पहला दृश्य:-
सत्य मंडली के
कलाकार नट-नटी रंगमंच पर ‘दंडे का घोडा’ नाटक कर
रहे है| नट गीत गाते-गाते वह दंडे के घोडे को चलाते-चलाते
रंगमंच पर पहुंच जाता है, जिसने विदुषक का हुलिया बना रखा है|
सभी नेतागण विदुषक ही तो लगते है | इसीलिए उसे
लगता है कि नेताजी का दंडे का घोडा चल सकता है, तो हमारा भी
चला सकता है बस जरुरत है हवाई किला बनाने की, ख्याल पुलाव पकाने की| नटी उसे इस बात का एहसास
दिलाती है कि दंडे का घोडा कुछ काम का नहीं होता| वह आगे भी
नहीं जाता वही का वही घूमता रहता है|जैसे लोगों को कहीं
पहुंचने की चिंता ही नहीं है| पर हमें आगे जाना है कारण हम
रंगकर्मी है | हमें नाटक करना है और तुम सूत्रधार हो|
तब ‘दंडे का घोडा’ नाटक
का प्रारंभ गणेश वंदना से होता है| परंतु इतने में खद्दर की
टोपी पहननेवाले नेताजी का रंगमंच पर प्रवेश होता है| जो अपने
आप को सूत्रधार बताते है| नेताजी मानना है कि “हर नाटक का सूत्रधार मैं होता हूं, मैं ही रहूंगा| आपकी मंडली मेरी ही मंडली है|
जब नट कहता कि आपका असत्य का नाटक ‘सत्य -
मंडली’ नहीं कर सकती| तब नेता कहता है
कि “यहां सत्य-असत्य कुछ नहीं होता| न
राजनीति में, न साहित्य में, न कला में,
न तुम्हारे थियेटर में|”
इसलिए ये नाटक आपको करना ही होगा| यह नाटक ऐसा करना है जैसे देश से गरीबी हट गयी है, ऐसा लगना चाहिए| सब सुख शांति से रह रहे है |
अगर आप करने से इन्कार करेंगे तो कानून द्वारा करवाएंगे| कारण हम बस नचाना जानते है| इसलिए रंगमंच से ‘गरीबी हटाओं’ नाटक का ऐलान होता है| जो सांस्कृतिक उत्सव में मंत्री जे के सामने होनेवाला है|
दृश्य दूसरा – लोकतंत्र
गरीबन का पुरवा गांव में सांस्कृतिक
कार्यक्रम की तैयारी जोरों से शुरू है| नट न्याय
व्यवस्था की बुनियाद कैसे हिल रही है यह गीत गाता हुआ रंगमंच पर आता है| तभी मुख्यमंत्री त्रिपाठी और कृषी मंत्री वहां पधारते है| उनके पिछे संत्री और दरोगा है| इस गांव का चुनाव
करने के मुख्यमंत्री दरोगा की प्रशंसा करते है| करण इस गांव में
सत्तर प्रतिशत हरिजन है और बाकी जाट-ब्राह्मण करीब- करीब बराबर है| गांव के सरपंच शर्मा है | उन्हें बुलाया जाता है
और गांव की समस्या के बारे में पूछा जाता है| वे पानी की
समस्या के बारे में मंत्री को बताते है| हरीजनों के लिए
कुंआ भी नहीं खोद नहीं सकते कारण उनके हिस्से की जमीन नहीं है| कुंआ भी खुदवा देते पर उनके मन में बराबरी की हवस जग जायेगी, इसीलिए जो चल रहा वह ठीक है| इसके बाद महमूद कव्वाल
की कव्वाली होती है| इसके
बाद मुख्यमंत्री ‘गरीबन की पुरवा’ गांव के लोगों को संबोधित
करते है| वे लोगों को बताते है कि गरीबी हटाने के लिए अलग
मंत्रालय की स्थापना की गयी है, जिसके लिए छह करोड बानवे
अरब रुपया खर्च कर चुके है| समय लगेगा कारण हमारा देश बडा
है, पर गरीबी जरूर हटाई जायेगी|
सिर्फ दस साल हमें दे दीजिए| इतने में वहां शोर मच
