M.A. I Sem I Notes

 

1)उसने कहा था कहानी की कथावस्तु – चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी



चंद्रधर शर्मा लिखित उसने कहा थाकहानी १९१५ प्रकाशित हो गयी है| जो हिंदी की प्रथम कहानी मानी जाती है|

       यह एक ऐसी कहानी है जिसमें बाल उम्र का प्रेम चित्रित है| परंतु इस प्रेम कहानी के माध्यम से गुलेरी जी में प्रेम की सच्ची व्याख्या की है| उन्होंने बताया है कि प्रेम का महत्व त्याग में हैं| जिससे प्रेम करते है, उसके भावनाओं की कदर करना है| उसके सुख के लिए त्याग करना है|

       इसके साथ प्रस्तुत कहानी में पंजाब के सैनिकों की वीरता को भी चित्रित किया है|

कहानी का प्रारंभ अमृतसर के बंबूकार्ट बाजार के वर्णन के साथ है| यहां बाजार में टांगे चलते थे| टांगेवाले अत्यंत मधुर स्वर में बचो खालसा जी’, ‘हटो माइजी’, ‘ठहरना माई’, ‘आने दो लालाजीऔर हटो बादशाह पुकार लगाते टांगे चलाते थे|

       इसी बाजार में मगरे का लडका(१२ साल) और मांझे की लडकी(८ साल)  एक दुकान पर मिलते है| लडका मामा को केश धोने के लिए दही लेने आया था और लडकी रसोई के लिए बडियां लेने आयी थी| लडकी के मामा का घर अतरसिंह की बैठक में है, तो लडके के मामा का घर गुरु बाजार में है| दोनों भी सिक्ख हैं|

दोनों का परिचय होता है| सौदा लेने के बाद दोनों साथ-साथ चलते है| कुछ दूर जाने पर लडका लडकी से पूछता है, “तेरी कुडमाई हो गईलडकी केवल धतऐसा जबाब देती| वे महिना भर वे ऐसे ही मिलते रहें | और वह इस तरह उसे पूछता रहता है  और एक दिन वह लडकी जबाब देती है, हां, हो गई| देखते नहीं यह रेशम का कढा हुआ सालू|”

       यह सुनकर लडका उदास हो जाता है| जिसका नाम लहना सिंह है| जो आगे फौज में भर्ती जो जाता है|वह लडकी को भूल भी जाता है| २५ साल बाद उसकी लडकी के साथ मुलाकात हो जाती है| वह नहीं पर लडकी उसे पहचानती है| आज वह सूबेदार की बीवी अर्थात सूबेदारीन है|

       लाम पर जाते समय सूबेदार ने उसे संदेश दिया था कि मेरे गांव से होकर जाना| इसलिये वह उनके घर गया था| तब उस लडकी से मुलाकात होती है| आज उसका पति हजारा सिंह और बेटा बोधा सिंह दोनों भी लाम पर जा रहे हैं| इसलिये वह चिंतित है| वह कहती है कि सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है| लायलपुर में जमीन भी दी है| इसीकरण आज नामक हलाली का मौका आया है | पर मेरे भाग फुटे है| अब वे दोनों जा रहें है| एक ही बेटा वह भी फौज में भर्ती हुआ| बाकी चार बचे ही नहीं| अब मेरा भाग्य तुम्हारे हाथों में है। उस दिन तुमने मुझे टांगे  के नीचे आते - आते बचाया था| ऐसे ही मेरे पति और बेटे बोधा दोनों को बचाना| यह मेरी भिक्षा है|  मैं तुम्हारे आगे आंचल पसारती हूं|

      उस वक्त अंग्रेजों और जर्मनी के बीच युद्ध छेड गया था| जर्मन फोर्स अंग्रेजों पर भारी पड़ रही थी| भारतीय सैनिक अंग्रेजों के सैनिक हैं |खंदक में पानी भरा है, बहुत ठंड है लहनासिंह अपने दोनों कंबल बोधा को ओढा  देता है और स्वयं सिगरी  के पास बैठा रहता है| ठंड क्या है, मानो मौत| बोधसिंह को फिर भी ठंडक लग रही है इसीलिए लहनासिंह उसे अपनी जर्सी पहना देता है| तभी सूबेदार हजारा सिंह को कोई खंदक के बाहर से पुकारता है और आदेश देता है कि इस समय दावा करना होगा| मील भर के दूर पर पूर्व में जर्मन खाई है जिसमें 50 से ज्यादा जर्मन नहीं है| बोधा सिंह वहां जाकर आक्रमण करने को तैयार हुआ परंतु उसे रोक दिया गया और सूबेदार ने बाकी लोगों के साथ मार्च किया|

उस आने वाले ऑफिसर ने लहना सिंह की ओर हाथ बढ़ाकर उसे सिगरेट देते हुए कहा कि तुम भी पियो, सिंगडी  के उजाले में लहान सिंह ने साहब का चेहरा देखा उसका माथा ठनका और वह समझ गया कि यह उसके साहब नहीं है| जर्मन ऑफिसर है |

