B.A. I Sem I - Paper I - Old Syllabus

 1)   भिक्षुक 


वह आता
दो टूक कलेजे को करता,पछताता
पथ पर आता।

पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने को
मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता —
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।

साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए।
भूख से सूख ओठ जब जाते
दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।
चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए !

ठहरो ! अहो मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।

'भिक्षुक' कविता का आशय 

 'भिक्षुक ' कविता सुर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' लिखित है| जो उनका चर्चित काव्यसंग्रह 'परिमल' से ली है| प्रस्तुत कविता में कवि ने 'भिक्षुक और उसके दो बच्चों के दयनीय अवस्था को चित्रित किया है | एक ओर उसके दयनीय अवस्था को चित्रित किया है, तो दूसरी ओर उसे जीवन में संघर्ष का सामना करने का संदेश भी दिया है |

      कारण प्रस्तुत कविता में भिक्षुक एक जीवन से हारे हुए व्यक्ति का प्रतीक है| जैसे वह जीवन से हार गया है और लाचार होकर भीख मांग रहा है| 

    परंतु लेखक ने भिक्षुक को यह संदेश दिया है कि संघर्ष से डटकर सामना करना चाहिए और स्वाभिमान से जीना चाहिए|

        प्रस्तुत कविता में कवि भिखारी को भीख मांगते हुए देख रहें है| जिसकी बिल्कुल दयनीय अवस्था है| उसकी इस अवस्था को लेखन ने यथार्थ शब्दों में व्यक्त किया है| 

        वह बिल्कुल दयाभाव से अर्थात दो टूक कलेजे के कर  लोगों से  भीख मांग रहा है| शायद वह कई दिनों का भूखा है, कारण उसका पेट और पीठ दोनों मिलकर एक हो गये है| अर्थात उसकी बिल्कुल कृशक काया बन गई है| जिसके कारण वह लाठी टेककर चल रहा है| केवल मुठ्ठीभर दाने के लिए वह मजबूर हो गया है और लोगों के सामने मुंह फटी पुरानी झोली फैला रहा है|

     अपनी भूख मिटाने के लिये वह  लोगों के सामने दया याचना की भीख मांग रहा है| परंतु किसके भी मन में दया भाव उत्पन्न नहीं होता, तो पछताकर  आगे पथ पर बढ जाता है|

    भिक्षुक केवल अकेला नहीं तो साथ में दो बच्चें भी हैं| जिनके ओंठ  भूख से तो बिल्कुल सूख गये है| इसलिये वह दोनों हाथों से इशारा कर यह बता रहे कि वे कितने भूखे हैं| बाये हाथ से वे अपने पेट को मल रहें है और दहिना दया दृष्टि पाने के लिए आगे बढा रहे है| फिर भी दाता-भाग्यविधाता का उनकी तरफ ध्यान नहीं जाता |  तब वे निराश होते है और उनकी आखों में आंसू बहने लगते| परंतु उनके आंसू देखने वाला कोई नहीं, इसलिये वे आंसूओं के घुंट पीकर रह जाते है| अर्थात अपनी वेदना को दबाकर रखते है| कारण उनकी वेदना को समझने वाला कोई नहीं|

        इसलिये अपनी भूख को मिटाने के लिए वह रास्तें पडी जूठी पत्तले चाटने की लिए मजबूर हो जाते है| परंतु वह भी उनके नशीब में नहीं| कारण पहले से वहां कुत्ते जमा हो गये हैं| इसप्रकार एक मनुष्य होकर  भी भिक्षुक कुत्ते से भी बदत्तर जिंदगी जीने के लिये मजबूर है|

        इसलिये कवि के मन में उनके प्रति संवेदना जागृत होती है और वे भिक्षुक को कहते है कि रुको इतना लाचार होने को आवश्यकता नहीं| मेरे हृदय में तुम्हारे लिए अमृत अर्थात प्यार है| परंतु मेरी एक शर्त है कि तुम अभिमन्यु के समान संकट/संघर्ष  का सामना करो| अर्थात जब तुम गरीबी से डटकर सामना करोगे तो निश्चित यह संकट दूर होगा| अगर तुम ऐसा कर सकोगे तो तुम्हारें दुख-दर्द को मैं अपने हृदय में समेट लूंगा| 

        इसप्रकार प्रस्तुत कविता में लेखक ने भिक्षुक की दयनीय अवस्था को चित्रित कर मानवता को जगाने का प्रयास किया है और साथ में प्रत्येक इन्सान को जीवन में आनेवाले संकट का सामना भी करना चाहिए है, यह संदेश दिया है| तब उनकी मदद के लिये लेखक के जैसे संवेदनशील व्यक्ति हमेशा आते हैं|




