युनिट 1
एक टोकरी भर मिट्टी
माधवराव सप्रे जी का सामान्य परिचय :-
1) जीवन परिचय
माधवराव सप्रे जी का जन्म 19 जून, 1871 में मध्य प्रदेश के जिला दमोह गांव पथरिया में हुआ| पिता का नाम कोंडोपंत और माता का नाम लक्ष्मीबाई है| इसवी सन 1887 में उन्होंने बिलासपुर से मेडिकल परीक्षा उत्तीर्ण की और जिससे उन्हें ₹7 की छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी| 1889 में उनका पहला विवाह रायपुर के लक्ष्मण राव शेवड़े, जो डिप्टी कलेक्टर थे उनकी कन्या से हुआ था| रायपुर से ही उन्होंने इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की, जिससे उन्हें ₹10 मासिक छात्रवृत्ति प्राप्त होती थी| जबलपुर शासकीय महाविद्यालय को छोड़कर ग्वालियर के विक्टोरिया महाविद्यालय में एफ. ए . प्रवेश लिया| इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एफ. ए. परीक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण की हैं और उसके बाद उनकी प्रथम पत्नी का निधन हुआ| नागपुर के हिस्लाप कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन किया| कोलकाता विश्वविद्यालय से बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण होते ही जनवरी में दूसरा विवाह किया| बिलासपुर जिला पेंड्रा में राजकुमार के शिक्षक नियुक्त हुए| जनवरी में पेंड्रा से 'छत्तीसगढ़ मित्र' नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया, जो 1902 में बंद हो गया| नागपुर में 'हिंदी ग्रंथ प्रकाशन मंडल' की स्थापना की और नागपुर से ही 'हिंदी ग्रंथ माला मासिक पत्रिका' का प्रकाशन आरंभ किया| 13 अप्रैल को नागपुर से हिंदी के साप्ताहिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया| 1908 को आईपीसी की धारा 124 के अंतर्गत गिरफ्तार हुए और कुछ माह के पश्चात उनकी रिहाई हो गई| 8 जनवरी, 1911 को रायपुर में जानकी देवी महाविद्यालय पाठशाला की स्थापना की| 14 जुलाई, 1911 को उनकी दूसरी पत्नी का निधन हो गया| 1916 को लंबे अंतराल के पश्चात प्रथम बार सार्वजनिक रूप से हिंदी साहित्य सम्मेलन जबलपुर में उपस्थित हुए थे| इसके साथ उन्होंने रायपुर में 'राष्ट्रीय विद्यालय एवं अनाथालय' की स्थापना की |अखिल भारतीय हिंदी साहित्य देहरादून के 15 वे अधिवेशन के सभापति रह चुके हैं| उनका देहावसान 23 अप्रैल, 1926 रायपुर में हुआ|
2) साहित्यिक परिचय :-
1) निबंध संग्रह -
1)माधव सप्रे के निबंध - सं. देवीप्रसाद वर्मा
2) सप्रे निबंधावली - सं. बच्चू जांजगीरी
3) माधव सप्रे इतिहास चिंतन - सं. देवीप्रसाद वर्मा
4) माधव सप्रे चुनी हुई रचनाएं - सं. देवीप्रसाद वर्मा
5) जीवन संग्राम में विजय प्राप्ति के कुछ उपाय - सं. डॉ. अशोक सप्रे
6) माधव सप्रे के 'हिंदी ग्रंथमाला' के निबंध -सं. डॉ. अशोक सप्रे
2) कहानियां :- केवल छह कहानियां लिखी हैं, जिसके नाम इसप्रकार -
1) सुभाषित रत्न 1 - 'छत्तीसगढ मित्र' जनवरी १९००
2) सुभाषित रत्न 1 - 'छत्तीसगढ मित्र' फरवरी १९००
3) एक पथिक का स्वप्न - 'छत्तीसगढ मित्र' मार्च- अप्रैल १९००
4) सम्मान किसे कहते है - 'छत्तीसगढ मित्र' मार्च- अप्रैल १९००
5) आजम -'छत्तीसगढ मित्र' जून १९००
6) एक टोकरी भर मिट्टी - 'छत्तीसगढ मित्र' अप्रैल १९०१
3) अनुवादित ग्रंथ -
1) हिंदी दासबोध
2) भारतीय युद्ध - श्री दामोदर गोपाल लिमये मराठी पुस्तक
3) शालापयोगी भारतवर्ष - राव साहेब गोविंद सखाराम देसाई
4) रामकृष्ण वाक्यसुधा - स्वामी रामकृष्ण परमहंस की उक्तियों का अनुवाद
5) एकनाथ चरित्र एव श्रीराम चरित्र
6) आत्मविद्या - पं. हरी गणेश गोडबोले
7) गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र - लो. टिळक
8) भारत वर्ष में सरकारी नौकरियां - पं.हृदयनाथ कुंजरू की अंग्रेजी पुस्तक