       उसने उसे छेडते हुए पूछा कि क्यों साहब  हम हिंदुस्तान कब जाएंगे? क्योंकि वहां  शिकार के मजे हैं| उन्हें याद होगा कि गए वर्ष नकली  लड़ाई लड़ते हम जगाधरी के जिले में शिकार करने गए थे| वहीं पर खानसामा अब्दुल्ला मंदिर में जल चढ़ाने के लिए रहे थे  तभी सामने ही नील गाय निकली और आपने उसे गोली मारी| ऐसे अफसर के साथ शिकार खेलने में मजा है |उस गाय के सींग तो दो-दो फीट के होंगे| लहना सिंह  सिगरेट पीने के बहाने खंदक में गुस्सा और अंदर वजीर सिंह से कहा कि  होश में आओ कयामत आई है, लपटन साहब की वर्दी पहन कर आई है| लपटन या तो मारे गए या फिर कैद हो गए हैं|  उनकी वर्दी पहनकर कोई जर्मन आया है | तुम एक काम करो लपटन साहब  पैरों के निशान देखते जाओ और खंदक की ओर गई सेना को आगाह करो| 

      तब वजीर सिंह ने कहा कि यहां तो तुम आठ हो| इसपर लहना सिंह कहता है आठ नहीं सवा लाख| कारण एक-एक अकालिया सिक्ख सवा लाख  के बराबर होता है| लौटकर लहन सिंह ने  देखा कि मैं नकली लपटन साहब जेब से गोली निकालकर बंदूकों की दीवारों पर लगा रहा था और एक तार से बांद रहा है|  तब बंदूक उठाकर साहब के कोने  पर मारा|  लहाना सिंह ने तीनों गोले निकालकर खंदक के बाहर फेंक दिया| और नकली लपटन साहब के जेब की तलाशी ली|

लहना सिंह नकली जर्मन को पहचान जाता है| इसलिये वह उन्होंने जेब से पिस्तौल निकलकर गोली चलायी, जो लहना सिंह के जांघ में लगी| लहना सिंह ने भी फायर किया जिसमें वह नकली लपटन साहब मर गया| तभी सत्तर  जर्मन सैनिकों ने खंदक पर आक्रमण किया| इस लड़ाई में 63 जर्मन मारे गए सिखों में 15 के प्राण गये| सूबेदार के कंधे में धसी  गोली आर-पार निकल गई| लहना सिंह को भो गोली पसली में लगी, परंतु  उसके घाव को खंदक  की मिट्टी से भर  दिया| इसीकरण किसी को भी खबर नहीं हुई लहना सिंह का दूसरा घाव भारी है|

सूबेदार लहना सिंह को छोड़कर जाना नहीं चाहते थे | परंतु डॉक्टर और एम्बुलंस आई तब  लहना सिंह ने उन्हें जाने का आग्रह किया| इतनाही नहीं तो बोधा  और सुबेदारानी की कसम दी और कहा कि तुम इस गाड़ी में चले जाओ मेरी दूसरी गाड़ी आ जाएगी| और जाते-जाते यह कहा कि सुबेदारिनी हीरा को जब पत्र लिखो तो मेरा मत्था टेकना लिख देना| घर जब जाओगे तो उन्हें कहना कि  मुझसे उन्होंने जो कहा था वह मैंने पूरा कर दिया|’ सूबेदार सिंह लहनं सिंह का हाथ पकडकर कहते है, ‘तैने मेरे और बोधा के प्राण बचाये, पत्र लिखना कैसा? साथ ही चलेंगे | अपनी सुबेदारनी ने से तुम ही कह देना, ‘उसने क्या कहा था’|

सूबेदार जाने के बाद उसने वजीरा सिंह से पानी मांगा| उसकी अवस्था मरणासन्न हो जाती है| वह अपना सर वजीरा सिंह के गोद में रख देता है, पर उसे लगता है कि वह अपने भाई करतार सिंह के गोद में ही है| उस वक्त जन्म भर की सारी घटनायें उसे याद आती हैं| वह नं ७७ राइफल्स में जमीदार होकर अपना सैनिकी कर्तव्य निभाने में इतना व्यस्त हो गया कि वह यह भी भूल गया था कि उसे बाजार में आठ साल की लडकी मिली थी जिसे वह प्रेम करने लगा था| पर उसकी कुडमाई होने के बाद वह उससे दूर जाता है| पच्चीस साल दे बाद जब वह मिलती है, तब उसके सुख के बारे में ही सोचता है| 

इसलिये युद्ध के मैदान में लहना सिंह का अंत तक यह प्रयत्न रहा कि सूबेदार और बोधा को बचाएं। और वह अपना कर्तव्य भी पूरा करता है| और वह शहीद होता है| जिसकी खबर अखबार में छपे समाचार से मिलती है

       फ्रांस, और बेल्जियम अडसठवीं सूची- मैदान में धावों से मरा नं. ७७ सिख राइफल्स जमीदार लहना सिंह|’

       इसप्रकार प्रस्तुत कहानी में प्रेम की श्रेष्ठता को चित्रित किया है, जो त्याग और बलिदान को व्यक्त करती है| 




