कठपुतली - आ. निशांत केतु
आ. निशांत केतु का परिचय :-
आ. निशांत केतु का मूल नाम चंद्रकिशोर पांडेय है| उनका जन्म 23 मार्च, 1935 को बिहार के वैशाली में हुआ| पिता का नाम - गिरिवरधारी पांडेय, मां का नाम- कंचन देवी| उन्होने पटना विश्वविद्यालय से एम. ए. हिंदी की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया| वे 37 वर्षों तक पटना विश्वविद्यालय में ही हिंदी के प्राध्यापक रहे| सन 1997 में अवकाश ग्रहण करने के पश्चात वे स्थायी रूप से गुरुग्राम गुड़गाँव, हरियाणा में बसे गए |वर्तमान वे सुलभ साहित्य अकादमी, नई दिल्ली के अध्यक्ष और सुलभ इंटरनॅशनल सोशल सर्विस ऑर्गनायझेशन द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका चक्रवाक के संपादक हैं|
‘सन 1921 में नारायणी साहित्य अकादमी’ भारत द्वारा ‘श्रेष्ठ हिंदी साहित्य लेखन सम्मान’ प्रदान किया गया।
अध्यापन- 1960 से पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर हिदी विभाग में टॉप करने के बाद 1 नवंबर, 1960 से 31 जनवरी, 1997 तक पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे|
शास्त्रीय परंपरा के मनीषी विद्वान आ. निशांत केतु संस्कृत, बांगला, तेलगु और अंग्रेजी भाषा के अच्छे जानकार थे| कविता, कहानी, उपन्यास, लघुकथा, समालोचना, निबंध, संस्मरण, कोश, योग एवं अध्यात्म, भाषाविज्ञान, साक्षात्कार इ. विधाओं में उनकी लगभग 150 पुस्तकें प्रकाशित हैं| उन्होंने साहित्य जैसी अनेक महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं एवं स्मारिकाओं का संपादन किया हैं|
सन 2017 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा 'साहित्य भूषण' सम्मान प्राप्त हुआ है |23 मार्च, 2021 को उन्हें श्रेष्ठ हिंदी साहित्य लेखन से उन्हें सम्मानित किया गया हैं|
आचार्य निशांतकेतु जी का साहित्य परिचय:-
1) काव्य:- रेत की उर्वर शिलाएं, समव्यथी, ज्वालामुखी पुरुषवाक
संगतराश, त्वचा पर जो लिखे आखर, जीवेम शरद: शतम, वंदे मातरम|
2) कहानी:- दर्द का दायरा, आखिरी हंसी, माटी टीला, तीसरे आदमी की शिनाख्त, जख्म और चीख, अंध घाटी के टीले,उत्तर शती महा कुंभक| आचार्य निशांतकेतु की 100 कहानियां, आचार्य निशांतकेतु की प्रतिनिधि कहानियां, प्रताड़ित पुरुषों की कहानियां, नारी उत्पीड़न की कहानियां|
3) उपन्यास- योषाग्नि, जिदा जख्म, सागर लहरी|
4) अन्य किताबें:- 100 व्याकरण, भाषा विज्ञान, निबंध, संस्मरण समेत 100 से ज्यादा ग्रंथों की रचना और संपादन उन्होंने की हैं|
प्रश्न:- 1) 'कठपुतली' कविता का आशय लिखिए|
2) 'कठपुतली' कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
3) 'कठपुतली' कविता में स्वतंत्रता से जीने के लिए क्या-क्या सहन करने के लिए कहा हैं ?
