५१) बाळकृष्णभट्ट       के नाटक -   दमयंती स्वयंवरवेणी संहार आदि

३५२) राधा चरण गोस्वामी - अमर सिंह राठौर,  सती चंद्रावली,श्रीदामा (१९०४)

३५३) गोपालराम गहमरी   - जैसे को तैसाविद्या विनोद        

३५४)किशोरी लाल       -     चौपट चपेट,     गोस्वामी  

३५५) जयशंकर प्रसाद का सबसे पहला नाटक सज्जन (१९११ ) है|

जयशंकर प्रसाद जी के नाटक -

३५६)कल्याणी परिणय (१९१३)३५७)प्रायश्चित (१९१४), ३५८)राज्यश्री(१९१५) , ३५९)विशाख (१९२१), ३६०)अजातशत्रु(१९२२) ,३६१)कामना (१९२४/१९२७)३६२)जनमेय का नागयज्ञ  (१९२६), ३६३)स्कंदगुप्त (१९२८)३६४)एक घूंट (१९३०), **३६५)चंद्र गुप्त (१९३१),  ३६६)ध्रुवस्वामिनी (१९३३)

३६७)हरिकृष्ण प्रेमी       - रक्षाबंधन (१९३४) प्रतिशोध(१९३७)आदि |

३६८) लक्ष्मी नारायण मिश्र -    संन्यासी (१९२९), सिंदूर की होली (१९३४)  मुक्ति का रहस्य गरुड ध्वज (१९४५)वत्सराज(१९५३)दशाश्वमेध,        वितस्ता की लहरें (१९५३) आदि |

३६९) सेठ गोविंद दास -सेवा पथत्याग और ग्रहण, कर्ण, अशोक, शेरशाह आदि    

३७०)गोविंद वल्लभ पंत - अंगूर की बेटी (१९३५), सिंदूर की बिंदी,राजमुकुट  आदि       

३७१)उपेंद्रनाथ अश्क      -स्वर्ग की झलकछ्ठा बेटा, अंजो दीदी(प्रसिद्ध १९५४), अलग-अलग रस्ते  आदि |

३७२)उदय शंकर भट्ट      -दाहर (१९३८)शक विजय, मुक्ति पथ       आदि |

३७३)वृंदावन लाल वर्मा - फूलों की बोलीललित विक्रम(१९५३), केवट ( १९५१) राखी की लाज आदि |

३७४)रामवृक्ष बेनीपुरी    -       अम्बपालीकृष्ण चंद्र आदि|

३७५)चतुर सेन शास्त्री -  धर्मराज |

३७६)विष्णु प्रभाकर -     डॉक्टर (१८५८)युगे-युगे क्रांतिटूटते परिवेश आदि|

३७७)जगदीश चंद्र माथुर -       कोणार्क(१९५१)शारदीया (1950),  पहला राजा  (१९६९)दशरथ नंदन (१९७४) आदि |

३७८)मोहन राकेश -      आषाढ का एक दिन (१९५८)लहरों का राजहंस (१९६३), आधे- अधूरे (प्रसिद्ध १९६९)

३७९)लक्ष्मी नारायण लाल -    अंधा कुंआ (१९५५), दर्पण(१९६३)मादा    - कैकटस आदि |

*३८०)धर्मवीर भारती    - अंधा युग (१९५४)

३८१)ज्ञानदेव अग्निहोत्री - नेफा में एक शाम |

३८२)नरेश मेहता -       सुबह के घंटे

३८३)शम्भुनाथ सिंह      -       धरती और आकाश

३८४)विमला रैना -       तीन युग

३८५)विनोद रस्तोगी -    नये हाथ

३८६)शंकर शेष -  एक और द्रोणाचार्य, खजुराहों का       शिल्पी  आदि|

३८७)सुरेंद्र वर्मा    -       नायक - खलनायकविदूषक आदि |

*३८८) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना  -   बकरी

*३८९) शरद जोशी        के नाटक हैं-          अन्धों का हाथीएक था गधा उर्फ अलादाद खां |