२) ईदगाह - प्रेमचंद 


ईदगाह प्रेमचंद लिखित कहानी है| प्रस्तुत कहानी के माध्यम से प्रेमचंद जी ने बच्चों की मानसिकता और भावनाओं को चित्रित किया है| बच्चें भी अपनी घर की परिस्थिति को समझ सकते है और उसके अनुसार वे प्रसंगवश जिम्मेदार, समझदार बनते है|

     ऐसे ही प्रस्तुत कहानी का नायक छोटा बच्चा हामिद है| जिसकी उम्र चार-पांच साल की होगी| अनाथ है| उसकी दादी ही उसकी अम्मा और अब्बाजान है |

उसके अब्बा गत साल हैजे के कारण और मां पीली पडने कारण मर गयी है| पर इस नन्ही सी जान को इसकी कोई खबर ही नहीं, कारण मरना क्या होता है इसका उसे एहसास ही नहीं| इसीकारण वह हमेशा प्रसन्न रहता| कारण वह सोचता है की उसके अब्बाजान रुपये कमाने गये है और अम्मीजन अल्लाह के घर बडी अच्छी-अच्छी चीजे लाने गयी है|

     परंतु आज उसकी दादी उदास है कारण आज ईद है और उसके घर में दाना नहीं|

हामिद अपने दोस्तों के साथ शहर में ईदगाह के लिए जाना चाहता है| जहां एक प्रकार का मेला भी होता है| बाकी दोस्त अपने बाप के साथ जा रहे है, हामिद अकेला कैंसे जायेगा यह चिंता दादी को लगी है| वह सोचती है आज आबिद होता तो, इतनी उदास ईद नहीं होती| वह रोती है| तब हामिद कहता है डरना नहीं मैं सबसे पहले आऊंगा|

     केवल यही चिंता नहीं तो उसे पैसे भी कहां से दूं ? यह भी दादी के सामने समस्यां है| उसके पास जूते भी नहीं| तीन कोस चलकर जाना है|

परंतु हामिद अपने दोस्तों के साथ जाना चाहता है| इसलिये अमीना ने फहीमन के कपडे सिए थे उससे मिले आठ आने उसने जतन करके रखे थे| उसमें से वह हामिदा को तीन आने देती है और पांच ईद के त्योहार के लिए रखती है|

     हामिद अपने दोस्तों के साथ ईदगाह की ओर निकाल पडता है| ईदगाह पर पहुंचने के बाद नमाज पढते ही सारे मिठाई और खिलौने के दुकानों पर धावा बोलते है|

परंतु हामिद अपने मन पर काबू करता है, कारण उसके पास उतने पैसे नहीं थे| उसका दोस्त मोहसिन के पास पंद्रह पैसे तो महमूद के पास बारह पैसे होते है| सारे जमकर मिठाई खाते है और खिलौने भी खरीदते है|

     आगे जाकर हामिद एक चिमटा खरीद लेता है| सारे दोस्त उसे चिढाते है | इतनाही नहीं तो घर पहुंचने पर दादी भी उसपर गुस्सा होती है|

परंतु हामिद कहता है, तुम्हारी उंगलियां तवे से जल जाती है न?’

     दादी सोचती है, “ बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव, और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देख इसका मन कितना ललचाया होगा! इतना जब्त इसमें हुआ कैसे? वहां भी इसे अपनी बुढिया  दादी की याद बनी रही|’

     इसप्रकार प्रस्तुत कहानी में बच्चे की समझदारी को चित्रित किया है|


3) मधुआ - जयशंकर प्रसाद 


मधुआ एक चरित्र प्रधान कहानी है| जिसमें लेखक ने मानविय संवेदना को चित्रित किया हैं| परिस्थिति वश इन्सान कभी-कभी रास्ता भटक जाता हैं, परंतु उसका संवेदनशील मन हमेशा उसके साथ होता हैं|  इसलिये वह दूसरों की  वेदना को देखकर स्वयं भी भावूक हो जाता हैं| ऐसे ही मधुआकहानी का शराबी पात्र है| मधुआ का दु:ख देख वह उसे किसप्रकार अपनाता हैं, इसे ही प्रस्तुत कहानी  में चित्रित किया हैं|

प्रस्तुत कहानी के शराबी ने आज सात दिन हुए  शराब नहीं पी, यह बात वह  ठाकुर सरदार सिंह को बताता हैं| उनसे उसकी मुलाकात लखनौ में होती है| जहां उनका लडका पढता हैं| ठाकुर साहब को कहानी सुनने का चस्का था, तब उन्हें यह शराबी मिलता हैं | वह उससे कहानी सुनते हैं| वह शराबी हैं, पर वह जो शहजादों के दुखडे, रंग-महल की अभागिनी बेगमों के निष्फल प्रेम, करुण कथा और पीडा से भरी कहानियां सुनवाता हैं, उसमें एक टीस होती थी|

परंतु आज सरकार कोई हंसानेवाली कहानी कहने के लिए कहते हैं| जिसके लिए उसे एक रुपया मिलता हैं| सरदार को नींद आने  के कारण वह  उसे जाने के लिए कहते  हैं| और जाते-जाते लल्लू को भेजने के लिए कहते हैं| लल्लू सरकार का जमादार था | उसे खोजते खोजते शराबी फाटक के कोठरी में पहुंचता हैं| जहां लल्लू एक बालक पर क्रोधित हो रहे थे | जिसका नाम मधुआ हैं| जो रो रहा हैं| जिसे कुंवर साहब ने दो लाथे मारी थी |

