देश प्रेम -दुष्यंत कुमार
'देश-प्रेम' दुष्यंत कुमार लिखित कविता है| जिसमें कवि ने नकली अर्थात दिखावटी देशप्रेम तथा राष्ट्र प्रेम पर व्यंग्य किया है| राष्ट्र प्रेम केवल भाषण, प्रदर्शन या आँसू बहाने तक सीमित नहीं होना चाहिए। यह तभी असली बनता है जब वह अंदर से महसूस किया जाए, सच्चा हो, और भावनाओं से परिपूर्ण हो - न कि सामाजिक दिखावे से।अत: यह दिखावे का देश प्रेम का रूप कैसे होता है इसका परिचय कवि ने 'देश प्रेम कविता में दिया है| वह इस प्रकार -
कवि कहते हैं की लोग केवल देशभक्ति और युद्ध की बातें करते है, परंतु जब प्रत्यक्ष युद्ध में भाग लेकर देश प्रेम व्यक्त करने की बात आती है तब कोई साथ नहीं देता| लोग केवल शोर मचाते हैं, बड़े-बड़े नारे लगाते हैं| कवि ऐसे देश प्रेम को महसूस ही नहीं कर पाता| ऐसे समय में उससे कुछ बोला भी नहीं जाता| या कवि अपने आपको व्यक्त भी नहीं कर पाता|
कवि आगे लिखता है जब भाषणों और प्रदर्शनकारियों के भीड में जब लोग घंटों राष्ट्र के नाम पर आंसू बहाते है अर्थात अपनी देश प्रेम की भावना को व्यक्त करते है तब ऐसे दिखावटी भावना से उनके आंखों में आंसू नहीं आते | अर्थात उनके मन में इस दिखावटी राष्ट्र प्रेम से कोई भाव नहीं आता| कवि ऐसे भीड़ में खुद को शामिल कर नहीं पाता, तब वह स्वयं को मूर्ख, या कायर व गद्दार महसूस करने लगता है।
परंतु कवि आगे कहता है ऐसे अवसरवादी देश प्रेम से मेरे मन में कोई भाव नहीं उमडता| क्योंकि यह देश प्रेम केवल संकट या अवसर आते ही समाचार-पत्रों में दिखावा बन कर प्रकट होता है, लेकिन समय के साथ लुप्त हो जाता है। अत: ऐसा माचीस की तीली वाला देश प्रेम कवि को सुनायी ही नहीं पडता|
दुष्यंत कुमार इस कविता में मामूली, दिखावटी देशप्रेम का तीखा विरोध करते हैं। वे इसे व्यावहारिक भावुकता के स्थान पर नकली, अवसरवादी और शोर-भरे प्रदर्शन के रूप में देखते हैं। उनका सवाल यह होता है कि देशप्रेम केवल नारे लगाने, भाषण करने और भावुक दृश्य दिखाने तक सीमित है? जहाँ सच्ची भावनाएं नहीं होती, वहाँ यह प्रेम सिर्फ दिखावटी बन का रहता है। वे यह भी इंगित करते हैं कि इस रूप में देशप्रेम में कोई सत्य या आंच नहीं होती—इसलिए यह उनका आभासी प्रेम उन्हें दर्दनाक रूप से मूर्ख और असहज महसूस कराता है।
कोई नहीं देता साथ,
सभी लोग युद्ध और देश प्रेम की बातें करते हैं|
बडे-बडे नारे लगाते है|
मुझसे बोला भी नहीं जाता |
जब लोग घंटो राष्ट्र के नाम पर आंसू बहाते हैं
मेरी आंख में एक बूंद पानी नहीं आता|
अक्सर ऐसा होता है कि मातृभूमि पर मरने के लिए
भाषणों से भरी सभाओं
और प्रदर्शन की भारी भीडों में
लगता है कि मैं ही एक मूर्ख ...
कायर-गद्दार!
मुझे ही सुनायी नहीं पडता हैदेश-प्रेम,
जो संकट आते ही
समाचार-पत्रों में डोंडी पिटवाकर
कहलाया जाता है-
बार-बार
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