9) महाभारत मीमांसा राय बहादुर चिंतामणी विनायक वैद्य की मराठी किताब
10) दत्त भार्गव संवाद - पं. बाळकृष्ण भाऊ जोशी
एक टोकरी भर मिट्टी कहानी का कथ्य
कहानी का उद्देश्य
1) 'घमंडी का सर नीचा' इस कहावत के अनुसार अहंकारी व्यक्ति को अंततः नीचा देखना पड़ता है इसका एहसास कराना, प्रस्तुत कहानी का उद्देश्य हैं|
2) एक विधवा स्त्री के माध्यम से जमीनदारों द्वारा गरीब जनता पर होनेवाले अन्याय को दर्शना|
3) विधवा स्त्री की दुर्दशा को प्रस्तुत करना|
4) मानवी संवेदना को जागृत करना|
हिंदी जगत में इस कहानी की सर्वाधिक चर्चा हुई है| आज कतिपय समीक्षक इसे हिंदी की प्रथम मौलिक का कहानी भी मानते हैं| मानवी संवेदना की ऐसी लघु कथा हिंदी में दुर्लभ है| इसमें एक अनाथ विधवा की दरिद्रता, विवशता, और सामंत शाही युग के प्रतीक जमींदार की क्रूरता, शोषण वृत्ति और उसके हृदय परिवर्तन की घटना का चित्रण किया गया है|
प्रस्तुत कहानी में विधवा स्त्री के माध्यम से जमीनदारों द्वारा गरीब पर होनेवाले अन्याय को दर्शाया गया हैं| विधवा स्त्री की दयनीय अवस्था और नियति द्वारा उसके पारिवारिक सदस्यों का निधन होना उसकी दुर्दशा व्यक्त करता हैं|
इस कहानी में जिस झोपड़ी का उल्लेख है वह वास्तव में एक चरित्र की तरह है, जिसके चारों और कार्य व्यापार घूमते हैं| कहानी की कथावस्तु सामंती व्यवस्था से प्रारंभ होती है किसी जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ की विधवा की झोपड़ी थी| जमींदार ने अपने महल का विस्तार करने के लिए झोपड़ी पर अपना कब्जा करने का प्रयास किया|उसने यहां तक किया कि वकीलों की थैली गरम कर उनके माध्यम से झोपडी पर कब्जा किया| विधवा बेचारी अकेली थी| उसका पति और इकलौता बेटा उसी झोपडी में ही मर गया था| पतोहू भी पांच बरस की कन्या को छोडकर चल बसी थी| झोपडी छुटने के बाद विधवा पास के गांव में जाकर रहने लगी, परंतु झोपड़ी छूटने के दुख में विधवा की पोती ने खाना पीना बंद कर दिया| विधवा ने सोचा कि उस झोपड़ी की एक टोकरी भर मिट्टी से यदि चुल्हा बनाकर रोटी बनाऊंगी तो शायद पोती रोटी खाने लगेगी |
तब विधवा एक टोकरी भर मिट्टी लेने के लिए अपनी झोपड़ी में पहुंची| तब जमींदार पहले ही वहां मौजूद थे| बहुत मिन्नतें करने बाद जमीनदार एक टोकरी मिट्टी देने के लिए राजी हो गया| विधवा ने झोपडी से एक टोकरी भर मिट्टी भर ली और जमींदार से टोकरी उठाने की मदद मांगी| पहले पहल जमीनदार नौकर को बुलाने के बारे में सोचता है, परंतु विधवा उन्ही ही टोकरी उठाने के लिए कहती है| जमींदार ने टोकरी उठाने का प्रयास किया किंतु टोखरी का बोझ इतना अधिक था कि जमींदार द्वारा पूरी ताकत लगाने के बाद भी एक इंच भी ऊपर नहीं होती| तब विधवा ने कहा, "महाराज नाराज न हो, आपसे तो एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती है और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियां मिट्टी पड़ी है उसका भार आप जन्म भर क्योंकर उठा सकेंगे? आप इस बात का विचार कीजिए|"
सुनकर जमींदार की आंखें भर आयी| उन्हें यह महसूस हुआ कि मैं धन -मद से गर्वित अपने कर्तव्य को भूल रहा था| इस विधवा की इतनी-सी सुख की अपेक्षा है, उसे भी मैं छिन रहां हूं| अत: जमीनदार को अपने कर्म पर पश्चाताप होता है और वह लज्जित होकर विधवा से क्षमा मांगता है| अंत में वह विधवा की झोपडी उसे वापस देते है|
इसप्रकर प्रस्तुत कहानी एक आदर्शात्मक विचारोंवाली कहानी हैं| स्पष्ट है कि इस कहानी में सामंती व्यवस्था प्राचीनता के बोध का प्रतीक है जो जमींदार का रूप है परिवर्तन आधुनिक प्रगतिशीलता का प्रतीक है|साथ-ही-साथ यह संदेश दिया है कि 'अहंकारी व्यक्ति का सर हमेशा नीचा होता है|'
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