परंतु उसके आंसू देख शराबी का दिल पिघल जाता हैं| वह मधुआ को रोने का कारण पूछता हैं| तब वह  कहता हैं कि उसे भूख लगी हैं| तब शराबी कहता कि इतने बडे अमीर के यहां होकर भी तुमने दिन भर खाना नहीं खाया | वह  दिन भर कुंवर साहब का ओवरकोट लिए खेल में था| सात बजे लौटा,  तो भी बाद में नौ बजे तक काम करना पडा था| आटा रख नहीं सका तो रोटी कैसे बनती | यही बात वह  जमादार से कहने के लिए गया था कि मार तो मैं रोज खाता हुं, आज खाने को भी नहीं मिला |

बच्चे की  दयनियता को देख शराबी को दया  आती हैं| वह उसे एक गली के झोपडे में ले  जाता हैं| और फटे हुए कम्बल में एक पराठे का जो तुकडा पडा  था वह खाने लिए देता हैं| जब तक खाने का प्रबंध करता हैं, वह तुकडा चबाने के लिए हैं| और बाहर जाकर एक रुपया का खाना लेकर आता हैं और मधुआ को ठुंसकर खाने के लिए कहता है, परंतु फिर रोएगा तो वह पिटेगा | कारण उसे रोना बिल्कुल पसंद नहीं|

दूसरे दिन शराबी ने चिंतापूर्ण आलोक में  अपनी कोठरी और उस बालक को देखा| जिसके जिंदगी में केवल बोतल को जगह थी, आज यह बालक आ धमका है| वह यह कैसी नियति है, इसके बारे में वह सोचता है| परंतु वह इस झंझट में पडना नहीं चाहता| इसलिये पहले पहल सोचता है कि वह उसे जाने के लिए कहेगा| परंतु वह ऐसा नहीं कह सका | इसलिये स्वयं ही कोठरी छोडकर जाता है| कुछ समय गोमती नदी के किनारें सोचते बैठा था| तब वहां एक आदमी रामजी उसे अपनी सान ले जाने के लिए कहता|

जिस कोठरी में वह शराबी रहता है, उसका दो रुपया भाडा रामजी भरता है| अत: शराबी वापस कोठरी में आता है| तब मधुआ ने खाना खाया था और शराबी के लिए भी रखा था| तब शराबी उसे पूछता अब तू कहां जायेगा| मैं तुझे हररोज मिठाई नहीं खिला सकता | इसके लिए काम करना पडेगा| मेरे साथ घूमना पडेगा| मधुआ कुछ भी काम करने की लिए और कहीं भी जाने के लिए तैयार होता है| बालक के दृढ निश्चय को देख शराबी भी सोचता है, अब मुझे भी शराब न पीने का दृढ निश्चय करना पडेगा|

दोनों कोठरी के बाहर जाने की तैयारी करते है| दो गटठर बनते| इसमें से शराबी जो भी कहेगा वह बालक उठाने को तैयार होता है| फिर जाते-जाते शराबी कहता है, तेरे बाप मुझे पकडे तो? बालक कहता है कि कोई नहीं पकडेगा मेरे मां-बाप तो मर गये है| शराबी आश्चर्य से उसका मुंह देखता है और दोनों कोठरी के बाहर निकलते है|

          इस तरह प्रस्तुत कहानी में मधुआ के कारण शराबी का जीवन बदलता है|


4) हल्दी घाटी में - चतुर सेन शास्त्री 


हल्दी घाटी मेंआ. चतुर सेन लिखित एक ऐतिहासिक कहानी है| जिसमें लेखक हल्दी घाटी में हुए ऐतिहासिक युद्ध का चित्रण किया है| जो न केवल राजस्थान के इतिहास की बल्की हिंदुस्थान के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना हैजो युद्ध मेवाड के महाराणा प्रताप और अकबर के सेना में हुआ था| कारण अकबर मेवाड की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप कर रहा था |अत: अपने मेवाड की आन बचाने के लिए प्रताप यह युद्ध कर रहे थेराजस्थान के अनेक राजाओं ने अकबर की अधिनता स्वीकार कर ली थीपरंतु उन्हें अकबर की अधिनता मंजूर नहीं थी|

इसलिये हल्दी घाटी के आस-पास के अरावली पहाडियों में यह युद्ध हुआ था| जिसमें अकबर प्रत्यक्ष रूप में युद्ध में नहीं खडा था, तो उसके पक्ष में एक राजपूत सरदार मानसिंह लढ रहा था| जिसमें प्रताप का भाई शक्तिसिंह भी शामिल था| जो मुगल सेना की तरफ से लढते हुए भी अपने भाई की रक्षा किसप्रकार करता है| और सरदार रामसिंह तंवर ने अपने राजा के लिए कैसे बलिदान दिया? इसे प्रस्तुत करनेवाली यह कहानी है|