2) ‘बालिका का परिचय’ कविता का आशय(मुकुल काव्य संग्रह में संकलित)

 

बालिका का परिचय कविता में कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान जी ने बालिका के गुणों का सजीव चित्रण किया हैं| कवयित्री के अनुसार बेटी ही उनके गोदी की शोभा है और सुहाग की लालिमा होती है| भिखारिन को मिली शाही शान है तथा मनोकामना मतवाली है| कवयित्री के लिए उनकी बेटी ही अंधेरे में दीपक की ज्योति के समान है और काले बादलों के बीच उजाले के समान है|

रातभर कमल में कैद भंवर के लिए उषा मुक्ति का आनंद लेकर आती है और पतझड के बाद आनेवाली हरियाली नव  चेतना लेकर आती है, वैसे ही बेटी जीवन में आनंद लेकर आती है|

       तपस्वी के समान मगन रहनेवाली और सच्चे मन से प्यार करने वाली बेटी नीरस दिल में अमृत धारा बनकर आती है और नष्ट नयनों की जीवन ज्योति  बन जाती है |

     उसका मचलना, किलकना और हंसता हुआ अभिनय आदि क्रीडापूर्ण क्रियाएं देखकर कवयित्री को अपना बचपन याद आता है|  इसलिये कवयित्री के लिए उनकी बेटी ही मंदिर, मस्जिद, काबा और काशी है| अर्थात लोगों को इन स्थानों में जाकर जो आनंद और शांति की अनुभूति होती है, वही अनुभूति उन्हें अपनी बेटी के साथ रहकर मिलती  हैंबेटी ही उनके लिए  की ध्यान, धारणा और जप-तप बन गई है| बेटी में ही उन्हें घटघट वासी के दर्शन होते हैं अर्थात भगवान के दर्शन होते है|

ऐसी बेटियां अगर आपके आंगन  में आती है तो, कृष्णचंद्र की क्रीडाओं को अपने आंगन  में देखो और माता कौसल्या के मातृमोद को अपने मन में महसूस करों, ऐसा कवयित्री कहती है|  इसलिये कवयित्री कहती है कि प्रभु ईसा में जो क्षमा शिलता है, नबी मुहम्मद के पास जो विश्वास है और गौतम बुद्ध जी के पास जीव दया का भाव है, उन्हें बेटी में देखो |

       बेटी के इतने सारे गुणों को चित्रित करने के बाद कवयित्री अंत में लिखती है और मैं क्या बेटी का परिचय दूं | बेटी के गुणों को वही जान सकता है, जिसका दिल मां का होता हैं|

 सुभद्रा कुमारी चौहान का परिचय 

https://youtu.be/k4NyAW9G8N8

 


बालिका का परिचय कविता का आशय 

https://youtu.be/8EBBD_h_hyU


https://youtu.be/khXRPIZR9SA



3) 'वसंत आ गया' कविता का आशय  -अज्ञेय 

वसंत आ गया’ अज्ञेय  द्वारा लिखित एक जागरण गीत है जो बावरा अहेरी’ काव्य संकलन में संकलित है इस कविता के माध्यम से कवि ने पतझड़ के बाद भी वसंत ऋतु पूरी चेतना के साथ आता है| और प्रकृति को हरी-भरी तथा फूल-फलों से शोभायमान बनाता है| अत: प्रकृति भी पतझड़ के बाद वसंत के रूप में नवजीवन लेकर जीने लगती हैउसी प्रकार इंसान को भी अपने जीवन के पतझड के बाद अपनी अकर्मण्यता और आलस्य को त्याग कर जीवन जीना चाहिए यह संदेश वसंत आ गया इस कविता के माध्यम से कवि ने निम्न रूप में दिया है-

 वसंत ऋतु के आगमन पर सृष्टि के कण-कण में नव चेतना का एहसास होता है| वसंत ऋतु में मलयज अर्थात हवा का झोंका बुलाता है| वह अपने खेलते स्पर्श से हमारे रोम-रोम को कंपित करता है और हमें  जागृत होने का संदेश देता है और कहता है जागो- जागो वसंत आ गया है |

वसंत आने के कारण पीपल के सूखे खाल में भी जान आती है अर्थात पीपल के सूखे खाल में स्निग्धता आती है| शिरीष के फूलों ने जैसे रेशम से वेणी बांध ली है और अपना सौंदर्य बिखेर दिया हैसाथ ही ऐसे माहौल में नीम के बौर में भी मिठास छा जाती है| इसे देखकर कचनार की कली भी हंस उठती है| वन में पलाश के फूल खिल उठे है, जिससे लगता है कि पलाश के फूलों की आरती सजाकर यह वनस्थली नववधू बन गयी है|इसीलिए ऐसे अप्रतिम सौंदर्य को देखकर कवि कहता है कि  जागो वसंत आ गया है| ऐसे प्रसन्न मय वातावरण को देख आकाश में स्नेह भरे बदल छा जाते है|