*३९०)स्वदेश दीपक का नाटक कोर्ट मार्शल है|

३९१) भीष्म सहानी के नाटक हैं-  *कबीर खडा बजार में हानूस, माधवीमुआवजे |

३९२) मणि मधुकर के नाटक हैं-    रस गंधर्वदुलारी बाई आदि |       

३९३) हमीदुल्ला के नाटक हैं-      दरिंदेंएक और युद्ध आदि|

३९४)नरेंद्र मोहन का नाटक कहै कबीर सुन भई साधो  है |

 ३)हिंदी यात्रा साहित्य का उद्भव और विकास

*३९५)वैदिक वाङ्मय में यात्राओं के उपदेश मिलते हैं।

३९६)ऐतरेय ब्राह्मण का चरवेति मंत्र वैदिक वांग्मय में यात्राओं का चित्रण के  प्रमाण है।

*३९७) हिंदी में यात्रा वृतांत लिखने की परंपरा का सूत्र पात भारतेंदु से ही माना जाता है।

*३९८)हिंदी का सर्वप्रथम यात्रा साहित्य विट्ठल गुसाई जी की वन यात्रा(सं1600) है।

*३९९)‘वन यात्रा यात्रा साहित्य की यात्रा कार श्रीमती जीमन जी की मां प्रथम महिला यात्रकार है।

४००)‘वन यात्रा परिक्रमायात्रा वृतांत के लेखक रामसहाय दास जी है।

*४०१) श्रीमती हर देवी की लंदन यात्रा प्रसिद्ध यात्रा वृतांत है।

४०२)रामेश्वर यात्रा देवी प्रसाद खत्री की है|

४०३)व्रज यात्रा पंडित विष्णु मिश्र की है।

४०४) गया यात्रा,/कातिकी का नहान बालकृष्ण भट्ट के यात्रा वृतांत है।

*४०५) सरयू पार की यात्रा/ लखनऊ की यात्रा/ हरिद्वार की यात्रा/ वैद्यनाथ की यात्रा भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के  यात्रा वृतांत है।

*४०६)‘वदरी काश्रम यात्रा(१९०२ ई.) बाबू देव की प्रसाद खत्री का यात्रा वृतांत है।

*४०७) सं १६०० से लेकर सं १९६६ तक हस्तलिखित यात्रा ग्रंथ प्राप्त होते है |

४०८)भगवान दास शर्मा का यात्रा वृत्त लंदन की यात्रा  (१८८४ ई.) है|

४०९)पं. दामोदर शास्त्री का यात्रा वृत्त मेरी पूर्वा दिग्यात्रा (१८८५ ई.) है|

४१०)पं. दामोदर शास्त्री का यात्रा वृत्त मेरी दक्षिण दिग्यात्रा (१८८६  ई.) है|

४११) पं. दामोदर शास्त्री         का यात्रा वृत्त देव दर्शन  है|

४१२) तोताराम वर्मा का यात्रा वृत्त ब्रज विनोद (१८८८ ई. ) है|

४१३) लाला कल्याणचंद्र का यात्रा वृत्त केदारनाथ यात्रा (१८९० ई.) है|

*४१४) प्रतापनारायण मिश्र का यात्रा वृत्त विलायत की यात्रा है|

४१५) ठाकुर गदाधर सिंह का यात्रा वृत्त  हमारी एडवर्ड तिलक विलायत यात्रा (१९०३ ई. ) है|

४१६) साधु चरण प्रसाद का यात्रा वृत्त भारत भ्रमण ५- भाग (१९०३ ई. ) है|

४१७) पं. रामशंकर व्यास का यात्रा वृत्त पंजाब यात्रा  (१९०७ ई. ) है|

४१८) स्वामी सत्य देव परिव्राजक के यात्रा वृत्त इसप्रकार –

अमेरिका दिग्दर्शन (१९११ ई. )  मेरी कैलाश यात्रा (१९१५ ई.) ,अमेरिका भ्रमण (१९१६ ई.)

*४१९)द्विवेदी -  युगीन  यात्रा वृत्तकारों में स्वामी सत्य देव परिव्राजक इनका नाम प्रमुखता से ले सकते है|

४२०)धनपति लाल का यात्रा वृत्त है -  द्वारिका नाथ यात्रा (१९१२ ई.)

४२१)बाबू शिव प्रसाद गुप्त का यात्रा वृत्त   प्रदक्षिणा (१९१४ ई.)