कहानी का प्रारंभ दो व्यक्तियों के संवाद से होता हैं| जो दो व्यक्ति हल्दी घाटी की दाहिनी ओर के उंची चोटी पर अपने शरीर पर हथियार सजा रहें थे| जिसमें से एक व्यक्ति मेवाड के महाराणा प्रताप और दूसरे व्यक्ति ग्वालियर के सरदार रामसिंह तंवर थे| जो अपने अन्नदाता को कह रहे थे की आज हम अपनी स्वाधीनता के युद्ध में अपने जीवन को सफल करेंगे|

        परंतु मुक्ता मणि भुजदंड पर बांधना भूल गये| तब सरदार वह मणि प्रताप के दाहिने भुजदंड पर बांध देते है|

परंतु प्रताप को लगता है कि हमारे जीवन की सबसे बहुमूल्य वस्तु तो हमारी स्वतंत्रता है| अगर हम उसकी रक्षा कर सके तो ऐसे छोटी -मोटी मणियों की कुछ भी आवश्यकता नहीं| परंतु सरदार का विश्वास हैं कि यह मणि जो पास रखेगा वह युद्ध में अजय और सुरक्षित रहेगा|

        इतने में उनके सैनिकों के जय जयकार की ध्वनि सुनाई देती हैं| तब वे दोनों अपनी सेना की तरफ चल देते हैं| जहां तीन हजार योद्धा समतल मैदान में व्यूहबद्ध खडे थे| 

सेना के अग्रभाग में छोडा- स हरियाली का मैदान है, जहां सत्रह योद्धा सिर से पैर तक शस्त्रों से सजे हुए खडे थे| प्रताप उन्हें ललकार कहता है| आज हम अपनी स्वतंत्रता के लिए लडने जा रहे है| फिर भी कोई पराया गुलाम बना रहना पसंद करता हैं, तो वे जा सकते है| परंतु जितनी भी सेना प्रताप के साथ थे, वे मरते दम तक अपनी तलवारों न छोडने का वाद करते हैं|

        उस समय प्रताप के पक्ष में केवल २२,००० सैन्य था, तो मुगल सैन्य एक लाख से अधिक था |

जिसमें साठ हजार घुड सवार चुने हुए थे| उनमें तुर्क, तातार, यवन, इरानी और पठान सभी योद्धा है| सवारों के पीछे हाथियों का दल था और उन पर धनुर्धारी योद्धा सजे हुए थे| दाहिनी तरफ शिरोमणी मानसिंह तीस हजार कछवाहों को लिए खडा थे| बाई तरफ  सेनापति मुजफ्फरखां बाईस हजार मुगलों के साथ था, हरावल में दस हजार चुने हुए पठनों की फौज थी| बीच में शहजादा सलीम उंचें हाथी पर बैठकर अपने छह हजार अंग रक्षकों के साथ युद्ध की गतिविधियां देख रहा है| इतनी व्यापक सेना केआगे प्रताप की सेना न के बराबर थी|  

प्रताप अपने सेना के बीच में चल रहा है| उनके दाहिने भाग में सलंबूरा सरदार थे और बाई और विक्रमसिंह सोलंकी थे| प्रताप की सेना दोनों तरफ से जमकर आक्रमण करते है| वैसे मुगलों का हरावल टूट जाता है| तब प्रताप मुगलों के सेना में अंदर घुसे जा रहे थे| जब महाराणा प्रताप मान सिंह के करीब पहुच गये थे और अपने घोड़े चेतक को उन्होंने सलीम  के हाथी पर चढ़ा दिया और भाले से सलीम पर वार किया लेकिन सलीम  तो बच गये लेकिन उनका महावत मारा गया | चेतक जब वापस हाथी से उतरा तो हाथी की सूंड में लगी तलवार से चेतक का एक पैर बुरी तरह घायल हो गया |

इतने मुगल सेना उनपर टूट पडी| यह देख सलंबूर सरदार तेजी के साथ शत्रु पर टूट पडा| और अपनी ठाकरां से कहा कि अन्नदाता आज यह सेवक अपने नमक का हक अदा करेगी| इतने में उनका  चेतक केवल तीन पैरो से 5 किमी तक दौड़ते दौड़ते हुए अपने स्वामी महाराणा प्रताप को रणभूमि से दूर लेकर गया और एक बड़े नाले से चेतक ने छलांग लगाई जिसमे चेतक के प्राण चले गये | उस समय महाराणा प्रताप के भाई शक्तिसिंह उनके पीछे थे और शक्तिसिंह को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने महाराणा प्रताप की मदद की |

दूसरे दिन शक्तिसिंह प्रताप को मिलने पर्वत की एक गुंफा में पहुंचते है| जहां एक शिला पर वे बैठे थे| शक्तिसिंह उन्हें सलंबूर के सरदार मारे जाने की खबर देता है और वह मणि प्रताप के हाथ में देता है| अपने स्वामी के प्राण देनेवाले सरदार को देख शक्तिसिंह को पछतावा होता है| परंतु प्रताप उसे माफ करते है| और यह ऐलान करते है कि भविष्य में सलंबूर के सरदार के वंशधर मेवाड की सेना में हरावल में रहेंगे और शक्ति सिंह के वंशज युद्ध क्षेत्र में दाहिने पक्ष में रहेंगे|