जाता है| एक ग्रामीण एक औरत उसके दो बच्चों के साथ लेकर आताजो भूख के कारण
आत्महत्या करने गयी थी|
उसका पति खून के जुर्म में जेहल काट रहा है| उसने पिछले चुनाव में सरपंच के खिलाफ खडे उमेदवार का गंडासे खून किया था| उसके औरत को भी जेल में भेजने के लिए कहा जाता है| ग्रामीण यह बताने का प्रयास करता है उसके पति ने कुछ नहीं किया, उसे फंसाया गया था|
फिर भी दारोगा उसकी एक बात भी नहीं सुनता, उस औरत को लेकर जाता है और मुख्यमंत्री गरिबी
हटाने की बात करते है और दूसरा दृश्य समाप्त होता है|
तीसरा दृश्य:- राजतंत्र मंत्रियों के कुछ
वर्ष पूर्व की घटना अर्थात राजाओं की समय की घटना को चित्रित किया है| दृश्य
का प्रारंभ नट-नटी के गीत-नृत्य से होता है| मंत्रियों के
लोकतंत्र में केवल गरीब पिटता रहता है, राजाओं के समय में
भी कोई अलग बात नहीं थी, इसे ही इस दृश्य में चित्रित
किया है| इसमें मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री ही राजा और
मंत्री बने है| राजा के सामने एक आदमी और औरत को बंदी
बनाकर लाया गया है| जो गरीबन गांव के हैं| दोनों नाचते और गाते अच्छा है इसीलिए दोनों को बंदी बनाकर लाया गया है| औरत के मीठी आवाज को सून राजा उसे गीत गाने के लिए कहते है| औरत महंगाई का गीत गाती है| राजा खुश होते है| उनके गांव का नाम गरीबन की जगह गरीबन की पुरवा कर देते है और उसे कहते है कि
आज से तू हमारे महल में रहेगी| अब तू गरीब नहीं है| पर औरत कहती हमारा महल से कुछ सम्बन्ध नहीं है, बस हमारे गांव की गरीबी हटाई जाए| पर इनके गांव में कोई
गरीबी नहीं,
यह औरत झुठ बोल रही है, ऐसा मंत्री कहते
है| कारण गांव धरती का स्वर्ग होता है | वहां बडी सुख
शांति होती है|
पर औरत फिर से कहती है हम एक वक्त की खाकर ही रहते है सारा
अनाज आपके सिपाही खेत से ही ले जाते है| गांव में कुंआ तक
नहीं| फिर से मंत्री कहता है यह औरत झूठ बोल रही है, गांव में कुंआ है|
पर मांगने पर ही पानी मिलता है और हमे हमारे हक्क का कुंआ
चाहिए बीच में ही आदमी उत्तर देता है| जो औरत का
होनेवाला पति है| पर मंत्री कहता है अब वह तेरी औरत नहीं, वह महल में रहेगी| राजा के लिए सब जान देने के लिए तैयार होते और तू एक लुगाई नहीं दे रहा| तेरी औरत भाग्यशाली है|आदमी कहता है हम अपना घर बसाना चाहते है| हम कहीं के नहीं
रहेंगे|
पर उसकी कोई बात सूनी नहीं जाती| सैनिक आदमी को पकडकर ले जाता है, औरत उसके साथ जाने का
प्रयास करती है,
पर सेनापति उसे रोकता है| राजा लोलुपता की हंसी हंसता है| तीसरा दृश्य यहां समाप्त होता है|
चौथे दृश्य लोकतंत्र :-चौथे दृश्य में
आत्महत्या करनेवाली औरत के साथ हुई घटना का है , जिसे हवालात में बंद किया है| इसका भी प्रारंभ नट-नटी
के गीत से होता है| “जेल का हाल देखिए|लंपटी चाल देखिए|
दरोगा सरपंचों का , राक्षसी का जाल
देखिए|” जिसमें देश में चारों तरफ रक्षक
लुटेरे है,
जिन्हें गरीबों को कैद करना कितना आसान है, इसे व्यक्त किया है|