वसंत के चैतन्य मय वातावरण को देखकर देह में लहू की धार पुकार उठती है और आलसी मन में भी एक चेतना जागृत होती है| तब मन में भी दूर की अर्थात भविष्य की पुकार सुनाई देती है| तब सभी दिशाएं गूंज उठती है और मन में एक ही भी स्वर बार-बार गूंज उठता है,  हे सखी, हे बंधु जाग उठो और अपने इस जीवन से  प्यार करो| जब तक इस शरीर में ताकद है अर्थात जब तक यौवन है तब तक परिपूर्ण रूप में जीवन जीओ | कारण यौवन में ही यह करने के ताकद होती है| इसलिये प्यार ही है यौवन, यौवन में प्यार|

 अतः यह प्रकृति यही बताने का प्रयास करती है कि मनुष्य को हर वक्त प्रसन्न मन से जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए| पतझड़ के बाद वसंत की तरह खिना चाहिए और अपने जीवन से प्यार करना चाहिए| यह वसंत ऋतु अपने चेतना से मनुष्य को बार-बार पुकार कर कह रहा है जागो वसंत आ गया|

        वसंत ऋतु की यह मिठास मधुदूत अर्थात आम में समाति है| जैसे यह मधुदूत भी मिठास भरा गीत गाने लगा है| ऐसी मिठास को भी मनुष्य महसूस करें| यह संदेश लेकर वसंत आता है और कहता है कि जागो सखी वसंत आ गया |

इस प्रकार प्रस्तुत कविता में  कवि ने प्रकृति के माध्यम से मनुष्य को किस प्रकार चेतना में जीवन जीना चाहिए यह बताने का प्रयास किया है| पतझड़ के बाद भी प्रकृति पुनश्च जी उठती है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने जीवन में चाहे जितने भी समस्याएं आएचाहे जितनी भी संकट आए, फिर भी उसे छोड़कर पुनश्च वसंत की तरह जी उठना है कारण वसंत हमेशा नवचेतना का गीत लेकर ही जीवन में आता हैइसलिये कवि कहता है कि जागो वसंत आया है|






4) तेरी खोपडी के अंदर - नागार्जुन 








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1) रजिया - रामवृक्ष बेनीपुरी 



रजिया रामवृक्ष बेनीपुरी लिखित रेखाचित्र है|वह लेखक के गांव की चुडीहारिनी हैलेखक उसे बचपन से देखते आए हैउसके चेहरे में अजीब किस्म का आकर्षण था जिसके परिणाम स्वरूप लेखक और रजिया के बीच अलगपन सा  रिश्ता बन गया थाउसी अनुभवों को चित्रित करते वक्त लेखन ने रजिया के व्यक्तित्व का चित्रण प्रस्तुत रेखाचित्र में करते वक्त चुडीहारिनी  की समस्याओं को चित्रित किया हैं|

रजिया की रूपरेखा-

       रजिया हमेशा कानों में चांदी की बालियांगले में चांदी का हैकलहाथों में चांदी के कंगन  और पैरों में चांदी की गोडाई पहनती थीबुटेदार कमीज पर काली साडी पहनी रहतीगोरे चेहरे पर काले बाल हमेशा लटकते रहतेउसका यह साज-शृंगार लेखक को आकर्षित करताअत: बचपन में वे कभी-कभी उसका पिछा तक करते|तब रजिया की मां मजाक में कहती, “ बबुआ जीरजिया से ब्याह कीजिएगा|” रजिया के आकर्षक रूपरेखा के कारण ही रजिया के साथ उनका एक अलग इन्सानियत का रिश्ता जुडा हुआ था| 

रजिया से मुलाकात 

       रजिया को लेखक ने पहली बार उसके मां के साथ देखा थाउसकी अलग रूपरेखा के कारण लेखक को उसने खींच लिया थावैसे तो लेखक के गांव में लडकियों की कमी नहीं थीपर उन सबसे उन्हें रजिया अलग लगीमूलत: लेखक अपने घर से बाहर अधिक नहीं निकलते थेमां न होने की वजह से मौसी ने उनका पालन-पोषण किया थाएक बार वे मेले में गुम हो गये थेइसलिये घर के लोग उन्हें अधिक बाहर नहीं जाने देते थेजब लेखक ने उसे पहली बार देखा तब वह अपनी मां के साथ चूडियां  पहनाने के लिये उनके आंगण में आई थी|