 5) आर्द्रा - मोहन राकेश 


    आर्द्रा मोहन राकेश लिखित ऐसी कहानी हैं, जिसमें मां की भावनाओं को चित्रित किया है| मां हमेशा अपने सभी बेटों से एक जैसा ही प्रेम करती है|

        प्रस्तुत कहानी की मां बचन अपने छोटे बेटे के साथ मुंबई में छह महिने से रहती है| केवल अपने लडके के खातिर वह वहां रहती है| परंतु उसे अनेक कठिनाओं का सामना करना पड  रहा है| कारण उसे भाषा की समस्या थी| साथ ही जिस बस्ती में वे रहती थी,वहां केवल दो ही धंधे थे सुअर पालना और नाजायज शराब निकलना| वह बस्ती सैंटाक्रुज के हवाई अड्डे से केवल आधा मिल के फासले पर थी| जहां मोनिका के पिता जेकब गली में भट्टी लगता था और सबसे पिय्यकड है| वह जब शराब पिकर अंग्रेजी में बडबड करता तो बचन के दिल में उसके शब्द दहशत पैदा करते थे| इसलिये वह अपने बेटे की राह देखती थी| लेकिन अनेक रातें ऐसी गुजरती थी, वह घर आता ही नहीं था| कभी- कभी अजीब-अजीब दोस्तों को घर लेकर आता |आने के बाद भी अपने में ही उल्झा रहता| कमाई का सवाल है, तो केवल साठ-सत्तर रुपये कठिनता से  महिने में घर लाता |

उसकी बहुत से मनसूबे है, पर उसे पूरा करने के लिये जिस दुनिया की जरुरत है, वह अबी तक नहीं बनी| वह मां को कहता कि जब वह दुनिया बन जायेगी तब देखना तब यह तेरा नालायक बेटा कितना लायक होगा|परंतु आज वह कुछ नहीं करता| घर पर भी वह समय पर नहीं आता|

        आज बचन की आंखे अपने बेटे की राह पर है| कारण बडे बेटे लाली की चिठ्ठी आयी हैं| वह बिन्नी से चिठ्ठी पढकर लेना चाहती है| परंतु गहरा अंधेरा हो गया फिर भी बिन्नी नहीं आया|

उसकी वजह से मां को बासी खाना  पडता है| इसलिये मां बिन्नी आने के बाद उस पर क्रोधित होती है| फिर भी उसने उसके किए ताजी रोटीयां  बनकर रखी थी| वह खाने के बाद बिन्नी मां को चिठ्ठी पढकर देता है| तब बचन को पता चलता है कि लाली का ब्लड प्रेशर बढ गया है| तब बचन कहती है कि मैं कल ही उसे देखने के जाऊंगी| पहले पहल बिन्नी मनाई करता है, परंतु बाद में अपने दोस्त शशी के मदद से टिकट लेकर आता है|

        लाली के घर आए पंद्रह दिन हो जाते है, फिर भी बिन्नी की चिठ्ठी नहीं आती| तब मां को उसकी चिंता लगी रहती है और वह सोचती है न जाने ने इस बेटे का क्या होगा?

        लाली के पास आने के बाद भी जितना हो सके अपने बेटे के लिए करने का प्रयास करती है| नौकर होते हुए भी वह सुबह अपने बेटे के लिए चाय बनाती है|  कुछ दिनों के बाद वह वास बिन्नी के पास जाने की बात करती है, परंतु लाली कहता है अभी दस- पंद्रह दिनों में दिवाली आयी है| परंतु बचन खामोश हो जाती है| इसलिये मां को भेजने की व्यवस्था लाली करता है| बचन को स्टेशन छोडने कुसुम नारायण को लेकर जाती है| तब बचन कुसुम को लाली का खयाल रखने के कहती है| उसे देर रात तक पढने नहीं देना और उसे सिर में बादामरोगन डलवा ने लिए कहती है|

        गाडी चलने के बाद बचन को मुंबई का माहोल याद आता है| बिन्नी के यहां का एकांत याद आता है, तब उसकी आंखे भर आती है|

        इसप्रकार प्रस्तुत कहानी की मां बचन अपने दोनों बेटों के विचार से चिंतित होती है |



6) जहां लक्ष्मी कैद है - राजेंद्र यादव 
७) पिता - ज्ञानरंजन 


8) नेलकटर - उदय प्रकाश 



नेलकटर उदय प्रकाश लिखित बिल्कुल छोटी कहानी है|

    जो मृत्यु के बाद भी मनुष्य के होने के एहसास को चित्रित करती है| मरने के बाद भी यह आत्मा रुपी चीज कही नहीं जाती | यही पे रहती हैं, अपने पूरे अस्तित्व और वजन के साथ| कारण उसका रिश्ता जिसके साथ जुडा होता है, उस प्रत्येक चीज में उसके होने का एहसास होता है| केवल समय चक्र में उसकी जगह थोडी भूल जाती, परंतु वह होती है|ऐसी ही यह कहानी लेखक के मां के होने का एहसास दिलानेवाली है|