४२२) गोपालराम गहमरी   का यात्रा वृत्त लंका यात्रा का विवरण ( १९१६ ई.) है|

४२३) मौलवी प्रसाद का यात्रा वृत्त मेरी ईरान यात्रा (१९३० ई.) हैं|

४२४) स्वामी मंगलानंद का यात्रा वृत्त अफ्रीका यात्रा / हमारी जपान यात्रा हैं|

४२५)केदाररूप राय का यात्रा वृत्त हमारी विलायत यात्रा (१९२६ ई.) है|

४२६) वेणी शुक्ल का यात्रा वृत्त लंदन पैरीस की सैर (१९२६ ई.) है|

*४२६) पं. जवाहरलाल नेहरू का यात्रा वृत्त रुस की सैर (१९२६ ई.) है|

४२७) मेहता जेमिनी का यात्रावृत्त शाम देश यात्रा (१९२७  ई.) है|

४२८) स्वामी मंगलानंद पूरी का यात्रा वृत्त अफ्रीका यात्रा (१९२८ ई.) है|

४२९)पं. कन्हैयालाल मिश्र का यात्रा वृत्त हमारी जपान यात्रा (१९३१ ई. ) है|

४३०) कृपानाथ मिश्र का यात्रा वृत्त विदेश की बात (१९३२ ई.) है|

४३१)गणेश नारायण सोमाणी का यात्रा वृत्त  मेरी युरोप यात्रा (१९३२ ई.) है|

४३२)पं. रामनारायण मिश्र का यात्रा वृत्त युरोप यात्रा में  छ: मास (१९३२ ई.) है

**४३३) पं. राहुल सांकृत्यायन         -

तिब्बत में सवा बरस (१९३३ ई. ),मेरी लद्दाख यात्रा ( १९३६ ई.),लंका यात्रावली (१९२७ ई. )मेरी युरोप यात्रा (१९३२ ई. )यात्रा के पन्ने (१९३४ ई.)किन्नर देश में (१९४८ ई.) घुमक्कड शास्त्र   आदि |

४३४) यशपाल के यात्रा वृत्त हैं-         लोहे की दीवार बिन सापों का देश |

४३५)केदारनाथ अग्रवाल का यात्रा वृत्त है-   बस्ती खिले गुलाबों की |

४३६) दिनकर का यात्रा वृत्त है-         देश-विदेश

४३७) अमृतराय का यात्रा वृत्त सुबह के रंग  है|     

४३८) रांगेय राघव का यात्रा वृत्त तूफानों के बीच है|

**४३९) अज्ञेय  जी के यात्रा वृत्त हैं-      अरे यायावर रहेगा याद एक बूंद सहसा उछली|

४४०) मोहन राकेश जी का यात्रा वृत्त है-आखिरी चट्टान तक |

४४१) निर्मल वर्मा  जी का यात्रा वृत्त चीडों पर चांदनी है|

४४२) डॉ. रघुवंश के यात्रा वृत्त - हरी घाटीमृग मरीचिका के देश में हैं|

४४३) डॉ. नगेंद्र के यात्रा वृत्त हैं-      तंत्रलोक से यंत्रलोक तकअप्रवासी की यात्रा 

४४४) हंसकुमार के यात्रा वृत्त हैं- भू-स्वर्गकश्मीर

४४५) अक्षय कुमार जैन का यात्रा वृत्त         दूसरी दुनिया है|

४४६)देवेंद्र सत्यार्थी के यात्रा वृत्त हैं-   धरती गाती हैरथ के पहिए |

४४७) भगवत शरण उपाध्याय का यात्रा वृत्त सागर की लहरों पर है|

*४४८)यात्रा साहित्य के कारण लोगों में वसुधैव कुटुंबकम की भावना का विकास होता है|

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 💧हिंदी साहित्य का इतिहास नोटस 💧

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 (सं १९०० से लेकर सं आज तक)

आधुनिक काल का विभाजन डॉ. नगेंद्र जी ने पुनश्च इस प्रकार  किया है-

1. भारतेंदू युग – नवजागरण या पुनर्जागरण काल (ई.१८५७-१९०० )

2. द्विवेदी युग – जागरण सुधार काल- पूर्व छायावादी/स्वच्छंदतावादी  युग (ई.१९०० से १९१८)

