कांटे कम से कम मत बोओ - रामेश्वर शुक्ल अंचल
'कांटे कम से कम मत बोओ' रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' लिखित कविता हैं| प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि यह कहना चाहते है मनुष्य जीवन की सच्ची शक्ति और मार्गदर्शक मन है। यदि मन को शुद्ध, सकारात्मक और स्थिर रखा जाए, तो व्यक्ति जीवन में सफलता, शांति और संतोष पा सकता है।जीवन का सुख और दुख इस पर ही आधारित है| सकारात्मक मन रखने वाला व्यक्ति कठिनाइयों में भी साहस दिखाता है; नकारात्मक मन वाला व्यक्ति छोटे संकट में भी हारेगा। इसीलिये प्रस्तुत कविता के माध्यम से कवि ने यही बताने का प्रयास किया है कि मन में कांटे मत बोओं | यहां कांटे द्वेष, कटुता, बुरे विचार, छल, कपट आदि नकारत्मक भावनाओं के प्रतिक है| जीवन में ऐसे नकारात्मकता और दुःख की बीज बोने से बचो, क्योंकि वह अंततः खुद आपको भी चुभते हैं। अर्थात ऐसे नकारात्मक भावनाओं से आपको ही कष्ट होता है| इसीलिए जीवन को सकारात्मकता, सजगता और ममता से जीना चाहिए। वह किस प्रकार इसे ही प्रस्तुत कविता में चित्रित किया है | अर्थात सकारत्मक मन का महत्व इस कविता में मिलता है|
कवि कहते हैं कि मानव-मन बहुत कमजोर है, जबकि चेतना अथाह और अगम्य है। इसलिए मन को सुदृढ़ बनाने के लिए हमें जीवन में ममता, निर्मलता और प्रेम का सहारा लेना चाहिए।ममता की छाया में कटुता अपने आप समाप्त हो जाती है। जब मन की ज्वालाएँ यांनी क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष पिघल जाती हैं, तब अज्ञान से बंद आँखें खुल जाती हैं और आंतरिक शांति प्राप्त होती है। निर्मलता और शांति में डूबकर मनुष्य का व्याकुल जीवन सहज और शांत हो जाता है। संकट के समय हमें घबराकर रोना नहीं चाहिए, बल्कि धैर्य और साहस बनाए रखना चाहिए। अंत में कवि एक गहरी शिक्षा देते हैं कि यदि तुम जीवन में फूल यानी सद्भावना प्रेम अच्छाई नहीं बो सकते, तो कम से कम कांटे द्वेष, कटुता, दुख को मत बोओ। जिससे आपको ही कष्ट होनेवाला है|
अंत में भी कवि फिर से यह शिक्षा देते हैं यदि आप अपने विश्वासों पर आगे नहीं बढ़ सकते, तो केवल साँसें भरने का बहाना मत करो; और यदि फूल (सद्भावना, प्रेम) नहीं बो सकते, तो कम से कम कांटे (द्वेष, कटुता, दुख) मत बोओ।
इस प्रकार कवि ने जीवन को सजग, निर्मल और सकारात्मक दृष्टि से जीने की शिक्षा दी हैं। इसके साथ जीवन में प्रेम, ममता और विश्वास बनाए रखें। संकट और कठिनाइयों में धैर्य और साहस बनाए रखें। दिखावे या शोर से जीवन नहीं सुधरता, कर्म और संकल्प से सुधरता है। इसके यदि अच्छाई नहीं कर सकते, तो कम से कम बुराई न फैलाएँ। जिसके लिए मन की कटुता और क्रोध को मिटाएं।यह संदेश कवि ने दिया है
कांटे कम से कम मत बोओ - रामेश्वर शुक्ल अंचल
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ।
है अगम चेतना की घाटी, कमज़ोर बड़ा मानव का मन,
ममता की शीतल छाया में, होता कटुता का स्वयं शमन।
ज्वालाएँ जब घुल जाती हैं, खुल-खुल जाते हैं मुँदे नयन,
होकर निर्मलता में प्रशांत बहता प्राणों का क्षुब्ध पवन।
संकट में यदि मुस्का न सको, भय से कातर हो मत रोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ।
हर सपने पर विश्वास करो, लो लगा चाँदनी का चंदन,
मत याद करो, मत सोचो, ज्वाला में कैसे बीता जीवन।
इस दुनिया की है रीत यही - सहता है तन, बहता है मन,
सुख की अभिमानी मदिरा में, जो जाग सका वह है चेतन।
इसमें तुम जाग नहीं सकते, तो सेज बिछाकर मत सोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ।
पग - पग पर शोर मचाने से, मन में संकल्प नहीं जगता,
अनसुना - अचीन्हा करने से, संकट का वेग नहीं थमता।
संशय के सूक्ष्म कुहासों में, विश्वास नहीं क्षण भर रमता,
बादल के घेरों में भी तो, जयघोष न मारुत का थमता।
यदि बढ़ न सको विश्वासों पर, साँसों के मुर्दे मत ढ़ोओ।
यदि फूल नहीं बो सकते तो, काँटे कम से कम मत बोओ
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