    नेलकटर के साथ लेखक की अपनी मां कें यादे जुडी हैं| जिसे उन्होंने अपने तकिए के नीचे संभालकर रखा था| जो कई खो गया है| परंतु लेखक को केवल भूल जाने के कारण वह नहीं मिल रहा| परन्तु वह है कहीं न कहीं | कारण उसके साथ बहुत सी यादें जुडी हैं| वह नेलकटर पिताजी मां के मरने के पहले दो साल इलाहाबाद से लेकर आए थे| जिसमें  नीले कांच का एक सितार बना था| उसी नेलकटर से उन्होंने मरने के कुछ क्षण पहले मां के नाखुनों को बहुत सुंदर, ताजा और चिकना बनाया|

    वह दिन लेखक आज वही याद है| सावन का महिना था सावन में घास और वनस्पतियों के हरे रंग में हल्का सा अंधेरा घुला होता है| हवा भारी और तरल होती है| बाहर रात में ठंड रहती  है| इस महीने में रात की बारिश की अपनी एक गंभीर आवाज होती है|

      इसी महीने में राखी, कलजैया, नागपंचमी, हरियरी अमावस्या आदि त्योहार होते हैं| इसी महीने में मां को बंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल से घर लाया गया था| उस वक्त लेखक की उम्र बिल्कुल नौ बरस की थी|

    मां दक्षिण के ओर के कमरे में रहती थी| अभी वह पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी| खाने के साथ उसे सांस लेने के लिए भी नली लगाई गयी थी| इसलिये सब मां के यंत्र जैसे आवाज में पुरानी आवाज खोजने के प्रयास करते थे|

      लेखक हमेशा उनकी उपस्थिति बने रहे चाहते थे| उस दिन मां में उन्हें बुलाया और अपने हाथ आगे किए| लेखक समझ गये मां क्या चाहती है| वह तुरंत नेलकटर लेकर आए|

और जब मां का हाथ हाथ में लिया, तब उन्हें महसूस हुआ कि यह कितना कमजोर और हार का क्षण होता है| तब मां कुछ कहना चाह रही थी पर लेखक उसे रोक देते हैं| परंतु लेखक ने उसके बाद अपने मां की आवाज नहीं सूनी, कारण उस दिन के अगले सुबह औरतों के विलाप से पता चला की मां रात में नींद में ही खत्म हो गयीं|

      भले ही मां चली गयी है, फिर भी आज भी वह लेखक के एहसासों में जिंदा है|




                    8) दाग दिया सच - रमणिका गुप्ता 





    दाग दिया सचरमणिका गुप्ता लिखित कहानी है |इसमें ऐसी प्रेम कहानी है, जो जातीय पागलपन में दाग दी गयी अर्थात जलाई दी गयी| यह कहानी इसी वास्तविकता को चित्रित करती है आज भी समाज जातियता और पुरुषी वर्चस्व का इतना डर है कि जब कोई जातियता को छोड प्रेम करता है, तो उसे यह समाज नष्ट ही करता है|जातियता की  अहम हमेशा मानवता का गला गोटति है| इसी बात को प्रस्तुत कहानी में चित्रित किया है|

दाग दिया सचयह कहानी हेन्देगडा में घटी है| जहां चार सौ घर कुर्मी के, दस घर रविदासों के और पच्चीस घर तूरियों के हैं| यह ऐसी प्रेम कहानी है, “जिसमें कुर्मियों ने एक चमार लडके को कुर्मी लडकी से प्रेम विवाह करने के आरोप में पत्थरों से कूच-कूच कर मार डाला|”

            चमार जाति का महावीर कुर्मी जाति की मालती से प्रेम करता है| मालती भी पढी-लिखी है| महावीर के पिता धोकर और मालती के पिता बुधन को कोई ऐतराज नहीं था| दोनों भी कोयले के डिपों में काम करते है|

महावीर की तासा पार्टी है| उसमें भी कुर्मी जाति के लडके है| परंतु दोनों का प्रेम न उन लडकों को पसंद है, जातपंचायत को ...| जातपंचायत बुधन को बुलवाकर मालती की शादी दूर जंगल में करने के लिए कहते है| इसलिये बुधन ने उसके लिए लडका देखा था| जो बुतरू(बालक) था | पर मल्टी उम्र अब 16-17 साल की थी और उसमें वह पढी-लिखी थी| इसलिए वह चुपचाप महावीर से मिलती है और शादी करने के बारे में कहती|

पहले पहल महावीर डर कर ना कहता है| पर मालती उसके पुरुषार्थ को उकसाती हैं, तब वह भागकर शादी करने के लिए तैयार होता है| दूसरे ही दिन दोनों दस बजे भाग जाते है|

रजरप्पा मौसी के यहां शादी करके दोनों गोला  चले जाते है|

            सांझ होते ही बस्ती में खबर फैल गई| तब धोकर और उसके पूरे परिवार को बुलाया गया और बांधकर रखा | बुधन महतो के परिवार को भी बुलाया गया|

