‘लाल पान की बेगम’ फणीश्वरनाथ रेणु
लिखित ऐसी कहानी जिसमें पति-पत्नी के बीच के खट्टे-मिठे प्यार को चित्रित किया है|
पत्नी
चाहे कितना भी गुस्सा करें पति उसके सपने को पूरा करने के लिये केवल प्रयास नहीं करता तो, उसका सपना भी पूरा
करता है| कारण केवल पति ही जानता है कि उसकी पत्नी ‘लाल पान की बेगम’ है|
अर्थात वह ऐसी बेगम यानी रानी होती है, जिसका मन लाल पान ही
होता है| लाल रंग प्यार का प्रतीक होता है| अर्थात उसके मन में पति के प्रति केवल
प्रेम ही होता है| चाहे वह ऊपर से कितना भी गुस्सा दिखायें पर अंदर ही अंदर वह पति से
प्यार करती है| इतनाही नहीं तो वह उसका ही विचार करती और पति उसके सपने पूरे करेगा यह
उसे विश्वास भी होता है|अत: पति-पत्नी के ऐसे खट्टे-मिठे प्यार को
प्रस्तुत कहानी में चित्रित किया है|
कहानी का प्रारंभ बिरजू के मां की गुस्से से हुआ
है| कारण
बिरजू के बप्पा गाडी लाने के लिए गए है| उन्होंने बिरजू के मां को कहा है कि ‘बैलगाड़ी पर बिठा कर
बलरामपुर का नाच दिखा लाऊँगा।’ पर बहुत देर हो गयी है, वे नहीं आए| बिरजू शकरकंद खाने
का हठ लिए हुए था | जिसके लिये चंपिया सामान लाने के लिये गयी है, वह भी अभी तक नहीं
लौटी |बिरजू
की मां का गुस्सा बढ रहा था | इसी में पडोसी मखनी फुआ (जिसका कोई नहीं) नाच
देखने जाने की बात छेडती है|
बिरजू की मां गुस्से से उसे कहती है, “बिरजू की माँ के आगे
नाथ और पीछे पगहिया हो तब न, फुआ!
यह
बात मखनी फुआ के मन को गहरी छोट पहुंचाती है| वह वहां से चली जाती है| उसे बहुत बुरा लगता
है|
पनभरनियों के बीच मखनी फुआ बिरजू की माँ की बातों का जिक्र करती है। कारण स्वयं
बिरजू के मां ने आठ दिन पहले नाच देखने जाने की बात कहीं थी|
यह
सब देख जंगी की पतोहू कहती है, “चल दिदिया, चल! इस मुहल्ले में लाल पान की बेगम बसती
है! नहीं जानती, दोपहर-दिन और चौपहर-रात बिजली की बत्ती भक-भक कर जलती है|”
जंगी
की पतोहू की बात सून बिरजू की मां को लगता है कि गांव की औरतें उसपर जलती है| कारण वह सोचती है, चंपिया के मां के
आंगण में चांदी-जैसे पाट सूखते देखकर जलनेवाली सब औरतें खलिहान पर सोनेली धान के
बोझों को देखकर बैंगन का भुर्ता हो जाएंगी ही|
पर इसके लिये उसके सीधे-साधे पति ने कितना कुछ
झेला है| मूलतः उसका पति डरपोक है और अपनी चाहतों को दबाकर रखता है, परंतु बिरजू की मां
एक सशक्त महिला है|
उसके
कारण ही बिरजू के बप्पा ने सर्वे के समय पांच बीघा अपनी जमीन हासिल की है| बाबूसाहब से उन्हें
कितनी परेशानी हुई, पर वह बिरजू के बप्पा के साथ थी इसलिये जमीन उनकी हो गई थी| इसलिये गांव की
औरतें उसपर जलती है ऐसा बिरजू की मां को लगता है|
सांज हो गयी फिर भी बिरजू के बप्पा नहीं आए| तब चम्पिया को बप्पा की बात याद आती है| उन्होंने चंपिया के
पास संदेश दिया था कि कोयरीटोले में किसी ने गाडी नहीं दी इसलिये मलदहियाटोली के मियांजान
की गाडी लाने जा रहें है| वह तैयार रहें|
परंतु
बिरजू की मां को लगता है, अब तक नाच शुरू हुआ होगा| वह रूठ कर सो जाती
है| बच्चों
को कहती है| बप्पा आए तो भी नहीं उठाना|
मां को देख दोनों बच्चों के आंखों में आंसू आते
है| इतने
में बैलों के घुंघरू की आवाज आती है|
नाच
अभी तक शुरू नहीं हुआ कारण अभी-अभी बलरामपुर के बाबू संपनी गाडी मोहनपुर होटील
लाने गये है | इसके साथ कहता है कि इस साल हमारे जमीन में खूब धान होगा| बिरजू की मां खुश
होती है| मखनी फुआ को घर की देखभाल करने के लिए कहा और सब गाडी में बैठकरनाच
देखने के लिए निकल पडते है|
गाड़ी में जगह होने के कारण बिरजू की माँ
ने जंगी की बहू को भी साथ लेते चलने को गाड़ी रुकवाई। जंगी की बहू, लरेंना की पत्नी और
राधे की बेटी सुनरी तीनों को साथ गाड़ी में बिठा चल पड़ते है।
फिर
बिरजू की माँ ने चम्पिया को बायस्कोप की गीत गाने को कहा।चम्पिया के साथ-साथ जंगी
की बहू भी धीरे-धीरे गुनगुनाने लगी “चंदा की चाँदनी…”।बिरजू की माँ के मन
में जंगी की बहू के प्रति खटास खत्म हो गयी और मन-ही-मन कहने लगी।
जंगी की बहू की तारीफ़ करने लगी कि कितनी प्यारी
बहु है।
सच ही तो कहा है “लाल पान की बेग़म” यह कोई बुरी बात
नहीं।
कारण वह पल में रूठती है और उतनी जल्दी गुस्सा भी
भूल जाती है| इसीकरण जंगी बहु को भी वह
अपने साथ नाच देखने के लिए लेकर जाती है| सबको को साथ लेकर चलने में उसे ख़ुशी मिलती
है|
सच
वह लाल पान की बेगम ही है कारण लेखक ने कहानी के अंत में लिखा है कि बिरजू के मां
के मन में अब कोई लालसा नहीं है| वह खुश हैं| अर्थात उसका मन प्यार से ही भरा हुआ है|
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