यह लुटेरे राक्षसी वृत्ति के हैं|हवालात
में दरोगा आए हैं| जहां गरीबन को रखा है| दरोगा उस पर क्रोधित होता है| परंतु उसे अपने
बच्चों की फिक्र हैं| तब दरोगा कहता है| बच्चे खुश है, वे आराम से खेल रहे| वे हलवा पूरी खा रहे है| उनकी देखभाल सरपंच कर
रहे| अब वे भी आ रहे है, उन्हें
पूछना|तेरे बच्चे ज्ञानू और सरसती को तुझे दिखाने के लिए
लायेंगे| तेरे बेटे को सिपाही और बेटी को दाई बनायेंगे|
उनकी शादी भी करेंगे| इतने में शराब के
नशे में सरपंच आते है| दारोगा कहता है| इनके बच्चों की शादी करेंगे न? शादी क्या
उन्हें घोडे पर बिठायेंगे| वैसे तो हरिजन हमारे सामने
घोडे पर नहीं चढ सकता|कारण ब्राह्मण यदि
उन्हें घोडे पर चढा देखता है, तो उसे सीधे नरक में
जाना पडता है|
कोई बात नहीं हम नरक में भी जायेंगे| ऐसा सरपंच कहते है|
बच्चे दूध मलाई खा रहे है यह सून औरत बहुत खुश होती है| तब दोनों लोलुपता की हंसी हंसते है और जिसका आतंक औरत पर बढता है| इस दृश्य के अंत में केवल औरत की चीख सुनाई देती है|और यहां चौथा दृश्य समाप्त होता है|
पांचवा दृश्य राजतंत्र:- पांचवा दृश्य राजा के अंत:पुर का है| जहां गरीबन शय्या
पर बैठी है| नट-नटी गीत गाते है,
रंगमहल में राजा के
देखिए
क्या होता है,
वासना
के कोडे से,
कौन
पिटता रोता है|”
जैसे ही राजा का प्रवेश अंत: पुर
में होता है, वैसे ही वह औरत राजा के पैर पकडती है और कहती है मुझे जाने दो| हम तुम्हारे लायक नहीं है| हम हरिजन है| छोटे जात है है| मेरे सारे परिवार के गरीब है | राजा कहता है अब तू
गरीब नहीं है|
मेरे दिल की रानी है| अब कोई गरीब नहीं
रहेगा| बस तू यह कह दे कि तू मेरी रानी है|
पर औरत है कि अपने मरद के साथ रहना चाहती है| उसके
मरद जबान लडाई इसीलिए तो उसे जेल में डाल दिया है| वह
अपने मरद को छोडने के लिए कहती है| और रोने लगती है|
तब राजा कहता है कि क्या मैं तुझे पसंद नहीं| तेरे लिए मैं सबको मालामाल कर दूंगा| तेरे
मां-बाप, मरद| मरद को तो सेना
में रख लूंगा| तेरे बाप को गरीबन के पुरवा का राजा कहेंगे|बस तेरे हुक्म की देर है, तेरा घर महल हो
जायेगा| औरत खुश होती है|आगे
राजा कहता है मुझे तेरा यह नाम पसंद नहीं है| आज से तेरा
नाम गौरी बानू होगा| हमारी महारानी ‘गौरी बानू’| इस पर औरत चुप रहती है| हम तुझ पर जान देते है|तुझ पर सबकुछ
न्यौछावर कर सकते हैं|
वह ,राजा को अपने मर्द को छोडने के लिए कहती, मां-बाप के लिए
घर बनवाने के लिए कहती,
घर के सामने कुंआ खोदने के लिए कहती है| इसके बदले में वह राजा को अपने आप को सुपूर्द करती है| अंत में उसके साथ नाचता गाता है और उसे अपने पास खिंचता है| यहां पर नाटक यह दृश्य समाप्त होता है|
छटे दृश्य :- राजतंत्र: छटे दृश्य में राजा ने
गरीबन के मरद को छोड दिया है| यह बात प्रहरी उसे बताता
है| नट-नटी गीत गाते है,
“अकेला हाथ में उठा
खड्ग
भी चुप रहता है,
देखिए
राजा जी का
ये
प्रहरी क्या कहता है ?”