'कठपुतली' निशांत केतु लिखित कविता है| प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य यह संदेश दिया है कि किसी की कठपुतली बनकर न रहें| अर्थात किसी का गुलाम बनकर न रहना| अपनी ताकत को पहचाने|कारण प्रत्येक इन्सान अपने इच्छा, कर्म और ज्ञान का स्वामी होता हैं इसीलिए उसे 'कठपुतली' की तरह पारतंत्र के नहीं जीना तो स्वतंत्रता से स्वाभिमान से और अपने अस्तित्व के साथ जीना है| इसके लिए वह जो चाहे सहन करें| कवि क्या-क्या-क्या सहन करने के लिए कहता है, उसकी जानकारी इसप्रकार -
1) मनुष्य में विश्वास जगाना:-
कविता के प्रारंभ में कविने मनुष्य में विश्वास जगाने का प्रयास किया है| कहता कि तुम कठपुतली नहीं हो, तुम खुद चलना सिखो| कोई ऊपर बैठ आपको अदृश्य धागों में बांध आपको नचाना चाहता है,पर आपने उसे देखा है| नहीं, तो डरो नहीं तो काटों इन डोर को कारण तुम अनेक हो| अर्थात किसी के पारतंत्र में रहने के बजाय अपनी ताकद को पहचान कर स्वतंत्रता में रहें|
2) स्वतंत्रता से लाभ:-स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए इन्सान को पहले चुपती हुई धूप और तपती हुई रेत पर बाहर निकालना होगा| इससे वह मरेगा नहीं, तो उसे केवल लू अर्थात गर्म हवा लगेगी| बाद में बारीश भी होगी| उस बारीश में खूब भिगो| केवल सर्दी होगी, मरोगे नहीं|आगे तूफान आएगा, उथल-पुतल मचेगी इसमें भी तुम मरोगे नहीं तो केवल चोट लगेगी| पर यह सब सहन करने की ताकद से ही तुम्हारा तन-मन इतना मजबूत होगा कि तुम पहचानों कि कौन तुन्हें नचाता था और खुद बैठकर खाता था| तब तुम्हें स्वतंत्रता का महत्व पता चलेगा|
3) कठपुतली बनकर न जिना:-
कवि कहता हैं कि तुम सदियों से भूखे हो पर बेजान नहीं, तुम बेजुबान नहीं हो, फर्क इतना है कि आज तक तुम बोले नहीं पर बोलो कारण तुम शब्दों के प्रजापति हो अर्थात शब्दों के निर्माता हो| इसके साथ अपनी इच्छा, कर्म और ज्ञान के स्वामी तुम ही हो| इसीलिए कठपुतली बनकर न जीना| अपनी स्वंतत्र अस्तित्व के साथ जीना|
इसप्रकार प्रस्तुत कविता में कवि ने किसी की कठपुतली बनकर हम न जीए, यह संदेश दिया है|
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🔰कठपुतली कविता🔰
कठपुतली नहीं हो तुम प्यारे|
खुद चलना सीखो अब|
कुछ अदृश्य धागों में बांधकर
ऊपर बैठ
सदियों से जो तुम्हें नचाता है,
देख नहीं पाए उसे अब तक क्यों?
काटों इन डोरों को|
डरो नहीं| तुम तो अनेक हो|
बाहर निकल आओ अब
चुपती हुई धूप में,
तपती हुई रेत पर|
मरोगे नहीं| सिर्फ लू लग सकती है|
बारिश खूब होगी फिर
भींगो खुद खुले में खडे होकर|
मरोगे नहीं| सिर्फ सर्दी लग सकती है|
आएगा तूफान| उथल-पुथल मचेगी|
मरोगे नहीं| सिर्फ चोट लग सकती है|
यही सिलसिला तुम्हें
ताकत दे जाएगा|
तुम्हारा तन फिर मन
इतना मजबूत हो जाएगा
कि फिर तुम पहचानोगे,
कौन था वह एक,
जो तुम्हें अब-तक नचाता था|
खुद बैठ खाता था|
तुम सदियों से भूखे हो
लेकिन बेजान भी नहीं हो|
तुमने कभी बोलकर देखा नहीं,
बेजुबान नहीं हो| बोलो अब|
शब्दों के स्वयं तुम प्रजापति|
अपनी सब इच्छा, कर्म, ज्ञान के
स्वामी हो|
तुम प्यारे कठपुतली नहीं हो|
उसे कठपुतली की तरह नचानेवाले उच्चवर्ग का भी पर्दाफाश करती है। बहुविकल्पी प्रश्न :
1) आचार्य निशांतकेत का मूल नाम चंद्रकिशोर पांडेय है।
2) कठपुतली कविता में आम आदमी का चित्रण हुआ है।
3) कवि आम आदमी को तुम कठपुतली नहीं हो कहता है।
4) कठपुतली को नचानेवाला उच्च वर्ग का प्रतीक है।
5) कठपुतली कविता दो वर्ग के संघर्ष को अभिव्यक्त करती है।
ससंदर्भ स्पष्टीकरण :
"कौन था वह एक
जो तुम्हें अब तक नचाता था.
खुद बैठ खाता था।
तुम सदियों से भूखे हो
लेकिन बेजान भी नहीं हो।"
दीर्घात्तरी प्रश्न
1) 'कठपुतली कविता का आशय स्पष्ट लिखिए।
2) 'कठपुतली कविता में कवि ने आम आदमी की वेदना का चित्रण किस प्रकार किया है? स्पष्ट कीजिए।
3) 'कठपुतली' कविता का उद्देश लिखिए।
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