दोनों भाग जाने के कारण उन्हें पांच-पांच हजार रुपये तथा एक-एक क्विंटल चावल दाल जुर्माना भरने के लिए कहा| बुधन ने भर दिये, परंतु धोकर के पास इत्ते रुपये नहीं थे| कुल मिलाकर जैसे-तैसे उसने तीन रुपये जमा किए थे|

            फिर भी सबको बांधकर रखा था और महावीर- मालती का पता पूछ रहे थे| उस वक्त थाने में खबर न पहुंचे इसलिये गांव का थाना चौकीदार रसूल मियां को भी बांधकर रखते है| 

गांव के बडे बुजुर्ग, जिसमें महतवन, सरपंच, मुखिया  बिल्कुल चुपचाप थे| युवा लडके ही बोल रहे थे| अर्जुंन महतो धोकर को धमकाता है, अगर महावीर का पता नहीं बताया तो,पुरा परिवार खत्म होगा, इतनाही नहीं तो धोकर के आठ साल की बच्ची के साथ वे क्या करेंगे इसका पता भी नहीं चलेगा| 13-14 आदमी खोज में जाते है, परंतु खाली हाथ लौट आते है|

गांव के बडे बुजुर्ग, जिसमें महतवन, सरपंच, मुखिया  बिल्कुल चुपचाप थे| युवा लडके ही बोल रहे थे| अर्जुंन महतो धोकर को धमकाता है, अगर महावीर का पता नहीं बताया तो,पुरा परिवार खत्म होगा, इतनाही नहीं तो धोकर के आठ साल की बच्ची के साथ वे क्या करेंगे इसका पता भी नहीं चलेगा| 13-14 आदमी खोज में जाते है, परंतु खाली हाथ लौट आते है|

तब धोकर के छोटी बेटी के साथ ...| तब धोकर छोटा बेटा लक्ष्मण महावीर को खोजकर लायेगा ऐसा कहता है| तब सब महावीर और मालती के पास पहुंचते है| मालती जाने से इन्कार करती है| उस वक्त महावीर भाई भी चूप था| परंतु नकुल महतो उसे शब्द देता है कि तुम्हें कुछ नहीं होगा|

            दोनों पहुंचते ही औरोतों ने गालियां देना शुरू किया| पंचायत बयान लेनी लगी|

महावीर ही मालती को भगाकर ले गया है, ऐसा वे कहते है| तब मालती कहती है कि मैंने ही उसे भागकर जाने के बारे में कहा था| तब अर्जुन महतो लुकाठी लेकर उठा और उसे नंगा कर उसके जांघों में दाग किया है| उसके माता-पिता गिडगिडाते कि उनके बेटी को मत मारो | परंतु मालती बेहोश हो जाती है|

            इतने में एक नौजवान महावीर को खत्म करने के बारे में कहता है|नकुल भी पत्थर लेकर दौडता है|

इतने में अर्जुन बडा-सा पत्थर लेकर पीछे से उसके सिर पर मार देता है| और फिर पत्थरों से उसका चेहरा कुचल दिया जाता है| फिर एक बार हेंदगाडा में दाऊ टू ब्रूटस की कथा घटी| धोकर रो-रोकर कह रहा था जान से मत मारो मेरे बेटे को...|

            पर महावीर को कुचल डाला था| कोई नहीं बोला न चौकीदार, न धोकर, न बुधन | रात भर महावीर की लाश पडी वही पडी रही|जश्न मनाया गया| कुर्मी समाज और औरतें खुश थी| धोकर लाश ले जाने के लिये और कफन लाने के लिए उनके सामने गिडगिडा रहा था|

            तब कुर्मियो में उसे धमकी दी कि अगर थाने में बतायेगा तो मारा जायेगा | तब मनकू तूरी धोकर को कहता है थाने में खबर दे नहीं तो हम तेरे खिलाफ ही बयान देंगे कि तुम्हीं ने ही मारा है, अपने बेटे को|

तब हत्यारों को पकडवाने के पांच लोग जरबा गांव की ओर भागते है| परंतु बीच में ही धोकर बेहोश गिर पडता है|

            थाने दार हरिजन था इसलिये तुरंत एफ.आई. आर. लिखता है| उसने दफना नहीं दी महावीर की लाश | चौथे दिन दुनिया को खबर लगी |

            इसी बीच मालती का  परिवार गांव छोडकर जाता है|

            अत: तीसरे दिन अखबार के रिपोर्टरों को लेकर पहुंचने वाली पहली व्यक्ति लेखिका थी|

उन्हीं के कारण मामला उजागर हुआ और ४५ लोग गिरफ्तार हुए | परंतु इस घटना ने धोकर पागल हो गया| लोग कहते है की धोकर पर महावीर का भूत सवार हो गया है| कारण वह मनुष्य है, कारण मनुष्य पर ही भूत सवार हो सकता है| पर जिन्होंने महावीर की हत्या की वे कुर्मी थे, पर आदमी नहीं थे| वे हिंदू थे पर मनुष्य नहीं थे बस केवल जात थे| वे जानवर भी नहीं थे, कारण जानवरों नहीं थे, कारण जातियता नहीं होती|

 


 

 


 


 





               

 










 

 

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