3. छायावादी युग ( ई. १९१८ से १९३८)

4. छायावादोत्तर युग

      अ) प्रगतीवाद- प्रयोगवादी युग (ई. १९३८ से १९५३)

      आ) नवलेखन काल (ई. १९५३  के आगे )

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आधुनिक काल की राजनीतिक दृष्टि से निम्न लिखित घटनाएं मिलती है-

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना

सन 1757 के प्लासी युद्ध ने अंग्रेजों की नींव भारत मे दृढ कर दी और धीरे धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन भारत में फैल गया| ज्यों-ज्यों कंपनी का प्रभुत्व ढा  त्यों-त्यों उसके अधिकारियों के अत्याचार भी बढे |इससे देश की जनता मे बडा असंतोष छा गयासके साथ कंपनी के अधिकारियों ने देशी राज्यों को मिलाने में अनेक साधन निकालेजिसमें “लैप्स की नीति बडी कुटिल सिद्ध हुई| सन १८५४ में झांसी को लैप्स की नीति के द्वारा कंपनी ने अपने शासन मे ले लिया देश मे प्रजा और देशी राजा दोनों ही कंपनी के अत्याचार पूर्ण शासन से घबराए हुए थे| इसी बीच ‘नये कारतूसों’ ने आकर कंपनी की सेना में  भरती भारतीय सिपाहियों की धार्मिक भावनाओं को बडी ठेस पहुंचाई और सन १८५७  में भारतीयों  ने अंग्रजो के विरोध में प्रथम स्वतंत्रता युद्ध छेडा| एक वर्ष भी पूरा हीं बीत पाया और दासता के प्रति किया  विद्रोह दबा दिया गया| ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त करके ब्रिटेन  सरकार ने भारत का शासन अपने हाथों में  ले लिया| महारानी  विक्टोरिया ने घोषणा की कि जिसमें  भारतवासियों को बडे मधुर आश्वासन दिए गये| भारतीयों में  एक नवीन चेतना और आशा की लहर दौड  गई| कंपनी के अत्याचार पूर्ण शासन और  डल हौजी की नीति देखते हुए विक्टोरिया का शासन भारत की जनता के लिए संतोष का विषय था| इसलिये विक्टोरिया के मरने पर  भारत वासियों ने बहुत दुःख माना| १९ वीं शताब्दी के अंतिम चरण में देश की जनता मे अंग्रेजी राज्य के प्रति राजभक्ति दिखाने और उसके सुधार  की प्रार्थना करने  की प्रवृत्ति थी, पर अंग्रेजी शासन में इससे कोई अंतर हीं पडा और उसकी अत्याचार पूर्ण नीति  में यंत्रो  के विकास के साथ आर्थिक शोषण और टैक्स का एक नया अध्याय और जुड गया| धीरे धीरे देश की जनता को यह पूर्ण रूप से ज्ञात हो गया की प्रार्थना का परिणाम कुछ भी नहीं होगा | इधर इंडियन नॅशनल काँग्रेस ने भारतीय  राजनीतिक चेतना को और अधिक विकसित किया| कांग्रेस की स्थापना से जनता के सामने कुछ निश्चित राजनीतिक सिद्धांत उपस्थित हुए, जिनकी  प्राप्ति के लिए  देश की जनता में अदम्य उत्साह छा गया| इटली के स्वतंत्रता युद्ध, आयरलैंड के होमरूल’ आंदोलन तथा फ्रांस की राज्य-क्रांति के इतिहास ने जनता की विरोधी भावना को और अधिक उकसाया और बहुत- से नवयुवक हिंसात्मक उपयोगों से अंग्रेजी राज को हटाने इच्छुक हो गये| हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में नवयुग की इस राजनीति चेतना का प्रभाव भारतेंदु युग मे होता है|