उस वक्त वह कुछ नहीं बोली थीकेवल मां की छबी के रूप में उनके सामने आई थीउसका आकर्षक व्यक्तित्व देख लेखक उसका पिछा किए बगैर नहीं रह सके|

       आगे लेखक पढाई के लिये शहर चले गये| छुट्टीयों के गांव आते थेतब रजिया के बारे में जरूर पूछतेतब उन्हें पता चला कि रजिया पढ-लिख नहीं सकी पर चूडियां पहनाने की कला उसने अच्छी तरह सिख ली हैकारण गांव की औरतें उससे ही चूडियां पहनना चाहती है|   

जैसे-जैसे रजिया बडी होती गयी वैसे-वैसे उसमें प्रगल्भता आ गयीजो रजिया लेखक से बात करते वक्त शरमाती वही रजिया बडी होने के बाद बेझिझक लेखक के साथ बातें करने लगी थी|

       किशोरी उम्र में तो उसका व्यक्तित्व और आकर्षक हो गया थागोरे-गोरे गालनीली आंखेलेखक को सजल से लगतेलेखक लिखते है कि रजिया चूडिहारिनी थीऔर यह पेशा चूडियों के साथ चूडिहारिनी के बनाव शृंगाररूप रंगनाजों- अदा भी खोजता हैं|” यह सब रजिया में था जो उसे उसकी मां से मिला था|

रजिया की शादी 

       रजिया ने इसी गांव के लडके हसन के साथ प्रेम विवाह किया थावह रजिया से बहुत प्यार करता थासाये की तरह उसके साथ रहताऐसे ही मालिक अपनी रानी के साथ रहेंवह कहती| मालिक वह लेखक को कहती थी|

       परंतु रजिया को अपने जीवन में संघर्ष करना पड रहा थाकारण बदलते समाज में रजिया जैसे खानदानी पेशेवालों को बडी दिक्कत हो रही हैकारण यह व्यवसाय हिंदू भी कर रहें हैंइसलिये आज अनेक ऐसे गांव हैजहां हिंदू- मुसलमानों के हाथ से सौदा नहीं करते|

इसलिये रजिया जमाने के साथ चलने के लिये फैशनेबल चूडियां खरीदने के लिये पटना   जाती हैंजहां लेखक किसी अखबार में काम करते हैरजिया उन्हें मिलने जाती हैतब लेखक थोडा हिचकिचाते हैपरंतु रजिया उसी हंसी-मजाक के साथ लेखक दे साथ बातें करती हैंउनकी पत्नी के लिये चूडियां देती हैंउसकी हंसी के पीछे की वेदना तब लेखक महसूस करते हैइस वक्त वही उसका पति उसके साथ था| 

आगे जब लेखक नेता बन जाते हैतब गांव में चुनाव के चक्कर में पहुंच जाते हैंतब उन्हें रजिया की याद आतीपर वह लोगों से पूछ नहीं सकतेइतने में बिल्कुल रजिया के जैसे दिखनेवाली छोटी लडकी वहां आती हैकुछ पल के लिये लेखक को लगा जैसे रजिया ही आई हैतब गांव वाले बताते है कि यह रजिया की पोती हैवह मालिक को अपने घर चलने के लिये कहती हैगांव वाले कहते है,  जाइएरजिया आपकी बहुत तारीफ करती हैअब वह बहुत बिमार हैबचेगी भी या नहींयह पता नहीं |

यह सून लेखक रजिया के घर पहुंचते है| आज रजिया की भरी-पूरी गृहस्थी थीहसन नहीं थापर तीन हसन पीछे छोड गया थाअर्थात रजिया के तीन बेटे थेबडा बेटा कलकशा में कमता हैमंझला पुश्तैनी पेशे में लगा है और छोटा शहर में पढ रहा हैघर में बहुएं हैंबडे बेटे की बेटी अर्थात पोती बिल्कुल रजिया जैसे ही दिखती हैपरंतु आज रजिया बिमार हैउसने कभी नहीं सोचा था हवागाडी पर आनेवाला उसके घर तक आयेगा|   परंतु लेखक उसे मिलने उसके घर पहुंचते हैतब कपडे बदलकर मालिक से मिलने रजिया आंगण में पहुंचती हैतब वह बिल्कुल दुबली-पतली हो गयी थी और उसका चेहरा रुखा-सूखा हो गया थामालिक को सलाम करते वक्त उसके चेहरे की झुरियां कहीं गायब हो जाती हैउसका चेहरा बिजली के बल्ब की तरह चमक उठाजैसे वह मालिक को मिलने की चाह लेकर जीती रहीं है|

 

 

 

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