आदमी जानता है कि इसके लिए उसके औरत ने बडी
कुर्बानी दी होगी|
उसके कहने पर ही राजा ने
उसे सैनिक भी बना दिया है| परंतु सैनिक बनना सबसे बडा जेल
है, यह बात प्रहरी उसे कहता है| कारण वहां आदमी दूसरे के हुक्म का मोहताज होता है, जैसे आज प्रहरी है|लगान न देने के वजह से
राजा ने प्रहरी के बाप को मार डाला और उसकी सारी जमीन हडप ली| उसे सैनिक बनाया जहां उसकी मर्जी कुछ नहीं चलती| वह सबसे बडा लुटेरा है और लुट का हथियार हमें बनाता है| आज सैकडों रानियां हैं| तुम सैनिक नहीं बनना चाहते, तो भी तुम्हें सैनिक
बनना पडेगा| घर, औरत,
सुख,
शांति कहने के लिए बहुत अच्छा लगता है, पर वह हमारे लिए नहीं|
अगर तुम विद्रोह करोगे तो कुचल दिये जाओगे| तुम्हारी औरत भी तुम्हें मिलने आयेगी, तो भी उसके खिलाफ
कुछ नहीं कहना|
तब आदमी राजा को मारने की बात करता है| ऐसी गलती तो कभी नहीं करना, कारण दीवारों के भी कान
होते है| राजा
के पास हम प्रशंसक होने की खबर जानी चाहिये | राजा को अगर यह पता है कि
हम उसके स्वामी भक्त है, तो वह हमें तुकडी का नायक बनाता
है| हम सेनापति नहीं बन सकते|
कारण छोटे जात के है| छोटे जात का काम हुकुम बजाना होता
है| हुकुम देना नहीं|तुम्हें
राजा का खात्मा करना है तो राजा के प्रशंसा का गीत जोर-जोर से गाना होगा| कारण गाना आग की तरह फैलता है| तब राजा हमें
सबसे ज्यादा वफादार समझेगा और हमारी तुकडी महल के पहरे पर लगेगी| तब तुम्हारी औरत मिलने आयेगी, तब हम उसकी मदद
से रंगमहल तक पहुंचेगेऔर राजा का काम तमाम कर देंगे| और
दूसरा राजा हम बनायेंगे| परंतु तब तक राजा के प्रशंसा का
गीत गायेंगे|“हम राजा को प्यार करेंगे,
मौत भी आए ललकार लडेंगे,
हम अपने राजा को प्यार करेंगे|”
यहां छटा दृश्य समाप्त होता है|
सातवें दृश्य: लोकतंत्र सातवें दृश्य में आत्महत्या करने गयी
गरीबन का पति जेल से भागकर गांव में आया है| नट-नटी गीत गाते है,
“भर रही प्रतिहिंसा से
आदमी
की छाया है|
गंडासा
अब ले करके
गांव
में वह आया है |”
गांव की झोपडी है| आधी रात|चादर ओढे जेल से भागा कैदी | झोपडी से ग्रामीण बाहर
आता है| वह ग्रामीण को अपने औरत और बच्चे के
बारे में पूछता|
उसके औरत के साथ सरपंच और दारोगा ने जो किया उसे वह बताते
है| बच्चे एक दो बार सरपंच की बकरी चराते दिखे थे, बाद में नहीं दिखे,
लोग कहते है कि शायद उन्हें बेचा है| आदमी उसे मारने की बात करता है| तब ग्रामीण कहता
कि उसे मारकर कुछ नहीं होगा|
दूसरा
सरपंच पैदा होगा|
उसका बहुत बडा खानदान हैं|उसकी असली
जडें काटनी होगी| बदला ऐसा लेना चाहिए जो न फले, न राजा रहना चाहिए न मंत्री| अब तुम्हें सबको साथ लेकर लडना होगा| तुम
जवान हो, मर्द हो अपने सरपंच खुद बनो| आग से
लडों, धुएं से नहीं| इस तरह नट-नटी मंच पर गरीबों के
पक्ष में विचार व्यक्त करने लगते है| तब नेता मंच पर आता
है और नट को कहता यह आपने क्या सुरु किया यह गरीबी हटाओं नाटक है| नहीं अब इस मंच से ‘अब गरीबी हटाओ’ यही नाटक होगा| अब यही रास्ता आप लोगों ने छोडा है| राजतंत्र और
लोकतंत्र दोनों को हम देख चुके | सबने अपना मतलब साधा है| अब गरीबी हटाने का यही तरीका रह गया है, सब गरीब मिलकर
अपनी गरीबी हटाएं!
इतने
में नेताजी रंगमंच पर आते है और नट-नटी को रोकने का प्रयास करते है| वह कहता है कि गरीबी हटाओ के समर्थन में नाटक करोनट-नटी कहते है कि अब
यह नहीं होगा| अब हम आपको हमें ठगने नहीं देंगे| मजाक
तो आप लोगों ने खुद अपना बना रखा है| पहले
राजतंत्र में बना रखा था, अब लोकतंत्र में बना रखा है| शोषक
के चेहरे वही हैं, बिल्ले बदल गए| गरीबी
हटाओ, ठगी का नारा हो गया| जितना
यह नारा ऊपर उठता है, गरीब आदमी उतना नीचे गिरता है, गिराया
जाता है|
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