स्वराज्य का मंत्र - राजनीति चेतना का दूसरा काल सन १९०५ से  आरंभ होता है | अब काँग्रेस आवेदन और प्रार्थना नरम नीति को छोडने लगी थी और उसने स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है की घोषणा कर दी| इसी  समय काँग्रेस में दो दल हो गये – गरम दल तथा नरम दल |सच तो यह है कि कर्जन की बंगाल विभाजन की भारत विरोधी नीति से  राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित  भारतीय जनता की आंखे खुल गयी थी| और वे अँग्रेजों  को बडे संदेह की दृष्टि से देखने लगेथे|  इसलिये  जनता में प्राचीन भारतीय  संस्कृति  के प्रति श्रद्धा और वर्तमान परिस्थितियों के प्रति क्षोभ  उत्पन्न हो रहा था| नेतागण,  विचारक और  कवि  दासता में जकडी हुई जनता को अतीत के गौरव का स्मरण करा कर नवीन व्यवस्था के विरुद्ध कर रहे थे|  इसके लिए उन्होंने देश की सामाजिक अवस्था में सुधार करना आवश्यक समझा और  यही कारण था कि उस युग के विचारक एवं  कवि अछूत, किसान तथा शोषित एवं पीडित वर्गों के साथ अपनी सहानुभूती प्रकट करते है| इस युग में भारतीयता का आधार मानवतावाद बन गया था| देश के असंतोष को शांत करने के लिए अंग्रेज शासकों समय-समय पर शासनप्रणाली मे सुधार किए|  सन १९०९  मार्ले मिंटो सुधार कानून पास हुआ, इसने मुसलमानों को अलग  प्रतिनिधित्व दिया |जिससे हिंदू- मुस्लिम एकता को बडी ठेस पहुंची| बडे प्रयत्न के बाद सन १९१६ में हिंदू मुस्लिम समझौता हो सका और श्रीमती ऐनी बेसेंट के  प्रयत्न से कांग्रेस के दोनों दलों में भी एकता परंतु इसी बीच में प्रथम महायुद्ध छिड गया| भारतियों ने अँग्रेजों की दिल खोलकर मदद की किंतु युद्ध की समाप्ति के पश्चात अंग्रेजों ने अपने वायदे पुरे  नही किए, उल्टे रॉलेट एक्ट १९१९ के द्वारा भारतीय जनता के स्वतंत्रता के अधिकार छीन लिए| हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के इतिहास में चेतना के द्वितीय उत्थान का यह  समय द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है|
स्वदेशी आंदोलन राजनीतिक चेतना का तृतीय  काल प्रथम महायुद्ध की समाप्ति से आरंभ होता है| महायुद्ध के बाद भीषण जन-संहार के कारण मानवचित्त उद्वेलित हो रहा था, और उसके ऊपर कैसे होता है के बाद परसी भारतीयों के उपर अंग्रेजों ने रोलेट एक्ट कानून की दमन पूर्ण नीति के द्वारा बडा कठोर आघात किया| एक ओर सुधार का ढोंग था तो दूसरी ओर दमन की  अत्याचार पूर्ण नीती नीती, जिसका  भारत की  सभी जातियों ने घोर विरोध किया| सन १९२० में तिलक के देहावसन से कॉंग्रेस का नेतृत्व पूर्ण रूप से गांधीजी के हाथ  मे  गया| राजनीतिक चेतना के इस तृतीय उत्थान काल को हम ग्राम- उद्धार एवं मध्य- वर्ग की चेतना के विकास में देख सकते है| गांधी जी ने अहिंसात्मक उपायों से स्वतंत्रता – प्राप्ति को लक्ष्य बनाया और इसका मुख्य आधार था- असहयोग एवं ग्राम उद्धार| इस प्रकार गांधी जी अपनी सारी शक्ति रचनात्मक कार्यों में लगा रहे थे| इस काल के युग की चेतना यही कारण था | साथ अन्य राजनीतिक विद्वान अपने विचारों से बुद्धिजीवी वर्ग में देश भक्ति का संचार कर रहे थे| धीरे-धीरे कॉंग्रेस पार्टी ने भारत के लिए औपानिवेशिक स्वराज्य की जगह पूर्ण स्वराज्य की मांग की| इसप्रकार कॉंग्रेस पार्टी के राजनीतिक कार्यों से जनता में राष्ट्रीयता की भावना उत्तरोत्तर बढती गयी | असहयोग के दो रूप थे – एक तो विदेशी शासकों के साथ असहयोग और दूसरा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार | इसमें मुख्यतया विदेशी वास्त्रों का बहिष्कार हुआ और खादी राष्ट्रीय भावना का प्रतीक बनी | गांधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में मानवतावाद को प्रमुख स्थान दिया| गांधी जी की इस मानवतावादी भावना के कई रूप मिलते हैं-अहिंसा,सत्याग्रह, राजनीतिक, समानता, अछूतोद्धार, हिंदू- मुस्लिम -एकता, धार्मिक समन्वय, ग्रामोद्धार, जमीदारी का विरोध इ. इस युग मेंरवींद्रनाथ नेइ. का प्रचार किया| इसप्रकार राजनीतिक चेतना की दृष्टि से इस युग में म. गांधी और रवींद्र दो महान व्यक्ति हुए|
स्वतंत्रता की प्राप्ति राजनीतिक चेतना का चौथा युग द्वितीय महायुद्ध से प्रारंभ होता है l इस युग में  स्वतंत्रता संग्राम बडे उत्साह से चल रहा था और भारतीयों  का पक्ष विश्व के अन्य  राष्ट्र लेने लगे थे| इस प्रकार द्वितीय की समाप्ति के बाद धीरे धीरे पूर्ण स्वतंत्रता मिलने की आशा हो रही थी| परंतु इसके साथ पूंजीवाद बढ  रहा था और इससे जनता में बडा असंतोष छाया हुआ था| इस युग में स्वतंत्रता आंदोलन का स्वरूप प्रथम महायुद्ध के समय से बहुत बदल गया था| साथी राजनीतिक परिस्थितियों मे भी बहुत परिवर्तन हो चुका था| अब स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हिन्दू और मुसलमान को आपस में समझौता करना था इस समय 1944 में ब्रिटेन में उदा दल की सरकार बनी, जिसकी  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ पूर्ण सहानुभूती थी|  धीरे धीरे भौतिकता के विकास के साथ देश के जीवन में बडी शुष्कता   गयी थी | इस युग  की राजनीतिक  चेतना की एक बहुत महत्वपूर्ण बात समाजवादी विचारधारा का विकास है|  पूंजीवाद के ने से वर्गसंघर्ष बढ रहा था| भारत वर्ष में  आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न वर्गसंघर्ष में मार्क्सवादी विचारधारा को विशेष बढावा मिल| इसका मुख्य कारण स्वतंत्रता आंदोलन के लिए और विशेष कर राजनीतिक का विरोध करने  के लिये अपनाए गये  सत्याग्रह और हडतालों  द्वारा जाग्रत मजदूरों एवं कृषक वर्ग का चैतन्य था | इन सब बातों का उस युग की विचारधारा पर गहरा  प्रभाव डा|  धीरे धीरे वह दिन भी आ गया जब भारत स्वतंत्र हुआ, गणतंत्र का आविर्भाव हुआ|
गणतंत्र का अविर्भाव के साथ ही हमारे देश में राजनीतिक चेतना का पांचवां युग आरंभ होता है | इसे हम वर्तमान काल कह सकते है| अब राजनीतिक चेतना का स्वरूप किसी विदेशी सरकार के प्रति विद्रोह नहीं रह गया, वरन  राष्ट्रीय एकता और उसका आंतरराष्ट्रीयता में विकास हो गया है| स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ हमारे देशवासियों का दृष्टिकोन व्यापक हुआ और उन्होंने विश्व के दासता में जकडे हुए अन्य लोगों के  प्रति अपने सहानुभूती प्रकट की| साथी आंतरिक संघर्ष से अवकाश पाकर भारतीय राजनीतिज्ञो ने  विश्व के अन्य राष्ट्रों से  संपर्क बढाया तथा सह - अस्तित्व के सिद्धांत को  विश्व के सामने रखा|इसलिये  आज भारत का स्थान विश्व के अन्य राष्ट्रों में बहुत उंचां है और  अपनी  विश्वशांती की पंचशील नीति के लिए वह पात्र है| भारत ने अपनी विदेश नीति में  तटस्थता को सर्वाधिक महत्त्व दिया है|ह गुटों  मे बंधा नहीं |सन 1975 में श्रीमती  श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने राष्ट्र को  अनुशासित करने के लिए आपत्कालीन स्थिति  घोषित करके एक क्रांतिकारी कदम उठाया था, जिसके कुछ दूरगामी एवं स्वस्थ प्रभाव हुए|
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